Actaea Racemosa (Cimicifuga) – एक्टिया रेसिमोसा ( सिमिसीफ्यूगा)

संशोधित: 26 December 2025 ThinkHomeo

जानें एक्टिया रेसिमोसा (Actaea Racemosa / Cimicifuga) होम्योपैथी दवा के उपयोग, लक्षण, स्त्री रोग, गठिया, मानसिक लक्षण और प्रसव में लाभकारी प्रभाव।

Actaea Racemosa  (Cimicifuga)  – एक्टिया रेसिमोसा ( सिमिसीफ्यूगा)

डॉ. केंट (Dr. Kent) का कहना है कि इस औषधि की परीक्षा बहुत सीमित क्षेत्र में हुई है, फिर भी यह कई रोगों में कारगर सिद्ध हुई है। इसकी मुख्य उपयोगिता स्त्रियों के रोगों में पाई जाती है, जिनमें से मुख्य हिस्टीरिया (hysteria) तथा गठिया (rheumatism) जैसे वात-रोग हैं।

1. हिस्टीरिया (Hysteria) के लक्षण

  • सोते समय मांसपेशियों में कंपन (twitching) तथा उससे अनिद्रा (insomnia)। 
  • जैसे ही रोगी सोने के लिए बिस्तर पर लेटती है, तब जिस तरफ लेटती है उसी तरफ की मांसपेशियों में कंपन होने लगता है। अगर वह पीठ के बल लेटे तो पीठ की मांसपेशियों में कंपन शुरू हो जाता है, कंधों में कंपन शुरू हो जाता है। बाईं, दाईं, सीधे किसी तरफ लेटने से उसी तरफ का कंपन होना उसे बेचैन कर देता है और वह सो नहीं पाती। 
  • कभी कंपन, कभी सुन्नपन (Numbness), कभी दर्द—ठीक उसी तरफ जिधर वह लेटती है—यह एक विलक्षण लक्षण (Peculiar Symptom) है जो इस औषधि में पाया जाता है।

2. रजो-धर्म (menstruation) के दिनों में लक्षणों में वृद्धि

  • रजो-धर्म के विषय में रोगी से पूछना चाहिए कि उसके लक्षण रजो-धर्म से पहले बढ़ते हैं, रजो-धर्म के दिनों में बढ़ते हैं, या रजो-धर्म के बाद बढ़ते हैं।
  • प्रायः रजो-धर्म हो जाने से स्त्रियों की तकलीफें घट जाती हैं, यह स्वाभाविक है। परंतु एक्टिया रेसिमोसा का विशेष लक्षण यह है कि जब रजो-धर्म हो रहा होता है, उस समय रोगी की तकलीफें बढ़ जाती हैं, और जितना ही अधिक रज-स्राव जारी होता है उतनी ही उसकी तकलीफें बढ़ती हैं।
  • रजो-धर्म के दिनों में स्त्री में उदासी, रुलाई, अविश्वास, मांसपेशियों का कंपन, सुन्नपन—जिधर लेटती है उधर ही माँसपेशियाँ फड़कने लगती हैं, बेचैनी से वह बिस्तर पर उठ बैठती है, सो नहीं सकती—ये सब उपद्रव रजो-धर्म के दिनों में प्रकट होते हैं, और रजो-धर्म के निकल जाने पर ये लक्षण भी जाते रहते हैं। 
  • लैकेसिस (Lachesis) और ज़िंकम (Zincum) में इसके विपरीत होता है। इनमें रजो-धर्म के होने से स्त्री को सब उपद्रव शांत हो जाते हैं, न होने पर बने रहते हैं।

