Apis Mellifica – एपिस मेलिफ़िका
एपिस मेलिफ़िका (Apis Mellifica) के व्यापक लक्षणों को समझें, जिसमें मधुमक्खी के डंक जैसा दर्द और जलन, गुर्दा और आँख की सूजन, प्यास का अभाव, और दोपहर 3 बजे ज्वर की वृद्धि शामिल है। जानें क्यों यह आर्सेनिक से भिन्न है।
🐝एपिस मेलिफ़िका (Apis Mellifica) औषधि शहद की मक्खी 🐝(honey bee) के डंक से तैयार होती है। इसमें वे लक्षण पाये जाते हैं जो शहद की मक्खी के काटने से होते हैं। इस औषधि का पता 1847 में एक बच्चे के शोथ-रोग (dropsy) के इलाज के बाद चला, और डॉ० ई० ई० मारसी (Dr. E. E. Marcy) ने इसे होम्योपैथी में प्रूविंग (proving) के माध्यम से स्थापित किया।
🩺 एक १२ वर्ष का बच्चा कई मास से शोथ (Dropsy/Swelling) रोग से पीड़ित था और एलोपैथी तथा होम्योपैथी दोनों के इलाज से कोई लाभ न हुआ। इस रोगी का इलाज एक होम्योपैथ डॉ० ई० ई० मारसी (Dr. E. E. Marcy) कर रहे थे। जब उनके इलाज से कोई फायदा न हुआ तब नर्रागेनसेट फिरंदर प्रजाति की एक औरत ने कहा कि इसे शहद की मक्खियां मार कर उसका चूर्ण शहद में सुबह-शाम दो। ऐसा करने से उस लड़के का शोथ-रोग जाता रहा। इसके बाद डॉ० मारसी ने इस औषधि की परीक्षा होम्योपैथिक प्रणाली-प्रूविंग से की, और इस औषधि का होम्योपैथी में प्रवेश हुआ।
🌿मुख्य लक्षण तथा रोग (GENERALS AND PARTICULARS):
- किसी अंग में भी शोथ (Inflammation), सूजन (Swelling): गुर्दा (Kidney), आँख (Eye) आदि; शोथ दायीं से बायीं तरफ आती है।
- शहद की मक्खी🐝 के डंक मारने जैसा दर्द और जलन (Stinging and burning pain)।
- प्यास न होना (Thirstlessness)।
- मानसिक आघात (Mental Shock) से उत्पन्न रोग।
- पहले, दूसरे या तीसरे महीने गर्भपात (Abortion) की आशंका।
- ज्वर (Fever) में शीतावस्था (Chill stage) में कपड़ा उतार फेंकना और शीतावस्था में प्यास होना।
- ज्वर में 3 बजे दोपहर जूड़ी (Chill) से बुखार चढ़ना।
⚖️प्रकृति (MODALITIES)
लक्षणों में कमी (Better):
- ठंडी हवा, ठंडे पानी से स्नान से रोग का कम होना।
- कपड़ा उतार देने से रोगी को अच्छा लगना।
लक्षणों में वृद्धि (Worse):
- गर्म कमरे में रोग में वृद्धि।
- आग के सेक से रोग में वृद्धि।
- सोने के बाद वृद्धि।
- तीन से छह बजे के बीच वृद्धि।
(1) किसी अंग में शोथ, सूजन गुर्दा, आँख आदि; शोथ दायीं से बायीं तरफ
- शोथ (Dropsy/Swelling) इस औषधि का प्रमुख लक्षण है। यह शोथ संपूर्ण शरीर में भी हो सकती है, शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों में भी हो सकती है। सारे चेहरे की शोथ का लक्षण फॉसफोरस (Phosphorus) में है।
