होम्योपैथी का पहला सिद्धांत – 'समः समं शमयति'
जानिए होम्योपैथी का पहला सिद्धांत 'समः समं शमयति' क्या है, इसका एलोपैथी से क्या अंतर है, और यह कैसे काम करता है। संपूर्ण जानकारी हिंदी में।
एलोपैथी बनाम होम्योपैथी का सिद्धांत
एलोपैथी का सिद्धांत स्पष्ट है। शरीर में जो रोग हो, उससे विरोधी अवस्था को उत्पन्न कर रोग को दूर करना एलोपैथी कहलाता है।
उदाहरणस्वरूप:
- * दस्त आने पर उन्हें बंद करने वाली दवा दी जाती है
- * कब्ज हो तो दस्त लाने की दवा दी जाती है
इस सिद्धांत को 'विषमोपचार' (Contraria Contraris) कहते हैं। यही प्रचलित चिकित्सा पद्धति है और सामान्य बुद्धि से सोचने पर यह सही भी प्रतीत होती है।
🌿 हनीमैन द्वारा नया सिद्धांत – 'समोपचार'
हनीमैन ने एलोपैथी इलाज की इस पद्धति से विरुद्ध सिद्धांत विकसित किया, जिसे उन्होंने 'समोपचार' का नाम दिया।
संस्कृत में इसे कहा जाता है:
'समः समं शमयति'
अंग्रेज़ी में:
Similia Similibus Curantur
हनीमैन ने इस सिद्धांत का परीक्षण स्वयं अपने ऊपर किया और इसे सत्य पाया।
💊 होम्योपैथी का मूल सिद्धांत
होम्योपैथी का सिद्धांत कहता है कि:
"स्वस्थ शरीर में जो औषधि जिन लक्षणों को उत्पन्न करती है, अगर वही लक्षण किसी रोगी में पाए जाएं, तो वही औषधि उस रोगी में उन लक्षणों को दूर कर देगी।"
उदाहरण:
- * संखिया (Arsenic) एक विषैले पदार्थ के रूप में स्वस्थ शरीर में:
- * बेचैनी
- * जलन
- * बार-बार प्यास
- * अन्य लक्षण उत्पन्न करता है
यदि कोई रोगी इन लक्षणों से पीड़ित है, तो आर्सेनिक इन लक्षणों को दूर कर सकता है।
ये लक्षण:
- * हैजा,
- * पेट का अल्सर,
- * सिरदर्द,
- * जुकाम,
- * बुखार या
- * अनिद्रा जैसी कई बीमारियों में पाए जा सकते हैं।
हनीमैन का तर्क यह था:
"हमें बीमारी के नाम की परवाह नहीं, अगर लक्षण मिलते हैं, तो वही औषधि लक्षण तथा रोग दोनों को दूर कर सकती है।"
📘 होम्योपैथी की कार्यविधि का सार
- रोग की पहचान नाम से नहीं होती, लक्षणों से होती है।
- औषधि उन लक्षणों को दूर करती है जो उसने स्वयं स्वस्थ व्यक्ति में उत्पन्न किए हों।
- जैसे ही लक्षण दूर होते हैं, रोग स्वयं समाप्त हो जाता है।
संक्षेप में:
यह 'होम्योपैथी का पहला सिद्धांत' है।
⚠️ आम भ्रांति: क्या हर औषधि अपने द्वारा उत्पन्न रोग को भी ठीक कर सकती है?
नहीं। इसका यह अर्थ नहीं कि जो औषधि किसी रोग को उत्पन्न करती है, वही उसे ठीक भी कर सकती है। बल्कि:
- * यदि किसी रोगी के लक्षण उसी औषधि (जैसे आर्सेनिक) के कारण उत्पन्न हुए हों –
👉 वह औषधि काम नहीं करेगी। - * औषधि तभी काम करेगी जब:
- * रोगी के लक्षण उस औषधि की तरह 'समान' (Similar) हों
- * लेकिन 'उसी से उत्पन्न' (Same) न हुए हों
इस भेद को समझने के लिए नीचे का बुद्धिमत्तापूर्ण दृष्टांत देखें:
"कोई योद्धा स्वयं के साथ युद्ध नहीं करता, बल्कि अपने जैसे योद्धा से युद्ध कर उसे पराजित करता है।"
🔍 औषधि के प्रभाव कैसे ज्ञात करें?
