Belladonna – बेलाडोना

संशोधित: 23 December 2025 ThinkHomeo

Belladonna एक अल्पकालिक लेकिन शक्तिशाली होम्योपैथिक औषधि है, जो शोथ, ज्वर, रक्त-संचय, सिर-दर्द, और उन्माद जैसे तीव्र रोगों में उपयोगी है। यह औषधि विशेष रूप से उन रोगों में उपयुक्त है जो अचानक (Sudden onset) और प्रचंड (Violent) रूप में आते हैं।

Belladonna – बेलाडोना

बेलाडोना (Belladonna) एक 'सर्द' (Chilly) प्रकृति की अल्पकालिक (Short-acting) औषधि है, जिसका मुख्य प्रभाव रक्त-संचय (Congestion) और स्नायु-मंडल (Nervous System) की अत्यधिक उत्तेजना (hyperesthesia) पर होता है। यह औषधि विशेष रूप से उन रोगों में उपयुक्त है जो अचानक (Sudden onset) और प्रचंड (Violent) रूप में आते हैं।

मुख्य लक्षण तथा रोग (GENERALS AND PARTICULARS):

  1. शोथ (Inflammation) तथा ज्वर (Fever) में भयंकर उत्ताप (Heat), रक्तिमा (Redness) तथा बेहद जलन (Burning)।
  2. रक्त-संचय की अधिकता (Congestion): सिर दर्द, प्रलाप (Delirium), पागलपन (Insanity)।
  3. दर्द एकदम आता है और एकदम ही चला जाता है (Sudden onset and offset of pain)।
  4. रोग का प्रचंड तथा एकाएक रूप में आना (Violent and sudden onset)।
  5. प्रकाश (Light), शोर (Noise), स्पर्श (Touch) सहन न कर सकना (Hypersensitivity)।
  6. मूत्राशय की उत्तेजितावस्था (Irritation of the bladder)।
  7. असहिष्णु-जरायु (Sore uterus) से रक्तस्राव (Hemorrhage)।
  8. हिलने-डुलने (Motion), शीत (Cold), स्पर्शादि (Touch) से रोग-वृद्धि।
  9. दायीं तरफ प्रभाव करनेवाली औषधि है (Right-sided remedy)।
  10. दोपहर 3 बजे से रात तक रोग-वृद्धि।

प्रकृति (MODALITIES)

लक्षणों में कमी (Better):

  • हल्का ओढ़ना पसन्द।
  • बिस्तर में विश्राम पसन्द।
  • गर्म घर में सोना पसन्द।

लक्षणों में वृद्धि (Worse):

  • छूने से, गन्ध से, शब्द से।
  • वायु के झोंके से वृद्धि।
  • हिलने-डुलने से वृद्धि।
  • दिन के 3 बजे से रात तक।
  • सूर्य की गर्मी से रोग-वृद्धि।
  • बाल कटवाने से रोग-वृद्धि।

(1) शोथ तथा ज्वर में भयंकर उत्ताप, रक्तिमा तथा बेहद जलन (Violent heat, redness and intense burning in Inflammation and fever) -

  • डॉ० कैन्ट (Dr. Kent) कहते हैं कि बेलाडोना के शोथ (inflammation) में उत्ताप (Heat), रक्तिमा (Redness) तथा बेहद जलन (Intense burning) इसके विशिष्ट लक्षण (characteristic symptoms) हैं। इन तीन की स्थिति निम्न है: 

1.1- भयंकर उत्ताप (Violent heat): 

  • फेफड़े, मस्तिष्क, जिगर, अंतड़ियों अथवा किसी अन्य अंग में शोथ (inflammation) हो तो भयंकर उत्ताप (Heat) मौजूद होता है। इस रोगी की त्वचा पर हाथ रखा जाय, तो एकदम हटा लेना पड़ता है क्योंकि त्वचा में भयंकर गर्मी होती है। इतनी भयंकर गर्मी के हाथ हटा लेने के बाद भी कुछ समय तक गर्मी की याद बनी रहती है। 
  • रोगी के किसी अंग में भी शोथ क्यों न हो, उसे छूने से भयंकर उत्ताप का अनुभव होता है।

📌टाइफॉयड (Typhoid) के उत्ताप (Heat)में बेलाडोना न दें:  

  • डॉ० कैन्ट कहते हैं कि टाइफॉयड (Typhoid) में अगर इस प्रकार का उत्ताप (Heat) मौजूद भी हो, तो भी उसमें बेलाडोना कभी नहीं देना चाहिये। इसका कारण यह है कि औषधि की गति तथा रोग की गति में सम-रसता (synchronicity) होना आवश्यक है। 
  • बेलाडोना की शिकायतें यकायक, एकदम, बड़े वेग से आती हैं और यकायक ही चली भी जाती हैं। टाइफॉयड यकायक नहीं आता, धीरे-धीरे आता है और धीरे-धीरे जाता है। 
  • बेलाडोना की गति और टाइफॉयड की गति में सम-रसता नहीं है, इसलिये इसमें बेलाडोना देने से रोग बढ़ सकता है, घट नहीं सकता। 
  • बेलाडोना उसी ज्वर में देना उचित है जिसमें ज्वर यकायक आए, धीमी गति से न आए। 
  • बेलाडोना में ताप होता है, बेहद ताप, भयंकर ताप।