3. शारीरिक लक्षणों के दबने पर मानसिक लक्षणों का प्रकट होना

  • कभी-कभी कोई शारीरिक लक्षण तेज दवाओं से दबा दिए जाते हैं, परंतु वे दबकर गहराई में जाकर मानसिक लक्षणों को उत्पन्न कर देते हैं। 
  • उदाहरण के लिए, अगर गठिया (rheumatism) को दबा दिया जाए, तो रोगी का मानसिक असंतुलन हो जाता है। कभी-कभी गठिया भी ठीक हो जाता है, मानसिक संतुलन भी बना रहता है, परंतु दस्त आने लगते हैं, पेट में दर्द होने लगता है, स्त्रियों में गर्भाशय (uterus) से खून आने लगता है।
  •  इस प्रकार स्रावों का प्रवाह रोग को शांत बनाए रखता है। शारीरिक लक्षण हटकर मानसिक लक्षण प्रकट होना या मानसिक लक्षण हटकर शारीरिक लक्षण प्रकट होना इस औषधि का विशेष गुण है।
  • एक्टिया रेसिमोसा की रोगी एक दिन आकर कहती है कि उसके सारे शरीर में दर्द होता है, जिस तरफ भी लेटे उस तरफ की माँस-पेशियाँ फड़कने लगती हैं। इस कारण वह उठ बैठती है, इसी कारण रात को नींद नहीं आती। 
  • अगली बार आकर अपने शारीरिक कष्ट की कोई बात नहीं कहती, सिर्फ इतना कहती है कि जी घबराया रहता है, कुछ करने को जी नहीं करता, रो-रोकर अपना दिल हल्का करना चाहती है, कहती है रोने को जी करता है। 
  • शारीरिक लक्षणों के दब जाने पर मानसिक लक्षणों का प्रकट हो जाना और मानसिक लक्षणों के दब जाने पर शारीरिक लक्षणों का प्रकट होना इस औषधि का विशेष गुण है।

4. तुलनाएँ

4.1 एक्टिया रेसिमोसा तथा पल्सेटिला (Pulsatilla):

  • लक्षणों में परिवर्तनशीलता -  एक्टिया रेसिमोसा की तरह पल्सेटिला में भी पाई जाती है, परंतु एक्टिया शीत-प्रधान औषधि है, पल्सेटिला उष्णता-प्रधान औषधि है। पल्सेटिला में रोग अपना स्थान बदलता है, रूप नहीं बदलता। अगर घुटने में दर्द है तो वह दर्द दूसरे घुटने में हो या अन्य कहीं जा सकता है, परंतु दर्द दर्द ही बना रहेगा, कोई और (अन्य) रूप धारण नहीं करेगा। एक्टिया रेसिमोसा में दर्द बदलकर मानसिक रूप धारण कर लेता है- उदासी, निराशा, रोना, जीवन से उपरामता आदि।

4.2 एक्टिया रेसिमोसा तथा एब्रोटीनम (Abrotanum): 

  • इस दृष्टि से एक्टिया रेसिमोसा की एब्रोटीनम से तुलना की जा सकती है, परंतु उसमें एक शारीरिक लक्षण दबकर दूसरा शारीरिक लक्षण—बिल्कुल नया लक्षण—प्रकट हो जाता है, मानसिक लक्षण नहीं। 
  • उदाहरण के लिए, एब्रोटीनम में दस्त दबकर गठिया हो जाएगा, बवासीर (piles) हो जाएगी, कर्णमूल (Mumps) दबकर फोड़े बन जाएंगे। 
  • एक्टिया रेसिमोसा का एब्रोटीनम की अपेक्षा मन पर, स्नायु-मंडल (nervous system) पर अधिक प्रभाव है।

4.3 एक्टिया रेसिमोसा और इग्नेशिया (Ignatia): 

  • लक्षणों की परिवर्तनशीलता इग्नेशिया में भी पाई जाती है। इग्नेशिया भी एक्टिया की तरह शीत-प्रधान है, परंतु भेद यह है कि इग्नेशिया की बीमारी अधिकतर दुःख के कारण होती है। किसी का पति मर गया, किसी की स्त्री मर गई, कोई अनुचित प्रेम से व्याकुल है। इस प्रकार के दुःख-जनित (Grief-induced) रोगों में इग्नेशिया का उपयोग किया जाता है।

