Alumina – एलूमिना (Aluminium oxide)
एलुमिना (Alumina) के व्यापक लक्षणों को जानें, जिसमें निर्णय-शक्ति का अभाव, चाकू देखकर मारने का विचार, मूत्राशय की शिथिलता, भयंकर खुजली और गर्भवती स्त्री का कब्ज शामिल है। यह एलुमेन और अन्य दवाओं से कैसे भिन्न है, इसकी जानकारी प्राप्त करें।
एलुमिना (Alumina) एक दीर्घकालिक (Long-term) एंटिसोरिक (antisoric) होम्योपैथिक औषधि है, यह एल्यूमीनियम धातु (Aluminium Metal) से बनी होती है और मानसिक, शारीरिक व स्नायु संबंधी अनेक रोगों में उपयोगी है।
यह दवा मुख्यतः मानसिक शिथिलता (Mental sluggishness), कब्ज (Constipation), स्नायु विकार (Nervous system disorder), खुश्की (Dryness), चक्कर (Vertigo), प्रदर (Leucorrhea), और गोनोरिया (Gonorrhea) में दी जाती है।
मुख्य लक्षण तथा रोग
- एलुमेन (Alumen) और एलुमिना में संबंध: दोनों पदार्थों का आधार एल्यूमीनियम (Aluminum) है।
- एलुमिना के मानसिक लक्षण: मानसिक शिथिलता (Mental sluggishness), जड़ता (Inertia), निर्णय-शक्ति का अभाव (Lack of decision-making power), हर बात में देरी का अहसास।
- चाकू या खून देखकर दूसरे को या स्वयं को मारने का विचार आना: आवेगपूर्ण हिंसक विचार।
- प्रातःकाल उठने के बाद उदासी: चित्तवृत्ति (Mood) का बदलते रहना।
- स्नायु-संस्थान (Nervous system) के लक्षण: मेरुदण्ड (Spine) में जलन आदि के कारण शिथिलता (Laxity)।
- मूत्राशय (Bladder) तथा मलाशय (Rectum) की शिथिलता (Laxity): अंगों का ढीलापन।
- बुढ़ापे में चक्कर आना (Vertigo): कमजोरी के कारण अस्थिरता।
- बच्चा सोकर घबराया हुआ उठता है: सुबह की घबराहट।
- नाक तथा गले में कटर (जुकाम) (Catarrh): आंतरिक झिल्लियों की शुष्की।
- खुजली के बाद फोड़े-फुंसियाँ (Boils and pimples) होते हैं: खुजलाने के फलस्वरूप त्वचा का संक्रमण।
- बेहद खुश्की (Extreme dryness): मुख तथा हाथों पर मकड़ी के जाले (cobweb) का-सा अनुभव, बालों का झड़ना।
- गायकों आदि में आवाज का बैठना: गले की शिथिलता के कारण।
- स्त्रियों में टांगों तक बहने वाला पानी जैसा प्रदर (Leucorrhea): तीव्र और जलन वाला स्राव।
- मासिक-धर्म (Menstrual period) बंद होने की आयु में: रजोनिवृत्ति के दौरान।
- गर्भवती स्त्री तथा शिशु का कब्ज: गर्भावस्था और बचपन में होने वाली कब्ज।
- स्त्रियों तथा पुरुषों का गोनोरिया (Gonorrhoea): पुराने संक्रमण में उपयोगी।
प्रकृति (Modalities)
लक्षणों में कमी (Better):
- सायंकाल लक्षणों में कमी।
- खुली हवा से लक्षणों में कमी।
- हल्के चलने-फिरने से कमी।
- ठंडे पानी के स्नान से कमी।
- नम हवा से रोग में कमी।
लक्षणों में वृद्धि (Worse):
- गर्मी से रोग में वृद्धि।
- गर्म, बंद कमरे में रोग में वृद्धि।
- आलू खाने से रोग में वृद्धि।
- बातचीत करने से रोग में वृद्धि।
- शुष्क ऋतु (Dry season) में रोग में वृद्धि।
- प्रातःकाल उठने के बाद वृद्धि।
- बैठे रहने से रोग में वृद्धि।
- मासिक धर्म के बाद रोग में वृद्धि।
- समय-समय पर (Periodically) रोग का बढ़ना-घटना।
