Arsenicum Album – आर्सेनिकम ऐल्बम

संशोधित: 11 December 2025 ThinkHomeo

आर्सेनिकम ऐल्बम बेहद कमजोरी, बेचैनी, मृत्यु-भय, थोड़ी-थोड़ी प्यास और सभी स्रावों में जलन शामिल है। (Arsenicum Album) के व्यापक लक्षणों को जानें।

Arsenicum Album – आर्सेनिकम ऐल्बम

आर्सेनिकम ऐल्बम (Arsenicum Album) होम्योपैथी की सबसे महत्वपूर्ण 'अनेक कार्य-साधक' (Polychrest) औषधियों में से एक है। यह अपने तीन केंद्रीय लक्षणों: बेचैनी (Restlessness), जलन (Burning), और सत्वहीनता (Prostration) के कारण विशेष रूप से प्रसिद्ध है, खासकर विषाक्त (toxic) रोगों की गंभीर अवस्थाओं में।

व्यापक-लक्षण तथा मुख्य-रोग (GENERALS AND PARTICULARS):

  1. बेचैनी, घबराहट (anguish), मृत्यु-भय (fear of death) और बेहद कमजोरी (prostration)।
  2. मृत्यु के समय की बेचैनी में आर्सेनिक तथा कार्बों वेज (Carbo Veg) शांत मृत्यु लाते हैं या मृत्यु से बचा लेते हैं।
  3. जलन परन्तु गर्मी से आराम मिलना (Burning pain better by heat)।
  4. बार-बार, थोड़ी-थोड़ी प्यास लगना (Thirst for small sips, often)।
  5. बाह्य-त्वचा (outer skin), अल्सर (Ulcer) तथा गैंग्रीन (Gangrene) पर आर्सेनिक का प्रभाव।
  6. श्लैष्मिक झिल्ली (Mucous membrance) पर आर्सेनिक का प्रभाव (आंख, नाक, मुख, गला, पेट, मूत्राशय से जलने वाला स्राव)।
  7. 'समयानन्तर' (Periodical) तथा 'पर्याय-क्रम' (Alternate state) के रोग।
  8. रात्रिकालीन या दोपहर के बाद रोग का बढ़ना (जैसे, दमा)।
  9. सफाई-पसन्द-स्वभाव (Fastidious nature)।

प्रकृति (MODALITIES)

लक्षणों में कमी (Better):

  • गर्मी से रोग घटना।
  • गर्म पेय, गर्म भोजन चाहना।
  • दमे (asthma) में सीधा बैठने से कमी।

लक्षणों में वृद्धि (Worse):

  • ठंड, बर्फ, ठंडा पेय, ठंडा भोजन नापसन्द होना।
  • मध्यान्ह (noon), मध्य-रात्रि (midnight), 1-2 बजे के बाद रोग का बढ़ना।
  • 14 दिन बाद, साल भर बाद रोग का आक्रमण।
  • अवरुद्ध स्राव या दाने।
  • बरसात का मौसम।

(1) बेचैनी, घबराहट, मृत्यु-भय और बेहद कमजोरी (restlessness, anguish and prostration) 