5. तीसरे महीने गर्भपात (miscarriage) हो जाना तथा प्रसव सहज होना

  • डॉ. क्लार्क (Dr. Clarke) कहते हैं कि अगर तीसरे महीने गर्भपात हो जाता हो, तो ऐसी दशा में प्रसव के एक या दो मास पूर्व से एक्टिया रेसिमोसा की 3x की एक मात्रा प्रति 3 घंटे में सेवन कराई जाए, तो गर्भपात नहीं होता। 
  • सैबाइना (Sabina) भी तीसरे महीने के गर्भपात को रोकती है। 
  • पाँचवें या सातवें महीने गर्भपात होता हो, तो सीपिया (Sepia) 30 की प्रति चार घंटे के बाद मात्रा सेवन कराई जाए तो गर्भपात नहीं होता। 
  • जिन स्त्रियों को स्वभावतः गर्भपात हो जाता है उन्हें वाइबर्नम (Viburnum) के मदर टिंचर (mother tincture) के 4-5 बूंद प्रतिदिन देने चाहिए। 
  • डॉ. केंट का कथन है कि यद्यपि अनेक बार एक्टिया रेसिमोसा के देने से प्रसव में आसानी हो जाती है, तो भी इसे नियमित रूप से देना होम्योपैथी नहीं है। रोगी के अन्य लक्षणों को भी ध्यान में रखना चाहिए। यह ठीक है कि प्रसव के अंतिम दिनों में इसे देने से प्रसव-पीड़ा में कमी आती है।

6. एक्टिया रेसिमोसा तथा कॉलोफाइलम (Caulophyllum)

  • डॉ. क्लार्क ने एक्टिया रेसिमोसा के विषय में लिखा है कि प्रसव के कुछ दिन पहले इसे देने से प्रसव आसानी से हो जाता है, 
  • वैसे ही डॉ. डगलस बोरलैंड (Dr. Douglas Borland) का कहना है कि प्रसव के एक मास पूर्व से कॉलोफाइलम (Caulophyllum) की निम्न-शक्ति (low-potency) की एक मात्रा प्रतिदिन देने से प्रसव में कोई पीड़ा नहीं होती और बच्चा आसानी से हो जाता है।

7. अतिरिक्त उपयोग

7.1 मानसिक एवं भावनात्मक लक्षण

  • उदासी और अवसाद (Depression): यह दवा उन लोगों के लिए बहुत उपयोगी है जो बहुत उदास और निराश महसूस करते हैं, खासकर जब यह उदासी किसी शारीरिक समस्या, जैसे मासिक धर्म की गड़बड़ी या गठिया, के साथ जुड़ी हो। रोगी को लगता है कि उस पर एक काला बादल छाया हुआ है और भविष्य अंधकारमय है।
  • अकेले रहने का डर: रोगी को अक्सर अकेले रहने से डर लगता है। वह अकेलापन पसंद नहीं करता और चाहता है कि कोई उसके साथ हो।
  • हतोत्साह (Discouragement): वह अपने जीवन और भविष्य को लेकर हतोत्साहित होता है और उसे लगता है कि उसके सभी काम असफल होंगे। यह भावना अक्सर शारीरिक कष्टों के साथ बदलती रहती है।

7.2 सिरदर्द और स्नायु संबंधी दर्द

  • गर्दन और रीढ़ (spine) में दर्द: यह दवा गर्दन के पिछले हिस्से और ऊपरी रीढ़ (upper spine) के दर्द में बहुत प्रभावी है। दर्द अक्सर ऐंठन (cramping) या खिंचाव (stiffness) के रूप में होता है और ठंडी हवा या नमी से बढ़ जाता है।
  • गर्भाशय (uterus) से संबंधित सिरदर्द: इस दवा का सिरदर्द अक्सर गर्भाशय की समस्याओं से जुड़ा होता है। दर्द सिर के पिछले हिस्से से शुरू होकर आँखों तक फैल सकता है।
  • तंत्रिकाशूल (Neuralgia): यह दवा स्नायु-शूल (neuralgia) के दर्द को कम करती है, खासकर जब यह दर्द मांसपेशियों में ऐंठन और झटके (twitching) के साथ आता है।