1. एलुमेन और एलुमिना में संबंध
- फिटकरी (Alum) को एलुमेन (Alumen) कहते हैं और एलुमिना एक धातु है जिसके बर्तन बनते हैं, जिन्हें एल्यूमीनियम (Aluminum) के बर्तन कहा जाता है।
- डॉ. केंट (Dr. Kent) का कहना है कि यद्यपि ये दो अलग-अलग (पृथक - separate) तत्व हैं, फिर भी इनकी प्रकृति में बहुत कुछ समानता है।
- एलुमेन के शारीरिक लक्षणों का परीक्षण हुआ है, जबकि एलुमिना के शारीरिक तथा मानसिक दोनों लक्षणों का पता लगाया गया है। चूंकि दोनों पदार्थों का आधार एल्यूमीनियम ही है, इसलिए एलुमेन में जो मानसिक लक्षणों को ठीक करने का गुण है, वही मानसिक लक्षण एलुमिना में भी पाए जाते हैं। इससे पहले कि हम एलुमिना के शारीरिक तथा मानसिक लक्षणों की चर्चा करें, एल्यूमीनियम के बर्तनों में खाना पकाने के संबंध में कुछ लिख देना प्रासंगिक (Relevant) प्रतीत होता है क्योंकि इस पर होम्योपैथी के जगत में विशेष चर्चा रही है।
एल्यूमीनियम के बर्तनों में खाना पकाने से हानि:
- एम. भट्टाचार्य एंड कंपनी द्वारा प्रकाशित 'पारिवारिक भेषज-तत्व' (Family Materia Medica) में लिखा है, 'एल्यूमीनियम धातु पर परीक्षण करने पर, इस धातु के बर्तनों का उपयोग करने पर जब यह अधिक सूखे या खारे पदार्थ के संपर्क में आती है, तो बुरे लक्षण उत्पन्न होते हैं। हम लोगों को, खासकर कलकत्ता-वासियों की कब्जियत (Constipation), इसका विशेष प्रमाण मिला है।
- डॉ. टायलर (Dr. Tyler) अपनी पुस्तक 'होम्योपैथिक ड्रग पिक्चर्स' (Homoeopathic Drug Pictures) में लिखती हैं, 'कुछ वर्ष पहले एक रूसी डॉक्टरनी ने अपने साढ़े तीन वर्ष के कुत्ते को जो रोग से पीड़ित था, पशु-डॉक्टरों को दिखाया। वे उसके रोग का कोई निदान (Diagnosis) न कर सके। वह डॉक्टरनी अपने कुत्ते का भोजन एल्यूमीनियम के बर्तन में पकाती थी। कुत्ते को लगातार उल्टी आ रही थी। छह महीने में कुत्ते की बुरी हालत हो गई और वह पानी तक नहीं पी सकता था। इतने में डॉक्टरनी को एक इश्तिहार मिला जिसमें एल्यूमीनियम से कुत्तों के बीमार होने का वर्णन था। कुत्ते के मालिक ने एल्यूमीनियम के बर्तन में भोजन बनाना छोड़कर दूसरे बर्तन में भोजन बनाना शुरू कर दिया और कुत्ता ठीक हो गया। इससे प्रतीत होता है कि कुत्ते पर एल्यूमीनियम की सूक्ष्म-शक्ति (minute potency) का प्रभाव हो रहा था, और वह इस धातु का 'प्रूव' (Prove) कर रहा था।
- यह सच है कि सब पर इस प्रकार का प्रभाव नहीं होता। इसका कारण यह है कि कुछ लोग किसी वस्तु से प्रभावित होते हैं, जबकि अन्य नहीं होते, परंतु यह एक सामान्य विचार है कि एल्यूमीनियम के बर्तन में भोजन बनाने से उसका प्रभाव भोजन में आ जाता है, और इसी से गर्मियों की उल्टी, कब्ज आदि की शिकायतें हो जाती हैं।
- अपने देश में तांबे के बर्तन में पानी रखने की प्रथा है, उसका भी होम्योपैथिक रूप से स्वास्थ्य-कर (Health-giving) महत्त्व है।'
2. एलुमिना के मानसिक लक्षण
मानसिक शिथिलता (Mental sluggishness), जड़ता (Inertia), निर्णय-शक्ति का अभाव (Lack of decision-making power):