1.2- रक्तिमा (Redness): 

  • बेलाडोना के शोथ (inflammation) में दूसरा मुख्य लक्षण रक्तिमा (Redness) है। 
  • अंग के जिस स्थान पर शोथ (inflammation) हुआ है, वह बेहद लाल दिखाई देता है। लालिमा के बाद इसका रंग हल्का पड़ सकता है, कुछ काला पड़ सकता है, ऐसा भी हो सकता है कि विशेष रूप से पहचाना न जाय परन्तु शुरू में चमकीला लाल होता है

1.3- बेहद जलन (Intense burning): 

  • बेलाडोना के शोथ (inflammation) में तीसरा मुख्य लक्षण बेहद जलन है। 
  • शोथ (inflammation) में, ज्वर में, रक्त-संचय में, टॉन्सिल में बेहद जलन होती है। इतना ही नहीं कि यह जलन हाथ से छूने से अनुभव की जाय, रोगी को अपने आप भी जलन महसूस होती है। 
  • उदरशोथ (Gastritis) में पेट में जलन होती है। इस प्रकार उत्ताप (Heat), रक्तिमा तथा जलन - ये तीनों इस औषधि में मुख्य स्थान रखते हैं।

📌उत्ताप (Heat), रक्तिमा तथा जलन के लक्षणों में सूजन, आँख दुखना, डिसेन्ट्री (Dysentery), बवासीर (Piles) तथा गठिया (Gout/Rheumatism) के रोग: 

  • यह हम कह चुके हैं कि बेलाडोना में तीन लक्षण आधारभूत हैं - उत्ताप (Heat), रक्तिमा तथा जलन। 
  • इन तीन को ध्यान में रखते हुए यह बात आसानी से समझ आ जाती है कि शोथ (inflammation), आँख दुखना, डिसेन्ट्री तथा बवासीर में इसकी कितनी उपयोगिता है। 
  • इनके अलावा जहाँ भी ये तीन लक्षण हों, वहीं बेलाडोना उपयोगी है।

⭐ सूजन:- 

  • अगर किसी अंग में सूजन हो जाय, सूजन के स्थान को छुआ तक न जा सके (स्पर्शासहिष्णुता इस औषधि का चरित्रगत लक्षण है), दर्द हो, ऐसा अनुभव हो कि सूजन का स्थान फूट पड़ेगा, इसके साथ उस स्थान में गर्मी, लाली और जलन हो, तो बेलाडोना औषधि है। सूजन के विषय में स्मरण रखना चाहिये कि अगर सूजन के बाद सूजन पकने (suppurate) लगे तब बेलाडोना लाभ नहीं कर सकता, पकने से पहले की अवस्था तक ही इसकी सीमा है

⭐ आंख दुखना जिसमें उत्ताप, रतिमा और जलन हो:-

  • आंख में गर्मी, रक्तिमा और जलन जो बेलाडोना के लक्षण हैं, उनके मौजूद होने पर यह इसे ठीक कर देता है।
  •  आंख से पानी आना, रोशनी में आंख न खोल सकना, आंख में गर्मी लाली और जलन के बाद कभी-कभी आंख में 'टीर' (Squint) रह जाता है। उसे यह औषधि ठीक कर देती है। 

⭐ डिसेन्ट्री जिसमें उत्ताप, रक्तिमा और जलन हो:-

  • रोगी बार-बार जोर लगाता है, मुँह तपने लगता है, चेहरा लाल हो जाता है, सिर और चेहरे पर जलन शुरू हो जाती है. हाथ-पैर डंडे और सिर गर्म, बहुत जोर लगाने पर भी बहुत थोड़ा मल-ऐसी डिसेन्ट्री में बेलाडोना लाभप्रद है। 

⭐ बवासीर जिसमें उत्ताप, रक्तिमा और जलन हो:-

  • ऐसी बवासीर जिसमें सख्त दर्द हो, मस्से बेहद लाल हों, सूज रहे हों, छुए न जा सकें, जलन हो, रोगी टांगें पसार कर ही लेट सके-ऐसी बवासीर में बेलाडोना लाभ करेगा। 

⭐ गठियाजिसमें उत्ताप, रक्तिमा और जलन हो:-

  • डॉ० कैन्ट लिखते हैं: "गठिये में जब सब या कुछ जोड़ सूज जाते हैं, तब इन जोड़ों में उत्ताप (Heat), लाली और जलन होती है। रोगी स्वयं 'असहिष्णु' (Sensitive) होता है और जोड़ों को किसी को छूने नहीं देता। जरा सा छू जाने से दर्द होता है। वह बिस्तर पर बिना हिले-जुले पड़ा रहना चाहता है।"
  • जोडाों में दर्द के साथ तेज बूखार में वह शान्त पड़ा रहता है। बेलाडोना का रोगी शीत बर्दाश्त नहीं कर सकता, कपडे से लिपटा रहना चाहता है, गर्मी से उसे राहत मिलती है।