  • बेचैनी (Restelessness) इसका प्रधान लक्षण है। किसी स्थान पर भी उसे चैन नहीं मिलता, आराम नहीं मिलता। रोगी कभी यहां बैठता है, कभी वहां, कभी एक बिछौने पर लेटता है, कभी दूसरे बिछौने पर, कभी एक कुर्सी पर बैठता है, कभी दूसरी कुर्सी पर। एक जगह टिक कर बैठना, लेटना, रहना तक उसके लिये दूभर (impossible) हो जाता है। 
  • हनीमैन (Hahnemann) ने लिखा है कि इस प्रकार की बेचैनी किसी दूसरी दवा में नहीं पायी जाती है।
  • रोग की शुरूआत में जो बेचैनी होती है, उसमें तो एकोनाइट (Aconite) काम कर जाता है, परन्तु रोग जब बढ़ जाता है, तब की बेचैनी के लिये यह औषधि अधिक उपयुक्त है।
  • उस बेचैनी में रोगी घबरा जाता है, जीवनी-शक्ति (Vital Force) में दिनोंदिन बढ़ता ह्रास (loss) देख कर उसे मृत्यु के भय (fear of death) सताने लगता है। 
  • दिनोंदिन निर्बलता (debility) बढ़ती जाती है, और रोगी इतना कमजोर हो जाता है कि पहले तो कभी उठ बैठता था, कभी लेट जाता था, कभी टहलकर शान्ति पाने का प्रयत्न करता था, परन्तु अब कमजोरी (weakness) के कारण चल-फिर भी नहीं सकता, एकदम निश्चेष्ट (prostrate) पड़ जाता है। यह निश्चेष्टता बेचैनी और घबराहट दूर हो जाने के कारण नहीं होती, कमजोर हो जाने के कारण होती है। 
  • चिकित्सक को रोगी के विषय में पूछना चाहिये कि उसकी इस निश्चेष्ट-अवस्था (prostrate state) से पूर्व क्या उसकी बेचैनी की हालत थी? जब कमजोरी बेचैनी का परिणाम हो, तब पूर्व-बेचैनी और वर्तमान कमजोरी-इन लक्षणों के आधार पर आर्सेनिक (Arsenic) ही देना होगा।
  • बच्चों की बेचैनी समझने के लिये देखना होगा कि वह कैसा व्यवहार करता है। अगर वह कभी माँकी गोद में जाता है, कभी नर्स की गोद में, कभी बिस्तर पर पर जाने का इसारा करता है, किसी हालत में उसे चैन नहीं पड़ता, तो आर्सेनिक ही उसे ठीक कर देगा।
  • डॉ0 टायलर ने एक रोगी का उल्लेख किया है जो लडाई के दिनों में जैपलिन के आक्रमण से इतना घबरा गई थी कि उसे समझ नहीं पड़ता था कि कहाँ जाय? अगर अपने गाँव में जाती है, और वहां भी जैपलिन का आक्रमण हो जाता है, तो क्या करे? इस बेचैनी को आर्सेनिक की एक मात्रा ने दूर कर दिया।

बेचैनी में एकोनाइट और आर्सेनिक की तुलना:

  • एकोनाइट (Aconite): रोगी बलिष्ठ (robust) होता है, उस पर एकाएक (suddenly) ही रोग का आक्रमण होता है। लगता है कि मौत के मुख में जा पड़ा, उसे भी मौत सामने नाचती दिखती है, परन्तु  उसकी जीवनी-शक्ति प्रबल होती है। वह शीध्र ही दवा के प्रयोग से ठीक हो जाता है जैसा पहले था। 
  • आर्सेनिक (Arsenic):  इसका रोगी मौत के मुख से छूट भी गया तो भी स्वास्थ्य लाभ पाने में देर लगती है। रोग की प्रथमावस्था में एकोनाइट के लक्षण पाये जाते हैं परन्तु  रोग की भयंकर अवस्था (malignant stage) में आर्सेनिक  लक्षण पाये जाते हैं। इसका भय तथा जलन वास्तविक (actual) होती है, बीमारी का परिणाम होती है। 
  • एकोनाइट रोगी में इतना बल रहता है कि बेचैनी में, घबराहट में और भय से इधर-उधर उठता-बैठता, बिस्तर पर पलटता रहता है, परन्तु आर्सेनिक का रोगी शुरू में तो बची-खुची ताकत से इधर-उधर उठता-बैठता रहता है, परन्तु रोगी अन्त में इतना शक्तिहीन (powerless) हो जाता है कि निश्चेष्ट (prostrate) ही पड़ा रहता है। सत्वहीनता (Prostration) आर्सेनिक का मुख्य लक्षण है।
  • इन दोनो में भय भी है और जलन भी, परन्तु एकोनाइट का भय सिर्फ नर्वस-टाइप का होता है, जलन भी नर्वस -टाइप की होती है, आर्सेनिक का भय और उसकी जलन वास्तविक होती है, बीमारी का परिणाम होती है।

(2) मृत्यु-समय की बेचैनी में आर्सेनिक तथा कार्बो वेज शांत-मृत्यु लाते हैं या मृत्यु से बचा लेते हैं

