Aloe Socotrina – ऐलो सोकोट्रिना (घी-क्वार)

संशोधित: 21 December 2025 ThinkHomeo

एलो (Aloe) के व्यापक लक्षणों और उपयोगों के बारे में जानें, जिसमें खाने के बाद शौच का वेग न रोक पाना, पेट में गड़गड़ाहट, बादी बवासीर, और जिगर (Liver) के रोग शामिल हैं। जानें कि यह नक्स वोमिका और सल्फर से कैसे भिन्न है।

Aloe Socotrina – ऐलो सोकोट्रिना (घी-क्वार)

एलो (Aloe) होम्योपैथी की एक प्रमुख औषधि है जो मुख्य रूप से गुदा-प्रदेश (anal region) और पाचन तंत्र (digestive system) के विकारों में उपयोग की जाती है।

मुख्य लक्षण तथा रोग:

  1. खाने या पीने के तुरंत बाद शौच का वेग धारण न कर सकना: गुदा की मांसपेशियों की कमजोरी के कारण।
  2. गुदा-प्रदेश में बोझ अनुभव करने के कारण उधर ध्यान अटके रहना: लगातार गुदा क्षेत्र में भारीपन का एहसास।
  3. अपान-वायु (Flatus- गैस) या मूत्र के साथ शौच निकल पड़ना: अनजाने में मल का बाहर निकलना।
  4. कठिन-मल का स्वयं निकल पड़ना: कब्ज की स्थिति में भी मल का अनायास निकलना।
  5. गाढ़ी आँव का निकल पड़ना (Colitis - आंतों की सूजन) तथा बवासीर (Piles): पेट की सूजन और बवासीर के मस्सों में उपयोगी।
  6. डिसेंटरी (Dysentery - पेचिश) में पेट में गड़गड़ाहट होना: पेचिश के साथ पेट में तेज़ आवाज़ आना।
  7. बीयर पीने से डायरिया (Diarrhea) होना: डायरिया में डॉ. डनहम (Dr. Dunham) का विशेष अनुभव।
  8. यह जिगर (Liver – यकृत) के रोग की मुख्य दवा है: यकृत संबंधी समस्याओं में प्रमुखता।
  9. एलो, नक्स, सल्फर (Aloe, Nux, Sulphur) की तुलना: विभिन्न औषधियों से तुलनात्मक अध्ययन।
  10. मानसिक और भावनात्मक लक्षण: एलो के रोगी की मानसिक स्थिति का अध्ययन।
  11. शक्ति तथा प्रकृति: एलो एक उष्ण (Hot) प्रकृति की औषधि है।
  12. अन्य शारीरिक लक्षण: एलो के रोगी के अन्य शारीिक लक्षण।

प्रकृति (Modalities)

लक्षणों में कमी (Better):

  • ठंडे कमरे में रोग में कमी।
  • खुली हवा में (पल्स (Pulsatilla) की तरह) रोग में कमी।
  • पाखाना के बाद अच्छा अनुभव करना।

लक्षणों में वृद्धि (Worse):

  • खाने-पीने के बाद रोग में वृद्धि।
  • गर्मी से रोग में वृद्धि।
  • गर्म मौसम में रोग में वृद्धि।
  • नम मौसम में रोग में वृद्धि।
  • प्रातः 2 बजे से 9 बजे तक रोग में वृद्धि।
  • सवेरे बिस्तर से उठते ही वृद्धि।

1. खाना खाने या पानी पीने के तुरंत बाद शौच का वेग धारण न कर सकना

  • गुदा-प्रदेश में ऐसी मांसपेशी होती हैं जिन्हें संकोचक-मांसपेशी (Sphincter ani) कहते हैं। संकोचक-मांसपेशी का काम मल को बाहर निकलने से रोकना है। एलो के रोगी की गुदा की संकोचक-मांसपेशी शिथिल पड़ जाती है और वह खाना खाते ही, पानी पीते ही शौचालय की ओर भागता है। वह शौच का वेग धारण नहीं कर सकता। 
  • प्रायः देखा गया है कि शौचालय तक पहुँचने से पहले ही शौच निकल पड़ता है और उसके कपड़े खराब हो जाते हैं।