प्रश्न उठता है कि –
"कोई औषधि स्वस्थ मनुष्य में क्या लक्षण उत्पन्न करेगी – यह कैसे पता चलेगा?"
इसका उत्तर होम्योपैथी में है:
👉 औषधि-सिद्धि या
👉 औषधि-परीक्षा (Proving of Drugs)
यह एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जहां औषधियों को स्वस्थ व्यक्तियों पर प्रयोग कर उनके संभावित लक्षणों का गहराई से अध्ययन किया जाता है।
✅ निष्कर्ष:
होम्योपैथी, रोग के नाम पर नहीं, लक्षणों पर कार्य करती है। यह पद्धति मानती है कि समान लक्षणों वाली औषधि, रोग को प्राकृतिक रूप से समाप्त कर सकती है।
‘समः समं शमयति’ इस चिकित्सा प्रणाली की नींव है, और यही होम्योपैथी का पहला सिद्धांत है।
❓FAQs — होम्योपैथी का पहला सिद्धांत: 'समः समं शमयति'
Q1. होम्योपैथी का पहला सिद्धांत क्या है?
उत्तर:
होम्योपैथी का पहला सिद्धांत है — ‘समः समं शमयति’ जिसका अर्थ है "समान लक्षण उत्पन्न करने वाली औषधि, समान लक्षणों को ठीक भी कर सकती है।"
इसे अंग्रेजी में कहते हैं: Similia Similibus Curantur।
Q2. 'समः समं शमयति' और एलोपैथी के सिद्धांत में क्या अंतर है?
उत्तर:
एलोपैथी में रोग का इलाज विरोधी लक्षणों से किया जाता है (Contraria Contraris), जबकि होम्योपैथी में इलाज समान लक्षणों (Similar Symptoms) के आधार पर किया जाता है।
Q3. क्या एक ही औषधि हर रोग में काम कर सकती है?
उत्तर:
जी हां, यदि किसी रोग के लक्षण उस औषधि से मिलते-जुलते हों जो किसी स्वस्थ व्यक्ति में वही लक्षण उत्पन्न करती है, तो वह औषधि कोई भी रोग ठीक कर सकती है — चाहे उसका नाम या प्रकार कुछ भी हो।
Q4. क्या होम्योपैथिक औषधि उसी रोग को ठीक कर सकती है जो उसने उत्पन्न किया हो?
उत्तर:
नहीं। यदि किसी रोगी के लक्षण सीधे उस औषधि के कारण उत्पन्न हुए हों, तो वही औषधि उसे ठीक नहीं कर सकती।
औषधि तभी काम करती है जब लक्षण उसी जैसे (Similar), लेकिन एकदम वही (Same) न हों।
Q5. किसी औषधि के लक्षणों का पता कैसे लगाया जाता है?
उत्तर:
होम्योपैथी में इसे कहते हैं – ‘औषधि-परीक्षा’ (Proving of Drugs)।
यह प्रक्रिया स्वस्थ व्यक्तियों पर औषधि देकर उसके प्रभावों का परीक्षण करती है, ताकि उसका सही इलाज में उपयोग किया जा सके।
Q6. ‘समः समं शमयति’ सिद्धांत का वैज्ञानिक दृष्टांत क्या है?
उत्तर:
जैसे कोई योद्धा खुद से युद्ध नहीं करता, बल्कि अपने जैसे योद्धा से लड़कर उसे हराता है, वैसे ही यह सिद्धांत कहता है कि “समान औषधि ही समान रोग को दूर कर सकती है।”