  • मृत्यु सिर पर आ खड़ी होने पर सारा शरीर निश्चल हो जाता है, देखते-देखते शरीर पर ठंडा, चिपचिपाता पसीना आ जाता है। यह समय हैज़े (cholera) या किसी भी अन्य रोग में आ सकता है। उस समय दो ही रास्ते रह जाते हैं- या तो रोगी की शान्ति से मृत्यु (peaceful death) हो जाय, उसे तड़पना न पड़े, या वह मृत्यु के मुख से खींच लिया जाय। यह काम होम्योपैथी में दो ही दवाएं कर सकती हैं। एक है आर्सेनिक (Arsenic), दूसरी है कार्बों वेज (Carbo Veg)। ऐसे समय में दोनों में से उपर्युक्त दवा की उच्च शक्ति की एक मात्र या तो रोगी को मृत्यु के मुख से खींच लेगी या फिर शाँतिपूर्वक मरने देगी।
  • चिकित्सक को रोगी के पारिवार से यह पूँछ लेना चाहिये कि  वर्तमान हालात से पहले रोगी की क्या दशा थी। अगर रोगी इस हालत में पहुंचने से पहले शरीर पर ठंडी हवा नहीं लगने देना चाहता था, सिर्फ सिर पर ठंडी हवा चाहता था, बेचैन था, तब आर्सेनिक (Arsenic)। और अगर इस हालत में पहुंचने से पहले वह कहता था-हवा करो, हवा करो-ठंडा हो जाने पर भी हवा के लिये भूखा था, तो कार्बो वेज (Carbo Veg) देने से दोनों में से एक बात होगी।
  • रोगी जब मृत्यु के मुख में जा रहा हो, नब्जें छूट रही हों, तब आर्सेनिक देने के बाद सल्फर देना चाहिये।

(3) जलन परन्तु गर्मी से आराम मिलना

  • आर्सेनिक (Arsenic) का यह 'विलक्षण-लक्षण' (Peculiar symptom) है कि जलन (burning) होने पर भी गर्मी (heat) से उसे आराम (relief) मिलता है। फेफड़े (lungs) में जलन हो तो रोगी सेक चाहेगा, पेट (stomach) में जलन हो तो वह गर्म चाय, गर्म दूध पसन्द करेगा, ज़ख्म (wound) से जलन हो तो गर्म पुलटिस (poultice) लगवायेगा, बवासीर (piles) की जलन हो तो गर्म पानी में धोना चाहेगा। 
  • इसमें अपवाद (exception) मस्तिष्क की जलन है, उसमें वह ठंडे पानी से सिर धोना चाहता है। जलन के साथ दर्द कहीं भी हो, अगर उसमें गर्म सेक से आराम मिले, तो आर्सेनिक ही दवा है।

(4) बार-बार, थोड़ी-थोड़ी प्यास लगना

  • इस औषधि में प्यास इसका एक ख़ास लक्षण है, परन्तु इस प्यास की एक विशेषता है। 
  • रोगी बार-बार पानी पीता है, परन्तु हर बार बहुत थोड़ा पानी पीता है (sips little water frequently)। 
  • ब्रायोनिया (Bryonia) में रोगी देर-देर बाद बहुत-सा पानी पीता है, एकोनाइट (Aconite) में बार-बार बहुत-सा पानी पीता है, आर्सेनिक (Arsenic) में बार-बार, थोड़ा-थोड़ा पानी पीता है। 
  • रोग की जांच करते हुए पूछना चाहिये कि क्या शुरू में रोगी को बार-बार की, थोड़े-थोड़े पानी की प्यास लगती थी।