2. गुदा-प्रदेश में बोझ अनुभव करने के कारण उधर ध्यान अटके रहना

  • क्योंकि गुदा की संकोचक-मांसपेशी शिथिल हो जाती है, इसलिए उस प्रदेश में ज़रा-सा भी मल इकट्ठा होने पर रोगी का उधर ही ध्यान अटका रहता है, क्योंकि उसे डर रहता है कि कहीं मल अपने आप बाहर न निकल पड़े।

3. अपान-वायु (Flatus- गैस) या मूत्र के साथ शौच निकल पड़ना

  • रोगी के पेट से जब अपान-वायु (Flatus) का अपसरण (Expulsion - बाहर निकलना) होता है, या जब वह पेशाब करने लगता है, तब पेट से हवा निकलने के साथ, या पेशाब करते हुए, शौच भी निकल पड़ता है। यह सब इसका कारण गुदा की संकोचक-मांसपेशी की शिथिलता है।

4. कठिन मल का अनायास, स्वयं निकल पड़ना

  • कभी-कभी बच्चे को पता न रहने पर भी कठिन मल-लेंड (hard stool) के समान-अनायास बिस्तर में निकल पड़ता है। 
  • डॉ. नैश (Dr. Nash) ने एक बालक का उल्लेख करते हुए लिखा है कि वे उसकी कब्ज के लिए चिकित्सा कर रहे थे, परंतु एनीमा (enema) से भी उसे बहुत थोड़ा-सा ही मल निकलता था। एक दिन उन्होंने देखा कि बच्चे के बिस्तर पर शौच का एक लेंड पड़ा हुआ है। माता से पूछने पर पता चला कि उसे प्रायः ऐसा होता है, पता नहीं कब यह निकल पड़ता है। 
  • उस बच्चे को 200 शक्ति (potency) का एलो दे दिया गया और उसका कब्ज का रोग ठीक हो गया।

5. गाढ़ी आँव का निकल पड़ना (Colitis) तथा बवासीर (Piles)

  • इसका रोगी जब शौच करता है, तो कभी-कभी शौच से पहले एक प्याला भर जेली के समान गाढ़ी आँव (mucus) निकल पड़ती है। यह आँव आंत्र (intestines) में सूजे हुए हिस्से में जमा होती रहती है और या तो शौच इस आँव से लिपटा रहता है, या सिर्फ आँव ही निकलती है। आँव निकलने के बाद गुदा में जलन होती है।

बवासीर (Piles):

  • गुदा-प्रदेश में भारीपन का अनुभव होना एलो के हर रोग में पाया जाता है। 
  • यह भारीपन शौच के एकत्रित हो जाने से हो सकता है, गुदा प्रदेश में आँव का हो सकता है, या जिगर के रोग से भी हो सकता है। 
  • एलो में बवासीर के मस्से आँव से सने रहते हैं क्योंकि गुदा-प्रदेश में एकत्रित आँव संकोचक-पेशियों की शिथिलता के कारण बाहर रिसती रहती है, और इन मस्सों को भिगोती रहती है। इस बवासीर में खुजली बहुत मचती है, इन मस्सों में स्पर्श-असहष्णुता (Sensitiveness to touch - छूने पर संवेदनशीलता) होती है, और ठंडे पानी से मस्सों को धोने से रोगी को चैन पड़ता है। 
  • एलो की प्रकृति में है कि एलो का रोगी ठंड पसंद करता है।

बवासीर के सिलसिले में एलो की तुलना क्रोमियम (Chromium) और म्यूरिएटिक एसिड (Muriatic Acid) से की जा सकती है। भेद यह है कि ब्रोमियम के मस्सों पर मुख का सलाइवा (saliva) लगाने से आराम मिलता है, और म्यूरिएटिक एसिड की बवासीर में ठंडे की जगह गर्म पानी से आराम मिलता है। जबकि एलो में ठंडे पानी से आराम मिलता है।

बवासीर के रोग में मुख्य-मुख्य औषधियाँ: 