- गुर्दे (Kidney) पर प्रभाव: वैसे तो एपिस की शोथ सब अंगों में हो सकती है, परन्तु मुख्य तौर पर इसका प्रभाव गुर्दे (Kidney) पर पड़ता है जिसके कारण शरीर में जहां-जहां सेल्स (cells) हैं वहां-वहां पानी भर जाने के कारण शोथ हो जाती है। उदाहरणार्थ मुंह, जीभ, कनकौआ (Mumps), आंख के पपोटे (eyelids) सब सूज जाते हैं।
- आँख की सूजन: आंख में निचली पलक (lower eyelid) एपिस में और ऊपर की पलक कैली कार्ब (Kali Carb) में सूजती है - आँख की सूजन में एपिस का विशेष लक्षण यह है कि आंख के नीचे की पलक सूज कर पानी के थैले जैसी हो जाती है। ऊपर की पलक के सूजन में कैली कार्ब दिया जाता है।
- चक्षु-प्रवाह (Ophthalmia): आँख पर एपिस के प्रभाव के विषय में डॉ० एम० एल० टायलर (Dr. M. L. Tyler) अपनी पुस्तक 'होम्योपैथक ड्रग पिक्चर्स' में लिखती हैं कि "एक लड़की ईजिप्ट गई जहां उसे 'चक्षु-प्रदाह' (Ophthalmia) हो गया, आंख आ गई। डाक्टरों ने कहा, उसे कुकरे (ट्रैकोमा) की बीमारी है, इसलिये पलकों के अन्दर कुकरे छील दिये गये, परन्तु कुछ देर बाद उसे फिर 'चक्षु-प्रदाह' (Ophthalmia) की शिकयत हो गई। वह एक होम्योपैथ के यहां ठहरी हुई थी। उसने आंख की टीस मारने के लक्षण पर एपिस c.m. की एक मात्रा दे दी। अगले दिन उसकी आंख बिल्कुल ठीक हो गई। क्योंकि यह बीमारी ईजिप्ट में बहुत फैली हुई थी, वह लड़की घर आने एपिस c.m. की एक शीशी साथ ले गई और वहां आंख की दुखन में डंक जैसी टीस मारने(stinging) के लक्षणों पर जिस जिसको भी यह दवा दी वह ठीक हो गया।"
शोथ में एपिस, आर्सेनिक (Arsenic), ऐसेटिक ऐसिड (Acetic Acid) और ऐपोसाइनम (Apocynum) की तुलना:
- ऐपिस के शोथ में प्यास बिल्कुल नहीं रहती, आर्सेनिक में रोगी बार-बार. थोड़ा-थोड़ा पानी पीता है, और पानी की कय हो जाती है। यह कय एपिस में नाहीं है। ऐपोसाइनम में आर्सेनिक की तरह पानी और खाना उल्टी हो जाता है, परन्तु उसमें आर्सेनिक की बेचैनी और बार-बार प्यास की जगह अधिक होती है। ऐसेटिक ऐसिड में शोथ के साथ प्यास रहती है, परनतु आर्सेनिक जैसी बार-बार की प्यास नहीं, साथ ही शोथ में दस्त और आंव की शिकायत रहती है।
- इस तुलना को इस प्रकार प्रकट किया जा सकता है।
🔹एपिस: प्यास नहीं, उल्टी नहीं, ठंडक से आराम, गर्मी से रोग बढ़ता है।
🔹आर्सेनिक (Arsenic): बार-बार प्यास, पानी उल्टी हो जाता है, बेचैनी होती है, गर्म सेक से आराम मिलता है।
🔹ऐसेटिक ऐसिड (Acetic Acid): प्यास साधारण, शोथ में दस्त और आँव (mucus) की शिकायत रहती है।
🔹ऐपोसाइनम (Apocynum): प्यास बहुत, पानी और खाने का उल्टी हो जाता है।
शोथ दायें से बायें को जाती है:
- एपिस के शोथ की दिशा दायीं से बायीं तरफ जाने की होती है।
- अगर मुख पर लाल-लाल फुन्सियों के रूप में शोथ उभर आये तो वह चेहरे के दायीं तरफ शुरू होगा, नाक पर के ऊपर से होकर चेहरे के बायीं तरफ चला जायगा।
- पेट में शोथ होगी तो दायीं तरफ से शुरू होगी, बायीं तरफ जायगी।