(2) रक्त-संचय की अधिकता (Congestion) तथा सिर दर्द

  • उत्ताप, रक्तिमा, तथा जलन का कारण रुधिर (blood) का किसी जगह एकत्रित हो जाना है। 
  • बेलाडोना इस प्रकार रुधिर के किसी अंग-विशेष में संचित (accumulated) हो जाने पर औषधियों का राजा है। 
  • यह रक्त-संचय (Congestion) कहीं भी हो सकता है- सिर में, छाती में, जरायु में, जोड़ों में, त्वचा पर- शरीर के किसी भी अंग में संचय हो सकता है।
  • इस प्रकार के रुधिर संचय में विशेष लक्षण यह है कि यह बड़े वेग से आता है और एकदम आता है।
  • बेलाडोना के रोग वेग से आते हैं और एकदम जाते हैं, इसके रोगों की गतियाँ मन्द वेग से नहीं चलती। बिजली के वेग से आना बेलाडोना की विशेषता है।
  • बच्चा जब सोया था बिल्कुल ठीक था, परन्तु मध्य रात्रि में ही एकदम उसे दैरा पड़ गया, हाँथ पैर ऐंठने लगे, पेट दर्द होने लगा- ये सब एकदम और बेग से आने वाले रक्त संचय के लक्षण इस औषधि के ही हैं।
  • इन्ही लक्षणों के कारण हाई-ब्लड प्रेशर की उत्कृष्ट दवा है।

⭐ रक्त-संचय से सिरदर्द: 

  • रक्त की गति जब सिर की तरफ चली जाती है तब सिर दर्द होने लगता है। बेलाडोना में भयंकर सिर-दर्द होता है। ऐसा दर्द मानो सिर में कुछ छुरे चल रहे हों। रोगी हरकत को, स्पर्श को, रोशनी और हवा को सहन नहीं कर सकता। 
  • जब बूखार तेज हो तब ऐसा सिर-दर्द हुआ करता है। रोगी अनुभव करता है कि खून सिर की तरफ दौड़ रहा है।
  • बेल के सिर दर्द में सिर गरम होता है और हाथ-पैर ठंडे होते हैं, आँखें लाल, कनपटियों की रंगों में टपकन होती है, लेटने से सिर दर्द बढ़ता है, रोगी पगड़ी से या किसी चीज से सिर को कस कर बाँधता है, तब उसे आराम मालूम होता है।

⭐ रक्त के सिर की तरफ दौर से प्रलाप (Delirium):

  • बेल में रक्त का सिर की तरफ दौर (rush) इतना जबर्दस्त होता है कि रोगी की प्रबल प्रलाप (violent delirium) तथा बेहोशी की-सी अवस्था हो जाती है। यद्यपि उसे नींद आ रही होती है तो भी वह सो नहीं सकता। वह सिर को तकिये पर इधर उधर डोलता रहता है। 
  • कभी कभी वह प्रगाढ़ निद्रा में जा पहुँचता है जिसमें उसे घबराहट भरे स्वप्न आते हैं। वह देखता है हत्याएं, डाकू, आगजनी। वह प्रलाप भी करने लगता है- उसे भूत प्रेत, राक्षस , काले कुत्ते, भिन्न भिन्न प्रकार के कीड़े मकौड़े दिखाई देने लगते हैं।
  • यह सब रक्त का सिर की तरफ दौर होने का परिणाम हैं।

⭐पागलपन (Insanity): 

  • जब रक्त का सिर की तरफ दौर बहुत अधिक हो जाता है, तब बेलाडोना (Belladonna) में पागलपन की अवस्था आ जाती है। वह अपना भोजन मंगवाता है, परन्तु खाने के बजाय चम्मच को काटने लगता है, तश्तरी को चबाता है, कुत्ते की तरह भौंकता है।
  • डॉ० नैश ने पागलपन की तीन दवाओं पर विशेष बल दिया है-बेलाडोना, हायोसाएमस तथा स्ट्रैमोनियम। इनकी तुलना निम्न प्रकार है। 

पागलपन में बेलाडोना, हायोसाएमस तथा स्ट्रैमोनियम की तुलना-

  • इन तीनों को मस्तिष्क के रोगों की औषधि कहा जा सकता है। 
  • बेलाडोना में उन्माद की प्रचंडता प्रधान है, हायोसाएमस में प्रचंडता प्रधान है, हायोसाएमस में प्रचंडता नहीं होती,  निरर्थक गुनगुनाना प्रधान होता है. प्रचंडता तो कभी-कभी ही आती है। 
  • बेल का चेहरा लाल, हायोसाएमस का चेहरा पीला और बैठा हुआ होता है। हायो कमजोर होता है, और कमजोरी बढ़ती जाती है। इस कमजोरी के कारण उसके उन्माद में प्रचंडता देर तक नहीं रह सकती। हायो की शुरूआत प्रचंडता से हो सकती है परन्तु कमजोरी बढ़ने के साथ वह हटती जाती है। 
  • स्ट्रैमोनियम में उन्माद की प्रचंडता पहली दोनों औषधियों से अधिक है। वह चिल्ला-चिल्लाकर गाता, ठहाके मारकर हंसता, चिल्लाता, प्रार्थना करने लगता, गालियां बकने लगता-बड़ा बकवादी हो जाता है। 
  • उन्माद की प्रचंडता में स्ट्रैमोनियम तीनों से अधिक, फिर बेलाडोना, और सब से कम हायोसाएमस है। 
  • स्ट्रैयो अपने को भिन्न-भिन्न शक्लों में डाल कर लेता है-कभी गेंद की तरह गोल लेट जाता है, कभी बिस्तर की लम्बाई की तरफ, कभी चौड़ाई की तरफ, और भिन्न-भिन्न स्थितियों में लेटता रहता है। 
  • प्रचंडता के अतिरिक्त अन्य लक्षणों को भी निर्वाचन के समय ध्यान में रखना चाहिये। 
  • उदाहरणार्थ, बेलाडोना प्रकाश को सहन नहीं कर सकता. स्ट्रैमोनियम अन्धेरे को नहीं सहन कर सकता। बेल अन्धेरा चाहता है, स्ट्रैमोनियम प्रकाश।