नक्स वोमिका (Nux Vomica) और सल्फर (Sulphur): 

  • प्रातः सल्फर 30 और सूर्यास्त के समय सोने 3 घंटे पहले नक्स वोमिका 30 देने से प्रायः बवासीर का रोग दूर हो जाता है। 
  • मेहनत न करना, बैठे रहना, घी तथा चटपटे पदार्थ खाना-इससे बवासीर हो, तो नक्स ज्यादा फायदा करता है। 
  • पुरानी बवासीर (खून रहे या न रहे) सल्फर ज्यादा फायदा करता है। 

एकोनाइट (Aconite) तथा हैमेमेलिस (Hamamelis): 

एस्क्युलस (Aesculus): 

  • प्रायः बादी बवासीर में जहाँ अशुद्ध-रक्त (impure blood) द्वारा शिराशोथ (Veinous congestion - नसों में रक्त का जमाव) से मस्से बन जाएँ वहाँ यह उपयोगी है।

कॉलिनसोनिया (Collinsonia):

  •  एस्क्युलस की तरह इसमें भी ऐसा अनुभव होता है कि गुदा में तिनके चुभ रहे हैं, परंतु एस्क्युलस प्रायः बादी और कॉलिनसोनिया खूनी बवासीर में उपयोगी है। 
  • एस्क्युलस में कब्ज उतना नहीं रहता, कॉलिनसोनिया में बवासीर के साथ कब्ज जरूरी है। इसमें कब्ज इतना होता है कि डॉ. नैश ने एक रोगी का कब्ज जो दो सप्ताह में एक बार पाखाना जाता था इससे दूर कर दिया। इस कब्ज से ही बवासीर हो जाती है। 

म्यूरिएटिक एसिड (Muriatic Acid):

  •  इसमें मस्से नीले रंग के होते हैं, और उनमें उतनी स्पर्श-असहष्णुता (Sensitiveness to touch) होती है कि बिस्तर की चादर का स्पर्श भी सहन नहीं होता। 
  • गर्म पानी से धोने से आराम मिलता है। 
  • एलो में ठंडे पानी से धोने से आराम मिलता है। 

आर्सेनिक (Arsenic): 

  • भारी जलन, ऐसा मालूम होता जैसे बवासीर के मस्सों में से गर्म सुई निकल रही है। मस्से बाहर निकलना और सेंकने से आराम होना। रे

रटन्हेया (Ratanhia): 

  • पाखाना फिरन के बाद समूचे मल-द्वार (Rectum - गुदा) में असहज जलन, यहाँ तक कि ढीला पाखाना होने पर भी जलन होती है, मस्से बाहर आ जाते हैं। उक्त लक्षणों के साथ औषधि की अन्य लक्षणों को भी मिलाकर देखने का प्रयत्न करना चाहिए, तभी सम-लक्षण वाली (similar-symptom) दवा सामने आती है।
  •  केवल एक ही लक्षण पर भरोसा करना ठीक नहीं।

6. डिसेंटरी (Dysentery) में पेट में गड़गड़ाहट का शब्द होना

  • अगर डिसेंटरी में यह लक्षण उपस्थित हो कि पेट में गड़गड़ाहट के साथ ऐसा शब्द हो जैसे बोतल में से पानी गड़गड़ करके बह रहा है, तब यह एलो का विशेष-लक्षण (Characteristic symptom - विशेष या प्रमुख लक्षण) है। 
  • दस्त के साथ अगर गड़गड़ाहट न हो, तो एलो कदाचित (Perhaps- शायद या संभवतः) ही व्यवहार में आता है। 
  • पोडोफाइलम (Podophyllum) में भी गड़गड़ाहट है, परंतु उसके दस्त मध्याह्न से पूर्व बंद हो जाते हैं।

7. बीयर पीने से डायरिया (Diarrhea) होना

एलो के डायरिया (Diarrhea) के संबंध में डॉ. डनहम (Dr. Dunham) का अनुभव: 