7.3 अन्य शारीरिक लक्षण

  • गर्दन में अकड़न (Stiffness of neck): रोगी की गर्दन की मांसपेशियाँ अकड़ जाती हैं, जिससे सिर को घुमाने में दर्द होता है।
  • खांसी: सूखी, ठंडी हवा से होने वाली खांसी में भी यह दवा लाभदायक है। खांसी अक्सर रात में या जब रोगी लेटता है, तब बिगड़ जाती है।
  • सोने में परेशानी: जैसा कि आपके आलेख में उल्लेख किया गया है, रोगी को मांसपेशियों के कंपन के कारण सोने में दिक्कत होती है। यह बेचैनी उसे बार-बार बिस्तर पर करवट बदलने के लिए मजबूर करती है।

8. गठिया (विवरण)

  • इसका रोगी शीत-प्रधान (chilly) होता है, 
  • सर्दी और नम हवा से उसके शरीर में गठिया के रोग की दशा उत्पन्न हो जाती है।
  •  केवल मांसपेशियों और जोड़ों में ही दर्द नहीं होता, सारे शरीर में दर्द होने लगता है,
  •  स्नायु-मार्ग (nerve-pathways) में, नसों (veins) में दर्द होता है। यकृत (liver) और गर्भाशय (uterus) में भी नम-मौसम के शीत से दर्द होता है, सारे शरीर में इस शीत से दर्द होता है, परंतु सिर में वह ठंडी हवा चाहता है।
  •  रोगी शीत-प्रधान है—यह तो रोगी का 'व्यापक' (General) रूप है, परंतु सिर ठंडक चाहता है—यह रोगी का 'एकांतिक' (Particular) रूप है। यह हम पहले ही कह चुके हैं कि जब रोगी के शारीरिक कष्ट—गठिये का दर्द आदि—दब जाते हैं तब उसके मानसिक कष्ट—हतोत्साह, निराशा, रुलाई—आदि प्रकट होने लगते हैं, और जब उसके मानसिक कष्ट प्रकट होते हैं तब उसके शारीरिक कष्ट दब जाते हैं। 
  • इस दृष्टि से इसे 'मूर्छा तथा वात-ग्रस्त प्रकृति' (Hysterio-rheumatic constitution) का रोगी कह सकते हैं।

9. इस औषधि के अन्य लक्षण

  • प्रसव के बाद ठंड लग जाने से पागलपन या डेलिरियम (Delirium)
  • प्रसव के बाद गर्भाशय (uterus) के निर्बल संकोचन (weak contraction) के न होने से मैला पानी (Lochia) या अपरा (Placenta) के न निकलने पर इसे दिया जाता है।
  • गर्भाशय में दर्द (Uterine neuralgia) जो कभी एक ओर कभी दूसरी ओर जाता है, इसके लिए यह महौषधि है। यदि यह दर्द दाईं तरफ से बाईं तरफ जाए, तो लाइकोपोडियम (Lycopodium) और अगर बाईं तरफ से दाहिनी तरफ जाए, तो इपिकाक (Ipecac) या लैकेसिस (Lachesis) उपयोगी है।
  • रजो-धर्म की खराबी के कारण शरीर में बिजली के शॉक (Shock) के समान स्नायु-शूल (Neuralgia) को यह ठीक करता है।
  • गर्भाशय से संबद्ध सिर-दर्द। एक्टिया का सिर-दर्द आँख से शुरू होकर सिर की चोटी या उसके ठीक पीछे सिर की गुद्दी तक फैल जाता है। 
  • स्पाइजीलिया (Spigelia) का सिर दर्द सिर की पीछे की बाईं तरफ से शुरू होकर, सिर के ऊपर चोटी से होता हुआ बाईं आँख पर आ टिकता है।
  • एक्टिया रेसिमोसा का सिर-दर्द दिन की अपेक्षा रात को अधिक होता है,
  • इसके विपरीत स्पाइजीलिया का सिर दर्द दिन को अधिक होता है, सूर्योदय से प्रारंभ होता है और सूर्यास्त तक बना रहता है। 
  • प्रतिदिन ठीक एक ही समय बाईं आँख के आस-पास दर्द हो तो सिड्रन (Cedron) उपयोगी है।

10. शक्ति तथा प्रकृति

  • डॉ. केंट कहते हैं कि यह औषधि 30, 200, 1000 तथा इससे भी ऊँची शक्ति (potency) का अच्छा काम करती है। 
  • औषधि 'सर्दी' (Chilly)-प्रकृति के लिए है।