(3) दर्द एकदम आता है और एकदम ही चला जाता है

  • लक्षणों का बड़े वेग से आना, और एकदम आना बेलाडोना का चरित्रगत लक्षण (characteristic symptom) है। कोई भी दर्द एकदम आए और एकदम ही चला जाय तो वह बेल से ठीक हो जाता है। कभी-कभी यह दर्द कुछ मिनट रहकर ही चला जाता है।
  • स्टैनम में दर्द मीठा-मीठा शुरू होता है, धीरे-धीरे बढ़ता जाता है, उच्च शिखर पर जाकर फिर धीरे-धीरे शान्त होता है। 
  • मैग्नेशिया फॉस का सिर दर्द एकाएक आता है, चिरकाल तक बना रहता है और एकाएक ही जाता है।
  • सल्फ्यूरिक ऐसिड में धीरे-धीरे शुरू होता है, पर एकदम जाता है।

(4) रोग का प्रचंड तथा एकाएक रूप में आना (Ailment coming in violent from and suddenly)

  • रोग बड़े वेग से, प्रचंड (violent) रूप में आक्रमण करता है, और यह आक्रमण यकायक (suddenly) होता है। 'प्रचंडता' और 'एकाएकपना' इस औषधि के मूल में पाया जाता है।
  • किसी प्रकार का दर्द हो, प्रचंड सिर-दर्द, धमनियों का प्रचंड-स्पन्दन, प्रचंड-जिलीरियम, प्रचंड-पागलपन, प्रचंड-ऐंठन आदि।

बेलाडोना (Belladonna) और एकोनाइट (Aconite) की तुलना:

  • रोग की प्रचंडता और एकाएकपना में एकोनाइट तथा बेलाडोना का सादृश्य है, इसलिये इसकी तुलना आवश्यक है।
  • ये दोनों औषधियाँ हष्ट-पुष्ट शरीर के लोगों के लिये उपयोगी है। एक स्वस्थ बच्चा/नौजवान कम कपड़े पहन कर बाहर निकलता है और रात में ही या सवेरे तक शीत के किसी रोग से आक्रन्त हो जाता है। रोग का आक्रमण एकदम होता है और जोर से होता है इन दोनों में यह बाद समान है परन्तु बेलाडोना में मस्तिष्क में तूफान उठता है, बूखार के साथ असहाय सिर-दर्द हो जाता है, एकोनाइट में रुधिर की गति में तूफान उठता है, छाती या हृदय में दर्द हो जाता है, न्युमोनिया, खाँसी, जुकाम हो जाता है।
  • बेलाडोना (Belladonna) मस्तिष्क में 'उथल-पुथल' (Turmoil in brain) होती है। गर्म बन्द कमरे में रोगी को आराम मिलता है, शरीर ढकना चाहता है।
  • एकोनाइट (Aconite) 'रुधिर-प्रवाह में उथल-पुथल' (Turmoil in circulation) होती है। गर्म बन्द कमरे में रोग बढ़ता है, शरीर खुला रखना चाहता है।
  • एकोनाइट की तरह ही कैमोमिला में स्वभान में उथल-पुथल (Turnoil in Temper) होती है। 

 

एकोनाइट (Aconite) तथा बेलाडोना (Belladonna) की तुलनात्मक तालिका

यह तालिका दोनों औषधियों के प्रमुख भेदों को दर्शाती है, जिससे उचित दवा का चुनाव करने में सहायता मिलती है।