- डिम्बकोष (Ovary) का शोथ भी दायीं तरफ प्रारंभ होगा, जरायु (Uterus) का शोथ भी ऐसे ही दायीं तरफ से चलेगा।
- जलन, डंक मारने की-सी पीड़ा का प्रारंभ दायीं तरफ से शुरू होगा।
- जीभ सूजेगी तो उसका भी दायां भाग बायें की अपेक्षा अधिक सूजेगा।
(2) शहद की मक्खी🐝 के डंक मारने जैसा दर्द और जलन
- शहद की मक्खी 🐝 के काटने से जैसे शोथ हो जाता है, वैसे जहां काटा है वहां काटने का दर्द और जलन (burning) भी होती है। जलन में ठंडक से आराम मिलता ही है, इसलिये एपिस की शोथ में रोगी गर्मी सहन नहीं कर सकता, ठंडक चाहता है।
- आर्सेनिक की शोथ और जलन में रोगी गर्मी पसन्द करता है। एपिस की शोथ में रोगी ठंडा पानी लगाना पसन्द करता है।
- डंक चुभने जैसा दर्द, सूजन, जलन और ठंडक से आराम-ये व्यापक लक्षण (general symptoms) यदि पित्ती उछलना (Urticaria), चेचक (Smallpox), खसरा (Measles), कारबंकल (Carbuncle), कैन्सर (Cancer), डिम्बकोष की सूजन (Ovarian cyst) आदि किसी भी बीमारी में क्यों न पाये जायें औषधि से इन लक्षणों में लाभ होगा।
बाहरी त्वचा पर छोटी-छोटी फुन्सियां (Rash):
- शरीर की आन्तरिक झिल्लियों के प्रदाह (जलन) के कारण रोगी के बार-बार चीख उठने का जिक्र करेंगे, परन्तु शरीर की बहारी त्वचा पर भी एपिस का प्रभाव है।
- शरीर पर छोटी-छोटी फुन्सियां हो जाती हैं जिन्हें अंग्रेजी में "रैश" (Rash) कहते हैं। दीखने को न भी दीखें परन्तु त्वचा पर अंगुली फेरने से उन्हें अनुभव किया जा सकता है। शरीर में यहां-वहां गांठें (lumps) पड़ जाती हैं, जो कभी प्रकट होती हैं कभी चली जाती हैं।
- मुख पर की त्वचा गर लाल-लाल पित्ती-सी उभर आती है और कभी-कभी शोथ का उग्र रूप (severe form) धारण कर लेती है। इन लक्षणों में एपिस उपयोगी है।
- त्वचा के शोथ में जब अंगुली से दबाया जाता है तब त्वचा पर दबाने से गढ़ा पड़ जाता है।
रह-रह कर रोगी का चीख उठना:
- मस्तिष्क के रोग में (मैनेंजाइटिस - Meningitis, इनफेन्टाइल कॉलरा - Infantile Cholera, टाइफॉयड - Typhoid, हाइड्रोसेफेलस - Hydrocephalus) रोगी बेहोशी में ऐसे चीख उठता है जैसे किसी ने डंक मार दिया हो।
- एपिस का जैसे शरीर की त्वचा पर शोथकारक (inflammatory) प्रभाव है वैसे अन्तः शरीर की झिल्लियों (internal membranes) पर जो मस्तिष्क, हृदय, पेट आदि का आवरण करती हैं उन पर भी शोथकारक प्रभाव है और इसीलिये इन अंगों के आन्तरिक शोथ (internal inflammation) पर रोगी डंक मारने का-सा दर्द अनुभव कर चीख उठता है (shrieks out)।
(3) प्यास न होना
- एपिस के शोथ की बीमारी में प्यास नहीं लगती (thirstlessness)। जलन हो और प्यास न लगे-यह एक 'विलक्षण-लक्षण' (Peculiar symptom) है।
