Ailanthus Glandulosa – एलेन्थस ग्लैंडुलोसा
एलैन्थस ग्लैंडुलोसा (Ailanthus Glandulosa) एक शक्तिशाली होम्योपैथिक औषधि है। यह स्कारलेटीना (Scarlet Fever), डिप्थीरिया (Diphtheria), टॉन्सिलाइटिस (Tonsillitis), खसरा (Measles), टाइफाइड (Typhoid), त्वचा रोग और श्वसन रोगों में उपयोगी है।
एलैन्थस ग्लैंडुलोसा (Ailanthus Glandulosa) होम्योपैथी में एक महत्वपूर्ण औषधि है, खासकर उन गंभीर संक्रामक रोगों के लिए जहाँ रोगी की स्थिति बहुत नाजुक हो जाती है। यह औषधि अपने विशिष्ट लक्षणों के समूह के आधार पर प्रयोग की जाती है।
मुख्य रोग और सामान्य लक्षण:
- स्कारलेटीना (Scarlet Fever) जैसे गले के रोगों में: खासकर जब दाने पूरी तरह से न उभरें या रोग अत्यंत गंभीर रूप ले ले।
- छोटी चेचक (Measles) या डिप्थीरिया (Diphtheria) में: इन रोगों में भी जब स्कारलेटीना जैसे गंभीर लक्षण दिखाई दें।
- टॉन्सिलाइटिस (Tonsillitis): गले के संक्रमण और टॉन्सिल की सूजन में।
प्रकृति (Modalities-रोग में परिवर्तन)
लक्षणों में कमी (Better):
- गर्म पेय लेने पर रोग में कमी।
लक्षणों में वृद्धि (Worse):
- दाने न उभरने पर रोग की वृद्धि।
1. स्कारलेटीना और दाने न उभरने की बीमारियाँ
- स्कारलेटीना (Scarlatina) एक फैलने वाला संक्रामक (infectious) रोग है। इसमें त्वचा पर नारंगी रंग जैसे दाने उभर आते हैं और बहुत अधिक ज्वर (fever-बुखार) भी होता है। रोगी तंद्रा (stupor-सुस्ती) में रहता है और प्रलाप (delirium-भ्रम/बड़बड़ाना) भी हो जाता है। गला सूज जाता है और अंदर से काला तथा नीला दिखता है। टॉन्सिल (tonsils) बहुत बढ़ जाते हैं और उनमें से बदबूदार पतला स्राव (discharge-रिसाव) निकलता है।
स्कारलेट ज्वर तीन तरह का होता है:
- Scarlatina simplex (साधारण स्कारलेट ज्वर): किसी मौसम में यह बहुत हल्का होता है। दाने आसानी से निकल आते हैं, ज्वर भी अधिक नहीं होता। अच्छी देख-भाल करने से, गर्म कमरे में रोगी को रखने से और बिना औषधि (medicine-दवा) के यह स्वयं ठीक हो जाता है। त्वचा लाल, कोमल और चमकदार होती है। रोग का यह प्रकार भयंकर (malignant-अत्यंत गंभीर) रूप धारण नहीं करता।
- Scarlatina anginosa (गले पर आक्रमण करने वाला स्कारलेट ज्वर): इसमें पहले प्रकार का स्कारलेट-ज्वर न होकर, यह अधिक कष्टकारी रूप धारण करता है। इसमें कष्ट का केंद्र गला होता है। गला अंदर से बहुत सूज जाता है, चमकदार लाली लिए हुए, और दर्द करता हुआ। दाने बहुत कम निकलते हैं, मेरु-दण्ड (spinal cord-रीढ़ की हड्डी) के लक्षण प्रकट होने लगते हैं, कमर और गर्दन में दर्द होता है।
- Scarlatina maligna (अत्यंत भयंकर स्कारलेट ज्वर): तीसरा प्रकार ऐसा है जिसमें गला भीतर से भयंकर रूप से सूज जाता है, रोग द्वारा खून को विषाक्त (toxic-जहरीला) कर देने के लक्षण प्रकट होने लगते हैं, टॉन्सिल (tonsils) सूज जाते हैं, त्वचा फूल जाती है, दुर्गंध आने लगती है और दाने बहुत थोड़े या न के बराबर होते हैं। अगर इस तीसरे प्रकार के स्कारलेट-ज्वर का ठीक उपचार न हो सके तो रोगी की मृत्यु हो सकती है। यह रोग की अत्यंत (extremely-बहुत) भयंकर अवस्था है।
- एक ही परिवार में एक बच्चे को प्रथम, दूसरे को द्वितीय और तीसरे को तृतीय प्रकार का यह ज्वर हो सकता है। अगर त्वचा पर स्कारलेटीना के दाने न दिखते हों, तो त्वचा को उंगली से दबा कर देखना चाहिए। अगर दबाने के बाद उंगली हटाने पर त्वचा सफेद बनी रहे, और खून उस स्थान को भरने में बहुत देर लगाए, तो समझना चाहिए कि यह तीसरे प्रकार का भयंकर स्कारलेटीना है, और इसमें एलैन्थस का प्रयोग अत्यंत लाभदायक है।