विशेषता (Feature)एकोनाइट (Aconite)बेलाडोना (Belladonna)
1. रोगी की प्रकृतिबलिष्ठ रोगी शरीर पर खुश्क ठंडी हवा से बीमार हो जाता है।बलिष्ठ रोगी सिर पर ठंडी हवा से बीमार हो जाता है।
2. खुली हवा की इच्छास्वभाव से रोगी खुली हवा पसन्द करता हैस्वभाव से रोगी खुली हवा पसन्द नहीं करता, उससे कष्ट होता है।
3. गर्म बन्द कमरागर्म बन्द कमरे में रोग बढ़ता है, शरीर खुला रखना चाहता है।गर्म बन्द कमरे में रोगी को आराम मिलता है, शरीर ढकना चाहता है।
4. रोग-वृद्धि का समयशाम और रात को तकलीफ असह्य हो जाती हैदोपहर तीन बजे के बाद, रात और आधी रात के बाद रोग बढ़ता है।
5. स्थिति बदलने परउठकर बैठने से रोगी को कष्ट होता है, लेटे रहना पसन्द करता है।खड़ा होने या बैठने से रोगी को अच्छा महसूस होता है
6. पानी पीने का तरीकाथोड़ा-थोड़ा, ज्यादा पानी पीता हैथोड़ा-थोड़ा पानी पीता है
7. रोगों की प्रधानताछाती, श्वास-नालिका या हृदय के रोगों की प्रधानता रहती है।मस्तिष्क के रोग प्रधान; बाल कटवाने से ही ठंड लगना।
8. त्वचा और पसीनाखुश्क और गर्म त्वचा होने पर भी पसीना नहीं आता।गर्म त्वचा होती है, परन्तु ढके अंग पर पसीना आता है
मुख्य उथल-पुथल (संदर्भ)'रुधिर-प्रवाह में उथल-पुथल' (Turmoil in circulation)'मस्तिष्क में उथल-पुथल' (Turmoil in brain)
  • प्रायः चिकित्सक लोग एकोनाइट तथा बेलाडोना दोनों को एक-दूसरे के बाद दिया करते हैं। यह प्रक्रिया ठीक नहीं है। दोनों के लक्षणों का विवेचना करके ही दवा देना होम्योपैथीक सिद्धान्त है।

(5) प्रकाश, शोर, स्पर्श आदि सहन नहीं कर सकता (Oversensitiveness or Hyperesthesia):

  • इस रोगी की पाँचों इन्द्रियों में अत्यन्त अनुभूति उत्पन्न हो जाती है। रोगी आँखों से रोशनी, कानों से शब्द, जीभ से स्वाद, नाक से गंध, त्वचा (Skin) के स्पर्श की अनुभूति साधारण व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक करने लगता है, वह रोशनी, शब्द, गंध, स्पर्श आदि को सहन नहीं कर सकता। 
  • उसका स्नायु-मंडल (Nervous System) उत्तेजित रहता है। स्नायु-मंडल की उत्तेजना बेलाडोना (Belladonna) का मुख्य लक्षण है। ओपियम (Opium) इससे ठीक उल्टा है। उसमें 'सहिष्णुता (Sensitivity)' रहती ही नहीं। 
  • बेलाडोना के रोगी में मस्तिष्क (Brain) में जितना रुधिर (Blood) संचित होगा उतनी असहिष्णुता (Intolerance) बढ़ जायगी। 
  • स्पर्श की असहिष्णुता उसमें इतनी होती है कि सिर के बालों में कंघी तक नहीं फेर सकता, सिर के बालों को छूने तक नहीं देता। इस प्रकार की असहिष्णुता अन्य औषधियों में भी पायी जाती है। उदाहरणार्थ, हिपर (Hepar Sulph) पर रोगी दर्द को इतना अनुभव करता है कि बेहोश हो जाता है, नाइट्रिक ऐसिड (Nitric Acid) का रोगी सड़क पर चलती गाड़ियों की आवाज को सहन नहीं कर सकता, उससे उसकी तकलीफें बढ़ जाती हैं। कॉफिया (Coffea) का रोगी तीन मंजिल ऊपर के मकान पर भी किसी के चलने की आवाज सुन लेता है तो उससे परेशान हो जाता है यद्यपि अन्य किसी को वह आवाज नहीं सुनाई पड़ती, नक्स वोमिका (Nux Vomica) के रोगी के शरीर की पीड़ा लोगों के पैरों की आहट से बढ़ जाती है।

(6) मूत्राशय की उत्तेजितावस्था (Irritation of the bladder):

  • मटेरिया मेडिका (Materia Medica) में बेल (Belladonna) के अतिरिक्त दूसरी कोई औषधि ऐसी नहीं है जो मूत्राशय (Bladder) तथा मूत्र-नाली (Urethra) की उत्तेजितावस्था को शान्त कर सके। 
  • पेशाब करने की इच्छा लगातार बनी रहती है। इस औषधि में स्पर्शादि को सहन न कर सकने का जो लक्षण है, उसी का यह परिणाम है। पेशाब बूंद-बूंद कर टपकता है और सारी मूत्र-नाली (Urinary Tract) में दाह (Burning) उत्पन्न करता है। सारा मूत्र-संस्थान (Urinary System) उत्तेजित अवस्था में पाया जाता है।
  •  मूत्राशय में शोथ (Inflammation) होती है। मूत्राशय में रक्त- संचय (Blood congestion) और उसके उत्तेजितावस्था होने के कारण उस स्थान को छुआ तक नहीं जा सकता। 
  • मानसिक अवस्था भी चिड़चिड़ी हो जाती है। यह अवस्था मूत्राशय में मरोड़ (Spasm) पड़ने की-सी है। मूत्र में रुधिर (Blood in urine) आता है, कभी-कभी शुद्ध खून! ऐसी अवस्था में पायी जाती है कि मूत्राशय भरा हुआ है परन्तु मूत्र नहीं निकल रहा। शिकायत का केन्द्र स्थूल मूत्राशय की ग्रीवा (Neck of bladder) है जहां मूत्राशय में थोड़ा-सा भी मूत्र इकट्ठा होने पर पेशाब जाने की इच्छा होती है, परन्तु दर्द होता है मूत्र नहीं निकलता।