- शोथ की बीमारी में प्यास ऐसेटिक ऐसिड (Acetic Acid), आर्सेनिक (Arsenic) तथा ऐपोसाइनम (Apocynum) में लगती है और प्यास न लगने के कारण इन औषधियों से एपिस की पृथक्ता (distinction) पहचानी जाती है।
(4) मानसिक-आघात से उत्पन्न रोग
- भय (fear), क्रोध (anger), झुंझलाहट (irritation), ईर्ष्या (jealousy), कुसमाचार (bad news) आदि द्वारा मानसिक आघात (mental shock) से उत्पन्न रोग में, विशेषकर इन मनोद्वेगों (emotional disturbances) द्वारा शरीर के दायें भाग के पक्षाघात (paralysis) में इस औषधि का उपयोग होता है।
युवा का बच्चों की तरह बेमतलब बोलते जाना:
- गर्भवती स्त्री (pregnant woman) का गर्भ की अवस्था बढ़ जाने के बाद बच्चों की तरह बेमतलब निरर्थक बातें (meaningless babbling) बोलते जाना, कभी-कभी कई स्त्रियाँ या कई रोगी यूं ही बेमतलब बड़बड़ाते हैं, जैसे बच्चे अकेले यूं ही कुछ-न-कुछ बड़बड़ाया करते हैं, वैसे निरर्थक बात बोलते जाने में इस औषधि के विषय में सोचना चाहिये क्योंकि इसका भी मानसिक-कारण हो सकता है।
(5) पहले, दूसरे या तीसरे महीने गर्भपात की आशंका
- गर्भवती स्त्री (pregnant woman) के पहले, दूसरे या तीसरे महीने अगर गर्भपात (miscarriage/abortion) की आशंका हो, तो यह औषधि इस खतरे को दूर कर देती है।
- कभी-कभी दुर्घटनावश या गर्भाशय (uterus) की कमजोरी के कारण गर्भपात होने की आशंका उत्पन्न हो जाती है। कभी ऐसा भी होते देखने में आया है कि किसी अनाड़ी द्वारा गर्भपात के लिये अर्गट (Ergot) दे दिया जाता है जिससे गर्भपात की आशंका से रोगिणी के प्राण संकट में पड़ जाते हैं। यह औषधि ऐसे समयों में गर्भपात की प्रवृत्ति (tendency to miscarry) को रोक देती है।
(6) ज्वर में शीतावस्था में कपड़ा उतार फेंकना और शीतावस्था में प्यास लगना
- इस औषधि का 'विलक्षण-लक्षण' (Peculiar symptom) यह है कि ज्वर (fever) में शीतावस्था (chill stage) में जब रोगी को कपड़ा ढांप लेना सुहाना चाहिये तब सब कपड़े उतार फेंकता है, और शीतावस्था में जब उसे प्यास नहीं लगनी चाहिये तब प्यास लगती है, और ताप (heat) की तथा स्वेद (sweat) की अवस्था में प्यास नहीं लगती।
(7) 3 बजे दोपहर जूड़ी से बुखार आना
- ज्वर (fever) के संबंध में यह भी स्मरण रखने योग्य है कि रोगी को दोपहर 3 बजे सर्दी लगकर बुखार चढ़ता है। इस बुखार में ज्वर के जिस विलक्षण-लक्षण का हमने अभी उल्लेख किया उसे भी ध्यान में रखना उचित है। 3 से या 4 से 6 बजे तक ज्वर उग्र रूप धारण करता है। इस समय रोग की वृद्धि होती है।
(8) इस औषधि के अन्य लक्षण
i. गर्मी से रोग में वृद्धि (worse from heat) और ठंड से रोग को शान्ति (better from cold) इसके हर शोथ में पायी जाती है।
ii. ज्वर में एपिस में शीतावस्था में हाथ-पैर गर्म रहते हैं, बेलाडोना (Belladonna) में शीतावस्था में हाथ-पैर ठंडे रहते हैं।