- त्वचा पर दाने न उभरना, गले में भयंकर रूप से टॉन्सिल का सूज जाना, उनका रंग नीला पड़ जाना, रोग का डिप्थीरिया जैसा रूप धारण कर लेना, रोगी का अत्यंत शिथिल (prostrate-कमजोर) हो जाना—ये लक्षण इस औषधि के हैं, भले ही यह स्कारलेटीना हो या कुछ और। रोगी के पास यह सोच कर नहीं जाना चाहिए कि उसे स्कारलेटीना है। रोग के लक्षणों को देखना चाहिए। हो सकता है कि रोगी के दाने एकोनाइट (Aconite) के हों, परंतु एकोनाइट में इतना अधिक सड़ना नहीं होता इसलिए हम सोच सकते हैं कि ये दाने बैलेडोना (Belladonna) के हों, परंतु बैलेडोना में दाने चमकदार और चमकीले होते हैं, इसलिए हम सोच सकते हैं कि ये दाने एलैन्थस के हों। एलैन्थस का प्रयोग तब किया जाता है जब दाने न उभर कर गले में भयंकर टॉन्सिल, प्रलाप (delirium), अत्यधिक ज्वर आदि उत्पन्न कर इस रोग की तीसरी अवस्था हो।
2. छोटी चेचक (Measles) या डिप्थीरिया (Diphtheria) में एलैन्थस का उपयोग
- एलैन्थस का उपयोग खसरा (छोटी चेचक) या डिप्थीरिया में भी किया जाता है, खासकर जब इन रोगों के लक्षण स्कारलेटीना के गंभीर रूपों से मेल खाते हों।
3. एलैन्थस के समान गले पर आक्रमण (attack-प्रभाव) करने वाली कुछ अन्य औषधियों से तुलना
जैसे एलैन्थस का गले पर आक्रमण (attack-प्रभाव) होता है, वैसे ही कुछ अन्य औषधियां भी हैं जिनका इस संदर्भ में तुलनात्मक (comparative-तुलना करने वाला) अध्ययन करना उपयोगी होगा। वे हैं:
- एपिस (Apis): इसमें गले की बीमारी में बहुत दर्द या असुविधा नहीं होती। इसका प्रभाव दाईं तरफ होता है और गले के दाईं तरफ के टॉन्सिल में भूरे रंग के ज़ख़्म दिखाई देते हैं, जिनमें से गाढ़ा रिसाव निकलता है। एपिस का विशेष लक्षण प्यासहीन होना है। पेशाब दर्द से आता है, थोड़ा आता है; गला घुटता-सा अनुभव होता है; बुखार तेज़ होता है।
- लाइकोपोडियम (Lycopodium): यह भी एपिस की तरह गले के दाईं तरफ के टॉन्सिल की दवा है। टॉन्सिल की सूजन अगर दाईं तरफ से चलकर बाईं तरफ जाए तब भी यही दवा काम करती है। इसकी प्रकृति यह है कि लाइकोपोडियम का रोगी गर्म पेय पीना चाहता है, ठंडा नहीं।
- कार्बोलिक एसिड (Carbolic Acid): इसमें भी एपिस की तरह टॉन्सिल की सूजन में दर्द नहीं होता, परंतु मध्यम बुखार के साथ गले के क्षेत्र में लाली फैल जाती है।
- क्रोटेलस (Crotalus): इसमें गले में, टॉन्सिल में, और गले के भीतर सब जगह गैंग्रीन (gangrene-ऊतकों का सड़ना) हो जाता है, वह स्थान सड़ने-सा लगता है, और बेहद प्यास लगती है।
- नाइट्रिक एसिड (Nitric Acid): इसमें मुख से बहुत-सी लार बहती है।
- फाइटोलेक्का (Phytolacca): गले के अंदर थूक या कुछ भी निगलने के हर प्रयास में कानों में सख्त टीस मारती है, गर्म पेय से रोग बढ़ता है, और बिना निगले भी गले से कान तक टीस पड़ती रहती है।
4. एलैन्थस के अन्य महत्वपूर्ण उपयोग
होम्योपैथिक औषधि एलैन्थस ग्लैंडुलोसा का उपयोग केवल गले के रोगों और स्कारलेटीना तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह शरीर के अन्य तंत्रों से संबंधित लक्षणों में भी प्रभावी है। यह एक बहुउद्देशीय (multipurpose-कई उपयोग वाली) औषधि है जिसका उपयोग निम्नलिखित स्थितियों में भी किया जाता है:
- टाइफाइड (Typhoid): एलैन्थस का प्रयोग अक्सर टाइफाइड जैसे गंभीर बुखार में किया जाता है, जहाँ रोगी सुस्त हो, चेतना खो रहा हो, और उसके शरीर पर लाल या नीले दाने निकल रहे हों।
- तंत्रिका तंत्र (nervous system) और मानसिक लक्षण: यह उन रोगियों के लिए उपयोगी है जो सुस्त, बेसुध, या भ्रमित होते हैं। यह निरंतर बड़बड़ाने वाले प्रलाप (muttering delirium-बड़बड़ाने वाला भ्रम), अत्यधिक बेचैनी और अनिद्रा (insomnia-नींद न आना) के मामलों में भी सहायक है।