(7) असहिष्णु-जरायु से रक्तस्राव (Hemorrhage from sore uterus):

  • हम देख चुके हैं कि बेल में 'असहिष्णुता' (Soreness) होती है, अंग को छूने से ही दर्द होता है। 
  • जरायु (Uterus) में भी असहिष्णुता हो जाती है और उनमें से थक्कों (Clots) के साथ चमकता रुधिर (Bright red blood) निकलता है। असहिष्णुता, चमकता रुधिर और थक्के-रुधिर के टुकड़े-टुकड़े! बेल का जरायु से रक्तस्राव में यह मुख्य लक्षण है। 
  • जरायु रुधिर के थक्कों से अटक जाता है, और फिर उस अटकाव को दूर करने के लिये जरायु में से इस प्रकार संकोचन (Contraction) की लहर उठती है जैसे प्रजनन (Labor) के दर्द के समय होती है। तब रुधिर स्राव (Blood discharge) हो जाता है, फिर प्रजनन के दर्द के समान लहर आती है, और रुधिर जारी हो जाता है। क्योंकि जरायु असहिष्णु तथा नाजुक (Sensitive) हो जाता है इसलिये वह अन्दर एकत्रित रुधिर के थक्कों के स्पर्श को बर्दाश्त नहीं कर सकता और प्रजनन के दर्द के समान भीतर से लहरें उठती हैं। अगर गर्भपात (Abortion) जैसे इस प्रकार के लक्षण उपस्थित हो जायें, या किसी भी समय इस प्रकार के लक्षण उत्पन्न हों, तो यह गर्भपात को ही नहीं रोक देगा, गर्भ के बिना भी अगर इस प्रकार का जरायु से रक्तस्राव होने लगे, तो उसे भी रोक देगा। गर्भावस्था (Pregnancy) में रक्तस्राव हो जाने पर यह औषधि ब्रह्मास्त्र का काम करती है।

(8) हिलने-डुलने से, शीत से, स्पर्श आदि से रोग-वृद्धि (Chilly patient, aggravated by motion, sensitiveness and soreness):

  • बेलाडोना (Belladonna) में रोगी सर्दी से डरता है। वह शीत-प्रधान (Chilly) होता है। जिस्म को कपडे से लपेटे रखता है, कमरा बन्द कर लेता है, दरवाजे-खिड़कियां खुली नहीं रखता, हवा के झोंके से भी बचना चाहता है, सिर के बाल कटवा लेता है तो ठंड से उसे खांसी-जुकाम (Cough-cold) हो जाता है। 
  • ठंड से रोगी हो जाने पर भी उसके रोग में जलन (Burning) प्रधान है- यह 'विलक्षण-लक्षण' (Peculiar symptom) है। सर्दी के अलावा वह हिलने-डुलने से भी परहेज करता है। विश्राम से, चैन से पड़े रहने में ही उसे ठीक लगता है। उसे रोशनी बर्दाश्त नहीं होती, कहीं सूजन (Swelling) हो, तो जरा-सा भी छू जाने से चीख उठता है, हाथ नहीं लगने देता, उसे स्पर्शासहिष्णु (Touch sensitive) कहा जा सकता है। 
  • रोगी चिकित्सक को कहता है: 'डाक्टर साहब, बिस्तर को मत छू देना, मेरा सारा शरीर कांप उठेगा।' इस लक्षण में, भले ही कुछ रोग हो, बेलाडोना सारा नक्शा ही बदल देगा। 
  • ब्रायोनिया (Bryonia) में भी रोगी हिलना-डुलना नहीं चाहता, पड़ा रहना चाहता है; बेल में हिलने-डुलने और छूने से कभी-कभी रोगी को दौरा (Convulsion) पड़ जाता है, हिलने-डुलने से दर्द बढ़ जाता है। ये सब 'सर्वांगीण' या 'व्यापक-लक्षण' (General symptoms) हैं, और चिकित्सक जब भी औषधि का निर्वाचन करने लगे, तब उसके लिये अन्य छोटे-मोटे लक्षणों की अपेक्षा ये 'व्यापक-लक्षण' ही सब से अधिक महत्व के हैं क्योंकि रोगी के अन्तरतम में, उसकी जीवनी शक्ति (Vital Force) में रोग का प्रवेश होने पर ये 'व्यापक लक्षण' ही रोग के मुख्यतम सूचक होते हैं। इनको पकड़ लिया तो रोग की जड़ पकड़ी जाती है।

(9) दाईं तरफ प्रभाव करने वाली औषधि:

  • यह औषधि अनेक रोगों में दायीं तरफ प्रभाव करती है। उदाहरणार्थ, स्त्री का दायां डिम्ब-कोश (Right Ovary) बायें की अपेक्षा ज्यादा दर्द करता है, गले का दायां हिस्सा (Right side of throat), शरीर का दायां हिस्सा रोग से जितना प्रभावित होता है, उतना  बायां हिस्सा नहीं।