(5) वाह्य-त्वचा, अल्सर तथा गैंग्रीन पर आर्सेनिक का प्रभाव

  • आर्सेनिक की त्वचा (skin) सूखी, मछली के छिलके के समान (scaly) होती है, उसमें जलन होती है। फोड़े-फुसिंया (boils/pimples) आग की तरह जलती हैं। सिफिलिस (Syphilis) के अल्सर (Ulcer) होते हैं जो बढ़ते चले जाते हैं, फैलते जाते हैं (spreading), ठीक नहीं होते, उनमें से सड़ी, बदबूदार लेस (offensive, putrid discharge) निकलती रहती है, जलन होती है, सड़ांद ऐसी जैसे सड़ा मांस हो (putrid smell like rotten flesh)। अगर कहीं शोथ होने के बाद फोड़ा बन जाय और वह सड़ने लगे-गैंग्रीन (Gangrene) बनने लगे-फिर उसका नाम भले ही कुछ हो, ऐसे सड़ने वाले, मवादवाले (purulent), जलने वाले फोड़े की दवा यही है।

(6) श्लैष्मिक-झिल्ली (Mucous membrance) पर आर्सेनिक का प्रभाव

  • आर्सेनिक के रोगी का स्राव (discharge) जहां-जहां लगता है, वहां-वहां जलन पैदा कर देता है (excoriating)
  • जुकाम में जलन: जुकाम से पानी बहता हो, जहां-जहां होठों (lips) पर लगे वहां जलन पैदा कर दे, नाक में भी जलन करे, नाक छिल जाय, गरम पानी से आराम मिले, वहां इसे ही दो।
  • मुख के छालों (mouth ulcers) में जलन: जब मुख में छाले पड़ जायें, जलें, गरम पानी से लाभ हो, तब वहां इसे दो।
  • मूत्राशय में शोथ तथा जलन (Cystitis): मूत्राशय में शोथ (inflammation) के साथ रक्त (blood) के थक्के भी आ रहे हों। मूत्राशय (Bladder) में कैथीटर (catheter) डाल कर पता चले कि मूत्राशय रक्त के टुकड़ों से अटा पड़ा है। यह शोथ बढ़ती हुई गैंग्रीन (Gangrene) बन रही है।

(7) समयानन्तर (Periodicity) तथा पर्याय-क्रम (Alternate state) के रोग

  • रोग का समयानन्तर से (Periodically) प्रकट होना इस औषधि का विशिष्ट-लक्षण (characteristic symptom) है। 
  • इसी कारण मलेरिया-ज्वर (Malaria Fever) में यह विशेष उपयोगी है। 
  • हर दूसरे दिन, चौथे दिन, सातवें या पन्द्रहवें दिन ज्वर आता है। सिर-दर्द (headache) भी हर दूसरे दिन, हर तीसरे, चौथे, सातवें या चौदहवें दिन आता है। रोग जितना पुराना (Chronic) होता है उतना ही उसके आने का व्यवधान (interval) लम्बा हो जाता है। 
  • इस दृष्टि से मलेरिया में चायना (China) की अपेक्षा आर्सेनिक (Arsenic) अधिक उपयुक्त है।

(8) रात्रिकालीन या दोपहर के बाद रोग-वृद्धि (जैसे, दमा)

  • आधी रात के बाद या दोपहर को 1-2 बजे के बीच रोग का बढ़ जाना इसका चरित्रगत लक्षण (characteristic symptom) है। विशेष रूप से दमे (asthma) में यह पाया जाता है, परन्तु बुखार, खांसी, हृदय की धड़कन-किसी भी रोग में मध्य-रात्रि या दोपहर में रोग का बढ़ना आर्सेनिक का लक्षण है।

(9) सफाई-पसन्द-स्वभाव

  • रोगी बड़ा सफाई-पसन्द (Fastidious nature) होता है। गन्दगी या अनियमितता को बर्दाश्त नहीं कर सकता। अगर दीवार पर तस्वीर टेढ़ी लटकी है, तो जबतक उसे सीधा नहीं कर लेता तबतक परेशान रहता है। जो लोग हर बात में सफ़ाई पसंद करते हैं, इस बात में सीमा का उल्लंघन (transgress the limit) कर जाते हैं, उनका लक्षण इस दवा में पाया जाता है।

(10) इस औषधि के अन्य लक्षण:

हैज़े (Cholera) के-से दस्त, डायरिया (Diarrhea), डिसेन्ट्री (Dysentery): 