- पाचन तंत्र (digestive system) के लक्षण: एलैन्थस का उपयोग कमजोर पाचन के साथ होने वाले दस्त (diarrhea) के उपचार में भी किया जाता है। इसके अलावा, यह ऐंठन (cramps-दर्द भरे खिंचाव) और टेपवॉर्म (tapeworm-एक प्रकार का कीड़ा) जैसे परजीवियों को ठीक करने में भी संकेतित है।
- सिरदर्द और श्वसन (respiratory-साँस लेने से संबंधित) संबंधी समस्याएं: यह चक्कर (vertigo), मतली (nausea) और उल्टी (vomiting) के साथ होने वाले सिरदर्द को ठीक करने में मदद कर सकती है। यह दर्दनाक खांसी के साथ अनियमित साँस लेने की स्थिति को भी प्रभावी ढंग से ठीक करता है और अस्थमा (asthma-श्वास रोग) के उपचार में भी इसका उपयोग होता है।
- त्वचा संबंधी समस्याएं: स्कारलेटीना के अलावा, यह त्वचा पर अनियमित, धब्बेदार दानों, चकत्तों (rashes-दाने) और फफोलों (blisters-छाले) को ठीक करने में भी सहायक है।
5. शक्ति तथा प्रकृति
- शक्ति: 1, 3, 6, 30
- प्रकृति: 'सर्द' (Chilly)
सारांश
एलैन्थस ग्लैंडुलोसा (Ailanthus Glandulosa) का उपयोग मुख्य रूप से उन गंभीर बीमारियों में किया जाता है, जहाँ रोगी की स्थिति बहुत नाजुक हो जाती है।
मुख्य उपयोगों का सारांश:
- स्कारलेटीना (Scarlet Fever): यह खासकर रोग की तीसरी और सबसे खतरनाक अवस्था (maligna) में उपयोगी है, जहाँ दाने पूरी तरह से नहीं निकल पाते। इसमें गले में भयानक सूजन होती है, रंग काला या नीला पड़ जाता है, और रोगी अत्यंत शिथिल और अचेत अवस्था में रहता है।
- खसरा (Measles) और डिप्थीरिया (Diphtheria): इन रोगों में भी एलैन्थस का प्रयोग तब होता है, जब लक्षण स्कारलेटीना जैसे हों - जैसे दाने न निकलना और रोगी की हालत गंभीर हो जाना।
- अन्य उपयोग: इसका उपयोग टाइफाइड जैसे तेज़ बुखार, कुछ प्रकार के त्वचा रोगों (खासकर जब बैंगनी रंग के चकत्ते हों) और श्वास संबंधी समस्याओं में भी किया जाता है, अगर लक्षणों का मेल हो।
संक्षेप में यह औषधि उन गंभीर स्थितियों में विशेष रूप से प्रभावी मानी जाती है जहाँ रोग बहुत तेज़ी से बढ़ता है, रोगी में शिथिलता (prostration) आती है, और शरीर पर दाने पूरी तरह से नहीं निकल पाते या दबे रह जाते हैं, और जहाँ रोगी की रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कमजोर हो जाती है।
FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
Q1. एलैन्थस ग्लैंडुलोसा का उपयोग किन मुख्य रोगों में होता है?
एलैन्थस ग्लैंडुलोसा का उपयोग मुख्य रूप से स्कारलेटीना (Scarlet Fever), छोटी चेचक (Measles), डिप्थीरिया (Diphtheria) और टॉन्सिलाइटिस (Tonsillitis) जैसे गंभीर संक्रामक रोगों में होता है, खासकर जब दाने पूरी तरह से न उभरें या रोग अत्यंत गंभीर रूप ले ले।
Q2. एलैन्थस ग्लैंडुलोसा स्कारलेटीना के किस प्रकार में सबसे अधिक उपयोगी है?
यह स्कारलेटीना के तीसरे और सबसे भयंकर प्रकार 'Scarlatina maligna' में सबसे अधिक उपयोगी है, जहाँ गले में गंभीर सूजन होती है, दाने नहीं उभरते, और रोगी अत्यंत शिथिल व अचेत अवस्था में होता है।
Q3. क्या एलैन्थस ग्लैंडुलोसा के अन्य उपयोग भी हैं?
हाँ, एलैन्थस ग्लैंडुलोसा का उपयोग टाइफाइड, तंत्रिका तंत्र संबंधी समस्याओं (जैसे भ्रम और अनिद्रा), पाचन तंत्र के लक्षणों (जैसे दस्त और ऐंठन), सिरदर्द, श्वसन संबंधी समस्याओं और त्वचा पर चकत्तों व फफोलों के इलाज में भी किया जाता है।
यह सामग्री सिर्फ शैक्षिक उद्देश्यों के लिए है और इसे पेशेवर चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार का विकल्प नहीं माना जाना चाहिए।