(10) दोपहर 3 बजे से रात तक रोग-वृद्धि:

  • बेल का ज्वर (Fever) आदि रोग दोपहर 3 बजे प्रारंभ होता है। रात को रोग बढ़ जाता है। दोपहर 3 बजे से शुरू होकर रात के 3 बजे तक रोग रहता है। मध्य-रात्रि में रोग चरम सीमा पर होता है। तापमान 104-105 तक जाकर सवेरे तक नार्मल (Normal) हो जाता है।

(11) इस औषधि के अन्य लक्षण:

i. जरायु (Uterus) का योनि-द्वार से निकल पड़ने का-सा अनुभव (Bearing down sensation): 

  • स्त्री अनुभव करती है कि उसके जरायु (Uterus) आदि अंग योनिद्वार (Vaginal orifice) से निकल पड़ेंगे। बेल में लेटने से यह प्रतीति बढ़ जाती है, खड़े होने पर आराम मिलता है। पल्सेटिला (Pulsatilla) में भी यह लक्षण है, और उसमें भी लेटने से रोग की वृद्धि होती है। भेद यह है कि बेल शीत-प्रधान है, पल्स (Pulsatilla) उष्णता-प्रधान है। यह अनुभव सीपिया (Sepia) और लिलियम टिग (Lilium Tigrinum) में भी है, परन्तु इनमें खड़े होने पर रोग बढ़ता है। रोगिणी बैठना या लेटना पसंद करती है। अन्दर के अंगों को रोके रखने के लिये एक टांग को दूसरी पर दबाकर चढ़ा लेती है, जो बेल में नहीं है।

ii. सूखी खांसी का रात को दौर पड़ना (Paroxysmal cough): 

  • बेल की खांसी विलक्षण होती है। जोर से लगातार खांसते-खांसते जब थोड़ा-सा कफ (Phlegm) निकलता है, तब रोगी को थोड़ी देर के लिये चैन पड़ता है, परन्तु इस चैन के समय श्वास-प्रणाली (Respiratory Tract) में खुश्की (Dryness) लगातार बढ़ती जाती है, फिर उसमें खुजलाहट (Itching) शुरू हो जाती है, उसके बाद फिर खांसी का ऐसा दौर पड़ता है मानो श्वास-प्रणालिका के सब भाग इसमें हिस्सा ले रहे हैं, गला रुंधने लगता है, कभी-कभी उल्टी (Vomiting) आ जाती है, तब जाकर थोड़ा-सा कफ फिर निकलता है, और अब फिर चैन पड़ जाता है। इस प्रकार के खांसी के दौर पड़ते रहते हैं। इस सारी प्रक्रिया में रोगी श्वास-प्रणालिका में खुश्की अनुभव करता है। यह सूखी खांसी के दौर है जो प्रायः रात को पड़ा करते हैं

iii. ऐंठन (Convulsions): 

  • ऐंठन बेलाडोना का चरित्रगत-लक्षण हैबच्चों के ऐंठन में यह उपयोगी है। शरीर के किसी भी अंग में ऐंठन हो सकती है। मस्तिष्क में रुधिर-संचर (Blood circulation) या उसके उत्तेजित होने पर ऐंठन हो जाया करती है। हृष्ट-पुष्ट बच्चों को सर्दी लग कर भी ऐंठन पड़ जाती है। ऐंठन का नाम सुनते ही बेलाडोना दे देना यथार्थ चिकित्सा नहीं है। क्यूप्रम (Cuprum Metallicum) भी ऐंठन के लिये प्रसिद्ध दवा है। क्यूप्रम में हाथ-पैरों में ऐंठन मुख्य हैबेलाडोना की ऐंठन में चेहरा और आंख लाल हो जाती हैसिर आग की तरह गर्म हो जाता है, बुखार तेज और कनपटियों में टपकन (Throbbing) होती है। रोगी शरीर को कभी आगे कभी पीछे की ओर झुकाता है।

iv. पथरी में अंग-संकोच (Spasm of gall-stone / kidney-stone): 

  • ऐंठन और अंग-संकोच में बहुत अधिक भेद नहीं है, अंग-संकोच एक अंग का दौरा पड़ना है, और ऐंठन एक अंग अथवा सारे शरीर का दौरा पड़ना है। कभी-कभी छोटा-सा पथरी का टुकड़ा 'पित्त-प्रणाली' (Gall-duct) या 'मूत्र-प्रणाली' (Urinary duct) में से गुजरता हुआ वहां रड़क (Irritation) पैदा कर देता है जिससे उस प्रणाली में ऐंठन या संकोच (Spasm) उत्पन्न हो जाता है। इस अंग-संकोच के कारण जो दर्द होता है उससे रोगी छटपटाता हैबेलाडोना की एक मात्रा इस संकोच को दूर कर देगी और पथरी का टुकड़ा पित्त-प्रणालिका या मूत्र-प्रणालिका से बाहर आ जायगा।

v. अपेंडिसाइटिस (Appendicitis): 