11. व्यापक लक्षण (General Symptoms) तथा मुख्य रोग (Main Diseases)

  • स्त्री-रोग (Gynecological diseases): यह स्त्री-रोगों में विशेष रूप से उपयोगी है।
  • गठिया (Rheumatism): यह नमी के कारण शरीर की मांसपेशियों, जोड़ों, सिर, गर्भाशय (uterus) आदि में होने वाले दर्द के लिए प्रभावी है।

12. प्रकृति (Modalities)

  • लक्षणों में कमी (Better): गर्म कपड़े पहनने से, खाने से।
  • लक्षणों में वृद्धि (Worse): रजो-धर्म के समय, ठंड से।

एक्टिया रेसिमोसा का सारांश

एक्टिया रेसिमोसा एक प्रमुख होम्योपैथिक औषधि है जो मुख्य रूप से स्त्रियों के रोगों और गठिया में उपयोगी है। इसकी एक विशेष विशेषता यह है कि यह शरीर के शारीरिक और मानसिक लक्षणों में परिवर्तन (Alternation) लाती है। उदाहरण के लिए, जब शारीरिक कष्ट (जैसे गठिया का दर्द) कम होता है, तो मानसिक कष्ट (उदासी, निराशा, रोना) प्रकट हो जाता है, और इसका विपरीत भी सच होता है।

इस दवा का उपयोग हिस्टीरिया में, रजो-धर्म (मासिक धर्म) संबंधी विकारों में और प्रसव को सहज बनाने में किया जाता है। रजो-धर्म के दौरान लक्षणों का बढ़ना इसका एक विशिष्ट लक्षण है, जो पल्सेटिला और ज़िंकम जैसी अन्य दवाओं के विपरीत है। एक्टिया रेसिमोसा की रोगी शीत-प्रधान प्रकृति की होती है, और उसके लक्षण नमी और ठंड से बिगड़ते हैं। यह जोड़ों, मांसपेशियों और स्नायुओं में होने वाले दर्द के लिए भी प्रभावी है।

यह औषधि तीसरे महीने में होने वाले गर्भपात को रोकने में मदद कर सकती है और प्रसव को आसान बना सकती है। इसका उपयोग प्रसव के बाद की समस्याओं जैसे कि मैंला पानी या अपरा के न निकलने पर भी किया जाता है। कुल मिलाकर, एक्टिया रेसिमोसा शरीर और मन के बीच के संबंध को प्रभावित करने वाली एक महत्वपूर्ण दवा है, खासकर जब लक्षण एक रूप से दूसरे रूप में बदलते रहते हैं।

FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

Q1. एक्टिया रेसिमोसा का उपयोग किन रोगों में होता है? 

एक्टिया रेसिमोसा का उपयोग मुख्य रूप से स्त्री-रोग, गठिया (rheumatism) और हिस्टीरिया (hysteria) जैसे रोगों में होता है। यह शारीरिक लक्षणों के दबने पर प्रकट होने वाले मानसिक लक्षणों के लिए भी प्रभावी है।

Q2. मासिक धर्म के दौरान एक्टिया रेसिमोसा के लक्षण कैसे होते हैं?

एक्टिया रेसिमोसा का एक विशिष्ट लक्षण यह है कि मासिक धर्म के दिनों में रोगी की शारीरिक और मानसिक तकलीफें बढ़ जाती हैं। जैसे-जैसे रक्तस्राव बढ़ता है, बेचैनी, मांसपेशियों का कंपन और उदासी भी बढ़ती है।

Q3. क्या यह औषधि प्रसव में मदद करती है? 

हाँ, एक्टिया रेसिमोसा तीसरे महीने में होने वाले गर्भपात को रोकने में मदद कर सकती है और प्रसव के अंतिम दिनों में देने से प्रसव पीड़ा में कमी आती है और प्रसव आसान हो जाता है।

यह सामग्री सिर्फ शैक्षिक उद्देश्यों के लिए है और इसे पेशेवर चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार का विकल्प नहीं माना जाना चाहिए।

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