iii. नवजात शिशु के मूत्र रुकने (retention of urine in newborns) में एकोनाइट (Aconite) की तरह यह भी उपयोगी है।
iv. एपिस में मल-द्वार (rectum) जरा-सी हरकत (slight motion) करने से निकल पड़ता है, चुप पड़े रहने पर नहीं निकलता, फॉसफोरस (Phosphorus) में मल-द्वार से मल धीरे-धीरे चूता रहता है।
v. मधु-मक्खी के काटने. ततैया के काटने तथा मच्छरों के काटने पर दी जाने वाली औषधियाँ निम्न हैं-
👉 अगर मधु-मक्खी लड़ जाय (stung by honeybee) तो उसका प्रतिकार (antidote) एपिस से नहीं होता, कार्बोलिक ऐसिड (Carbolic Acid) से होता है।डॉ० कैन्ट लिखते हैं कि जब मधुमक्खियों के काटने पर रोगी जलन से और दर्द से छटपटा रहा हो, तब कार्बोलिक ऐसिड की एक मात्रा से वह कहने लगता है कि उसकी जलती हुई नस-नस (every nerve) में ठंडक का संचार हो गया।
👉 मधुमक्खी के काटे पर अर्टिका (Urtica Urens) से भी लाभ होता है;
👉 ततैय्ये के काटे (wasp sting) पर आर्निका (Arnica) का मूल-अर्क (mother tincture) लगा देने से सूजन नहीं होती, दो-तीन घंटे में दर्द भी जाता रहता है;
👉 मच्छरों के काटे पर कैन्थरिस (Cantharis) 200 की एक मात्रा दे देने से जलन आदि कष्ट नहीं होते।
(9) शक्ति का प्रकृति
- शोथ रोग में निम्न शक्ति (low potency) 6 तक, अतिसार (diarrhea) और आंखों की बीमारी में 30 तथा ज्वर (fever) में 200 शक्ति (potency)।
- इसकी क्रिया धीरे-धीरे होती है इसलिये दवा जल्दी बदलनी नहीं चाहिये।
- औषधि 'गर्म' (Hot)-प्रकृति के लिये है।
FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
Q1. एपिस मेलिफ़िका के शोथ (Swelling) का सबसे विशिष्ट लक्षण क्या है?
एपिस मेलिफ़िका के शोथ (swelling/dropsy) का सबसे विशिष्ट लक्षण यह है कि इसमें प्यास बिल्कुल नहीं लगती (thirstlessness), डंक मारने जैसा दर्द होता है, और रोगी को ठंडक से आराम मिलता है, जबकि गर्मी से रोग बढ़ता है।
Q2. एपिस में शोथ की गति (Direction) क्या होती है?
एपिस में शोथ या रोग का प्रारंभ दायीं ओर से होता है और वह दायीं से बायीं तरफ जाता है। यह दिशा (Right to Left) इसके डिम्बकोष (Ovary) और अन्य आंतरिक शोथ में भी देखी जाती है।
Q3. ज्वर (Fever) के दौरान एपिस का व्यवहार कैसा होता है?
ज्वर की शीतावस्था (chill stage) के दौरान रोगी कपड़े उतार फेंकता है (worse from heat, better from cold), और उसे प्यास लगती है (प्यास न लगने के सामान्य लक्षण के विपरीत)। ज्वर अक्सर दोपहर 3 बजे शुरू होता है।
Q5. क्या Apis Mellifica बाहरी डंक या काटे के मामलों में उपयोगी है?
हाँ, परन्तु मधुमक्खी के डंक पर इसका प्रतिकार नहीं होता; इसके लिए Carbolic Acid दिया जाता है।