  • पेट के दाहिनी ओर नीचे के भाग में जहां छोटी आंत (Small intestine) और बड़ी आंत (Large intestine) मिलती है उस स्थान में अत्यन्त पीड़ा होना, जरा छू जाने, कपड़े तक लग जाने से भी असह्य पीड़ा का अनुभव होना अपेंडिसाइटिस का लक्षण है। इसमें अगर बेल के अन्य लक्षण मिलें तो इससे फायदा होगा।

vi. हाइड्रोफोबिया (Hydrophobia) तथा स्कारलेट फीवर (Scarlet Fever) में हनीमैन के कथनानुसार स्पेसिफिक है: 

  • हनीमैन ने लिखा है कि बेलाडोना में हाइड्रोफोबिया के अनेक लक्षण हैं। उदाहरणार्थ, जल से भय (Fear of water), काटने की प्रवृत्ति (Tendency to bite), गले में ऐसी ऐंठन कि निगला न जा सके, पागलपन (Madness), कुत्ते से भय (Fear of dogs) आदि इसमें पाये जाते हैं, इसलिये उक्त रोग में यह अद्वितीय है। इसी प्रकार स्कारलेट फीवर के भी सब लक्षण इसमें पाये जाते हैं। जहां स्कारलेट फीवर फैल रहा हो वहां इस औषधि को स्वस्थ व्यक्तियों को देने से रोग नहीं होता

vii. प्लुरिसी (Pleurisy): 

  • फेफड़े के आवरण (Pleura) के शोथ (Inflammation) को प्लुरिसी कहते हैं। इसमें अत्यन्त दर्द होता हैबेल (Belladonna) और ब्रायोनिया (Bryonia) दोनों इस रोग में दिये जाते हैं, दोनों का आक्रमण मुख्य तौर पर दायीं तरफ होता है। परन्तु ब्रायोनिया पीड़ित भाग की तरफ लेटने से आराम अनुभव करता है, बेलाडोना इससे उल्टा है, वह पीड़ित भाग की तरफ नहीं लेट सकता।

viii. त्वचा पर दाने (Rash): 

  • त्वचा पर दानों के लिये बेलाडोना, एपिस (Apis Mellifica), एरम ट्रिफाइलम (Arum Triphyllum) तीनों दी जा सकती हैं। बेल में त्वचा के दाने उत्ताप (Heat), रक्तिमा (Redness) और जलन (Burning) पैदा करते हैंबेल के दाने चमकते हैं उभरे न होकर त्वचा के साथ मिले होते हैं: रोगी गर्मी पसंद करता है, प्यास लगती है, थोड़ा-थोड़ा और बार-बार पानी पीता है। एपिस में दाने उभरे होते हैं। रोगी ठंडक पसंद करता है, कपड़ा परे फेंक देता है, प्यास बिल्कुल नहीं लगती। एरम ट्रिफाइलम में छोटे-छोटे दाने होते हैं, लगातार चुभन (Pricking sensation) पैदा करते हैं, पेशाब कम हो जाता है, अंगुली, अंगूठे, नाक, होंठ में खुजली (Itching) मचती है।

ix. मस्तिष्क में रक्त संचय (Cerebral Congestion) तथा सन-स्ट्रोक (Sun-stroke): 

  • इसमें बेल और ग्लोनॉयन (Glonoinum) प्रसिद्ध हैं। दोनों में भयंकर सिर दर्द (Headache) होता हैदर्द की लहरें उठती हैं, टपकन (Throbbing) होती है, परन्तु भेद यह है कि ग्लोनॉयन सिर पर कोई गरम वस्तु सहन नहीं कर सकता, ठंडक से उसे आराम पहुंचता है, बेलाडोना ठंडक को सहन नहीं कर सकता, यहां तक कि बेलाडोना का रोगी अगर बाल कटवा ले, तो उसकी तकलीफ बढ़ जाती है, वह सिर पर ठंडक बर्दाश्त नहीं करता।

x. ढके स्थान पर पसीना (Sweat on covered parts): 

  • बेल में ढके स्थान पर पसीना आता है। थूजा (Thuja) का विचित्र लक्षण यह है कि उसमें बिना ढके स्थान पर पसीना आता है, ढके पर नहीं।

(12) स्मरण करने के लिये 'BIRDS' शब्द को याद रखें: 

  • बेल के लक्षण 'B-I-R-D-S' में आ जाते हैं। B=Burning (जलन); I=Inflammation (शोथ); R=Redness (रक्तिमा); D=Delirium (प्रलाप); S=Spasm (ऐंठन)।

(13) शक्ति (Potency): 

  • हनीमैन के अनुसार यह 'अनेक कार्य-साधक' (Polychrest) औषधि है। 
  • इसका असर थोड़ी देर रहता है, यह 'अल्पकालिक' (Short-acting) है, अतः दोहराई जा सकती है। बार-बार के आक्रमण में उपयुक्त नहीं है। 
  • बेलाडोना के रोगी जिन्हें रोग का बार-बार आक्रमण होता हो उन्हें कैलकेरिया कार्ब (Calcarea Carbonica) दिया जाना उचित हैबेलाडोना की पूरक औषधि कैलकेरिया (Calcarea) है। 
  • बेलाडोना को 3, 6, 30, 200 शक्ति में दिया जाता है। 
  • औषधि 'सर्द' (Chilly) प्रकृति के लिये है

 

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