  • जो लोग बीयर पीने के आदी होते हैं, उन्हें प्रायः डायरिया हो जाता है। ऐसे व्यक्तियों को जो जब भी बीयर पिएँ, परिणामस्वरूप डायरिया हो जाए, एलो बहुत लाभ पहुँचाता है। कभी-कभी एलो लाभ न पहुँचाए तो कैलि बाईक्रोम (Kali Bichrome) इस अवस्था में उपयोगी सिद्ध होता है।

डायरिया में डॉ. डनहम का एलो के विषय में अनुभव: 

  • एक डायरिया के रोग को जिसे कैल्केरिया (Calcarea), नक्स (Nux), ब्रायोनिया (Bryonia), आर्सेनिक (Arsenic) आदि दिया गया था कोई लाभ न हुआ। उसके लक्षणों को लेते हुए पता चला कि उसे जब दस्त आता था तब पेट में बड़े जोर से गड़गड़ाहट होती थी। दस्त का वेग इतना प्रबल होता था कि सवेरे 2 बजे बाद निंद्रा (sleep) से उसे उठ बैठना पड़ता था। 2 बजे से 9 बजे तक उसे 3-4 पतले, गड़गड़ाहट के साथ दस्त आ जाते थे। दिन या रात को किसी अन्य समय दस्त नहीं आते थे। जब दस्त की हाजत (Urge - तीव्र इच्छा या ज़रूरत) होती थी तब उसे एकदम शौचालय में भागना पड़ता। उसे ऐसा प्रतीत होता था कि वह दस्त को रोक ही नहीं सकता। गुदा की मांसपेशी में उसे ऐसी शिथिलता अनुभव होती थी कि शौच को रोकना असंभव प्रतीत होता था। उसे 10 बजे एलो 200 की एक मात्रा दी गई और वह ठीक हो गया। 
  • औषधि देने का समय वह होता है जब रोग का वेग शांत हो गया। क्योंकि 9 बजे बाद उसे दस्त नहीं आते थे इसलिए 10 बजे औषधि दी गई।

डॉ. डनहम का सिर दर्द के एक रोगी का वर्णन:  

  • केवल सिर-दर्द के लक्षण पर किसी औषधि का निर्धारण नहीं किया जा सकता। 
  • वह 70 वर्ष का व्यक्ति था। उसे सिर के अग्रभाग में धीमा-धीमा सिर-दर्द रहता था जिससे वह काम-काज का सर्वथा अयोग्य (unfit) हो गया था। 
  • हनीमैन (Hahnemann) तथा बुनिंघासन (Bönninghausen) ने ऐसे समय में रोगी को पहले की हिस्ट्री (history) लेने का परामर्श दिया है। जब रोगी का पूर्व-इतिहास (past history) पूछा गया, तो पता चला कि ग्रीष्म-ऋतु में उसे प्रायः डायरिया हो जाता है, जो रात को 2 बजे शुरू होता है और उसका वेग इतना प्रबल होता है कि उसे दौड़कर शौचालय की शरण लेनी पड़ती है क्योंकि उसे डर रहता है कि कहीं बीच में ही मल निकल जाए। 
  • उसे एलो देने से सिर दर्द ठीक हो गया। 
  • डॉ. डनहम का कहना है कि पुराने रोगों में उपचार का तरीका यह है कि रोगी को भिन्न-भिन्न समयों में जो कठिन रोग हो चुके हैं, या भिन्न-भिन्न अंगों में उनका प्रकाश होता रहता हो, भले ही उनका वर्तमान-रोग से कोई संबंध न हो, उन सबको सामने रखकर वर्तमान-रोग का उपचार करने से लाभ होता है।