  • पानी की तरह पतला दस्त, काला, दुर्गन्धयुक्त (offensive), बेचैनी, प्यास, मृत्यु-भय, कमजोरी आदि लक्षग होने पर यह उपयोगी है। कमजोरी इतनी हो जाती है कि मूत्र तथा मल अपने-आप निकल पड़ते हैं।

रक्तस्राव (Hemorrhage): 

  • चमकता हुआ, लाल रंग का रुधिर (bright red blood)। रक्त-स्राव का ही एक रूप खूनी बवासीर (bleeding piles) है। इसमें रोगी के मस्सों (piles) में खुजली होती है, जलन होती और गर्म सूई का-सा छिदता दर्द (pricking pain like hot needle) होता है। गुदा को सेंकने से या गर्म पानी से धोने से शान्ति मिलती है।

आर्सेनिक शीत-प्रधान है: 

  • रोगी शीत-प्रधान (Chilly) होता है, आग के इर्द-गिर्द घूमा करता है। गर्म कपड़े लपेटे रहता है, उन्हें भी काफी नहीं समझता।

(11) आर्सेनिक का सजीव, मूर्त-चिचण:

 * बेचैनी, निराशा, असह्य कष्ट, मृत्यु भय, घबराहट, ऐसी बेचैनी कि रोगी किसी एक कमरे में टिक कर नहीं रह सकता, एक बिस्तर पर लेट नहीं सकता, कभी यहां बैठता है, कभी वहां। रोगी दुर्बल, शीत-प्रधान होता है, जलन होती है जिसे गर्मी से आराम मिलता है। थोड़ा-थोड़ा पानी बार-बार पीता है। सारे शरीर पर ठंडा पसीना, मुर्दे की तरह शरीर से दुर्गन्ध

(12) शक्ति तथा प्रकृति:

  •  पेट, आंतों तथा गुर्दे की बीमारियों में निम्न शक्ति (low potency) दी जानी चाहिये, स्नायु-संबंधी बीमारियों तथा दर्द के रोगों में उच्च-शक्ति (high potency) लाभ करती है। अन्यथा दमे में 30 शक्ति और पुरानी बीमारी में 200 शक्ति लाभ करती है। 
  • औषधि 'सर्द' (Chilly-प्रकृति) के लिये है।

FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

Q1. आर्सेनिकम ऐल्बम (Arsenicum Album) के तीन केंद्रीय लक्षण क्या हैं? 

आर्सेनिकम ऐल्बम के तीन केंद्रीय लक्षण हैं: बेचैनी (Restlessness) (जिसे चैन न मिले), जलन (Burning) (जिसे गर्मी से आराम मिले), और सत्वहीनता (Prostration) (अत्यधिक कमजोरी)।

Q2. आर्सेनिक में रोगी की प्यास कैसी होती है? 

आर्सेनिक के रोगी की प्यास की विशेषता है कि वह बार-बार और थोड़ा-थोड़ा (small sips) पानी पीता है। रोग के बढ़ने पर वह प्यासहीन (thirstless) भी हो सकता है।

Q3. आर्सेनिकम ऐल्बम के लक्षणों में वृद्धि का समय क्या है? 

इस दवा के लक्षणों में वृद्धि का विशिष्ट समय आधी रात के बाद (1 से 2 बजे) और दोपहर के बाद होता है।

Q4. जलन में गर्मी से आराम मिलना (Burning better by heat) क्यों एक विलक्षण लक्षण है? 

यह एक विलक्षण लक्षण है क्योंकि रोगी शीत-प्रधान (Chilly) होता है और हर जगह ठंड से डरता है, लेकिन उसके शरीर के अंदर की जलन इतनी तीव्र होती है कि वह उसे शांत करने के लिए गर्म सेक या गर्म पेय चाहता है।

Q5. सफाई-पसन्द-स्वभाव (Fastidious nature) का क्या अर्थ है?

 इसका अर्थ है कि रोगी अत्यधिक सफाई और व्यवस्था पसंद करता है। वह गन्दगी, अनियमितता या दीवार पर टेढ़ी लगी तस्वीर को भी देखकर तुरंत परेशान हो जाता है, जब तक कि उसे ठीक न कर दिया जाए।

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