8. यह जिगर (Liver – यकृत) के रोग की मुख्य दवा है

  • डॉ. केंट (Dr. Kent) कहते हैं कि एलो जिगर (Liver – यकृत) के रोग की मुख्य औषधि है। 
  • यह औषधि दीर्घ-कालिक (Chronic - लंबे समय तक चलने वाली) या गहराइयों में जाने वाली नहीं है, इतनी गहराई में जाने वाली जितनी सल्फर है, परंतु लिवर के रोगों में यह प्रायः रोग की तीव्रता को कम कर देती है, परंतु उसके बाद इसकी अनुपूरक (Complementary - पूरक) औषधि सल्फर, कैली बाईक्रोम या सीपिया (Sepia) देने से रोग जड़-मूल से चला जाता है। 
  • एलो, सल्फर की तरह तो गहरी नहीं है परंतु एकोनाइट (Aconite) और बैलेडोना (Belladonna) की तरह बिल्कुल अल्पकालिक (Short-acting) भी नहीं है। यह इन दोनों के बीच की दवा है।

9. विभिन्न औषधियों से तुलनात्मक अध्ययन:

एलो तथा नक्स की तुलना

  • नक्स में शौच जाने की बार-बार इच्छा होती है क्योंकि आँतें ही शौच को एक बार में नहीं निकाल सकतीं; एलो में इसके विपरीत आँतें ही शौच को रोक नहीं सकतीं, इसलिए वह अपने-आप निकल पड़ता है। 
  • नक्स में गुदा की संकोचक-मांसपेशी उत्तेजित रहती है, इसलिए बार-बार थोड़ा-थोड़ा शौच आता है; एलो में यह मांसपेशी शिथिल रहती है, इसलिए शौच को रोकना कठिन हो जाता है।

एलो और सल्फर की तुलना: 

  • एलो तथा सल्फर में गहरा संबंध है। दोनों में प्रातः बिस्तर से उठते ही शौच के लिए भागना पड़ता है, दोनों में पैर जलते हैं, दोनों में त्वचा में गर्मी (Heat of the surface of the body) पायी जाती है। 
  • इनमें भेद यह है कि एलो का रोगी खाना खाने के बाद झट शौचालय को दौड़ता है, सल्फर का रोगी सोने से उठते ही शौचालय को दौड़ता है।

10. मानसिक और भावनात्मक लक्षण

  • एलो उन व्यक्तियों के लिए बहुत उपयोगी है जो स्वभाव से चिड़चिड़े (irritable) और अधीर (impatient) होते हैं और बहुत जल्दी थक जाते हैं। 
  • यह निराशा और अवसाद (depression - डिप्रेशन/उदासी) के मामलों में भी प्रभावी है। 
  • ऐसे व्यक्तियों में अक्सर अकेला और शांत रहने की तीव्र इच्छा देखी जाती है।

11. शक्ति तथा प्रकृति

  • यह ऊष्ण (Hot) प्रकृति की औषधि है
  • गर्मी से रोग का बढ़ना तथा ठंड से घटना इस औषधि का प्रकृतिगत लक्षण (constitutional symptom) है जो इसके सब रोगों में पाया जाता है। 
  • रोगी ठण्डे कमरे में रहना चाहता है, गर्मी तथा गर्म लपटें अनुभव करता है, उसकी त्वचा गर्म और खुश्क होती है, बिस्तर में रात को कपड़ा उतार फेकना चाहता है। 
  • सिर गर्म महसूस होता है, वहाँ ठंडक चाहता है।
  • गुदा प्रदेश के रोग में 3 शक्ति (potency) की कुछ मात्रा देकर इन्तजार करना चाहिये। अन्य रोगों में 30, 200 का प्रयोग कर सकते हैं।

12. अन्य शारीरिक लक्षण

  • जिस रोग में औषधि की अधिक मात्रा देने से औषधि के लक्षण रोग में घुल-मिल गये हों, समझ न पड़े कि ये लक्षण औषधि के हैं या रोग के, वहाँ एलो से उपचार करने से लक्षण स्पष्ट हो जाते हैं। नक्स और सल्फर भी इसी दिशा में उपयुक्त हैं।

सिरदर्द और माइग्रेन (Migraine): एलो का उपयोग मतली (nausea - जी मिचलाना) के साथ होने वाले तेज सिरदर्द और माइग्रेन के इलाज में किया जाता है।

श्वसन (Respiratory - सांस संबंधी) संबंधी विकार: यह गले में खराश (sore throat - गले में दर्द) और खाँसी जैसे श्वसन विकारों को ठीक करने में भी मदद कर सकती है।

स्त्री रोग संबंधी समस्याएं: यह महिलाओं में गर्भाशय (uterine ) के संक्रमण और अत्यधिक रक्तस्राव (profuse bleeding - बहुत ज्यादा खून बहना) के साथ होने वाली मासिक धर्म की समस्याओं में भी राहत प्रदान कर सकती है।

सामान्य थकावट: यह एक ऊर्जा बूस्टर (energy booster) के रूप में कार्य करती है, विशेष रूप से वृद्ध लोगों और अत्यधिक नशीले पदार्थों का सेवन करने वालों में थकान और थकावट (fatigue and exhaustion ) को दूर करने के लिए।

एलो (Aloe) के उपयोगों का सटीक सारांश

  • एलो का सबसे प्रमुख उपयोग पाचन तंत्र (digestive system) के विकारों में होता है, विशेषकर जब रोगी शौच का वेग रोक न पाए और उसे सुबह बिस्तर से उठते ही या खाने-पीने के तुरंत बाद शौचालय जाना पड़े। इसके दस्त के साथ पेट में गड़गड़ाहट (gurgling) की आवाज आती है।
  • यह दवा बवासीर (piles) के लिए भी बहुत प्रभावी है, जिसमें गुदा में भारीपन महसूस होता है, मस्सों में खुजली और जलन होती है, और ठंडे पानी से धोने पर आराम मिलता है।
  • एलो उन व्यक्तियों के लिए भी उपयोगी है जो स्वभाव से चिड़चिड़े और अधीर होते हैं और निराशा या अवसाद (depression) से ग्रस्त हों। यह दवा उन रोगों के उपचार में भी सहायक है जिनका संबंध पाचन तंत्र से है, जैसे कि सिरदर्द, श्वसन विकार और थकान।

संक्षेप में, एलो एक ऐसी औषधि है जो कमजोर पाचन और गुदा की शिथिलता से उत्पन्न होने वाले विभिन्न शारीरिक और मानसिक लक्षणों को संबोधित करती है।

FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

Q1. एलो (Aloe) का मुख्य लक्षण क्या है? 

एलो का मुख्य लक्षण गुदा की संकोचक-मांसपेशी (Sphincter ani) की शिथिलता है, जिसके कारण रोगी खाने-पीने के तुरंत बाद शौच का वेग रोक नहीं पाता और शौचालय पहुँचने से पहले ही मल निकल जाता है।

Q2. एलो में बवासीर के मस्सों के लिए क्या विशिष्ट है? 

एलो में बवासीर के मस्सों में गुदा में भारीपन, खुजली और जलन होती है, और मस्से आँव से सने रहते हैं। रोगी को ठंडे पानी से धोने पर बहुत आराम मिलता है।

Q3. एलो और सल्फर (Sulphur) में क्या भेद है? 

दोनों में सुबह शौच के लिए भागना पड़ता है, लेकिन एलो का रोगी खाना खाने के तुरंत बाद शौचालय की ओर दौड़ता है, जबकि सल्फर का रोगी सोने से उठते ही शौचालय को दौड़ता है।

Q4. डॉ. डनहम ने बीयर पीने से डायरिया होने पर किस दवा के उपयोग का अनुभव किया? 

डॉ. डनहम ने अनुभव किया कि जिन व्यक्तियों को बीयर पीने के परिणामस्वरूप डायरिया हो जाता है, उनके लिए एलो बहुत लाभ पहुँचाती है।

Q5. एलो लिवर के रोगों में कैसे काम करती है? 

डॉ. केंट के अनुसार, एलो जिगर (Liver) के रोगों की मुख्य औषधि है जो रोग की तीव्रता को कम करती है, और इसके बाद सल्फर (Sulphur) या सीपिया (Sepia) जैसी अनुपूरक (Complementary) औषधियाँ देने से रोग जड़ से ठीक हो सकता है।

यह सामग्री सिर्फ शैक्षिक उद्देश्यों के लिए है और इसे पेशेवर चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार का विकल्प नहीं माना जाना चाहिए।

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