- एलुमेन की तरह एलुमिना में भी मानसिक शिथिलता ही इसका व्यापक (Widespread) लक्षण है। यह शिथिलता शारीरिक स्तर पर ही नहीं, बल्कि मानसिक स्तर पर भी प्रकट होती है।
- एलुमिना मानो रोगी के मन और बुद्धि को जकड़ लेता है, और उसे भ्रम (confusion) में डाले रखता है। रोगी किसी प्रकार का निर्णय (decision) लेने में असमर्थ (Incapable) हो जाता है। उसकी निर्णय-शक्ति बेढाल (Distorted) हो जाती है।
- जिन चीजों को वह वास्तविक रूप में जानता था, वे अब उसे अस्वाभाविक (Unnatural) लगने लगती हैं। जब वह कुछ कहता है, तो उसे ऐसा प्रतीत (Feels) होता है कि कोई दूसरा कह रहा है। जब वह कुछ देखता है, तो उसे ऐसा प्रतीत होता है कि कोई दूसरा देख रहा है, या जब वह खुद को किसी और रूप में महसूस करता है, तब समझता है कि वह यह देख रहा है। यह मन और विचारों की गड़बड़ाहट है।
- उसे अपने व्यक्तित्व (Personality) के विषय में संदेह हो जाता है, उसे यह निश्चय (Certainty) नहीं रहता कि वह कौन था। ऐसा लगता है कि वह वह नहीं है जो वह था। लिखने-पढ़ने में गलतियाँ करता है, गलत शब्दों का प्रयोग करता। मन मानो शिथिल और जड़ हो जाता है।
समय बहुत धीरे बीतता मालूम देता है:
- एलुमिना के मन की एक दूसरी अवस्था यह है कि उसे समय बहुत धीरे बीतता लगता है। वह सोचता है कि चीजें जिस तेजी से होनी चाहिए उस तेजी से नहीं हो रही हैं, सभी कार्यों में देर हो रही है। जिस काम में आधा घंटा लगना चाहिए, उसमें पूरा दिन लग रहा है।
3. चाकू या खून देखकर दूसरे को या स्वयं को मारने का विचार
- इस औषधि का मन पर इतना अधिक प्रभाव है कि रोगी अगर चाकू (knife) को देख लेता है या खून (blood) देखता है, तो उसके भीतर दूसरे का या अपना ही खून करने की भावना प्रबल (Intense) हो उठती है, वह आत्महत्या (Suicide) करना चाहता है।
4. प्रातःकाल उठने के बाद उदासी - चित्तवृत्ति का बदलते रहना
- इस औषधि का रोगी प्रातःकाल सोकर उठने के बाद उदास होता है, रोता है, वह रोता-धोता ही रहता है।
- अपनी परिस्थिति से दूर भागना चाहता है, भयभीत रहता है, समझता है कि जिन परिस्थितियों से घिरा है उनसे हटने पर उसका दुःख दूर होगा।
- साधारणतया भयभीतपन (Fearfulness) उसमें भरा रहता है।
- जब अपनी मानसिक दशा (Mental state) को सोचने लगता है, तो उसे लगता है कि कहीं पागल न हो जाए। जब वह सोचता है कि उसे अपना नाम तक भूल जाता है, मन गड़बड़ाता रहता है, तब वह सोचने लगता है कि अब वह सचमुच पागल हो गया है।
- प्रातःकाल सोकर उठने के बाद उसमें ऐसे विचार आते-जाते रहते हैं, परंतु चित्तवृत्ति (Mood) बदलती रहती है।
- कभी निराशा (Despair) की मनोवृत्ति (Mentality) से निकल कर वह आशाभरी, शांत मनोवृत्ति में आ जाता है, इसके बाद फिर से निराशा के गर्त (Abyss) में जा गिरता है।
- इस औषधि की प्रकृति में समय-समय पर (Periodically) रोग का बढ़ना-घटना है।
5. स्नायु-संस्थान (Nervous system) के लक्षण, मेरुदण्ड (Spine) में जलन आदि के कारण शिथिलता
- जो स्नायु (Nerves) मेरु-दण्ड (Spine) से निकलते हैं, उन पर इस औषधि का विशेष प्रभाव है।
- मेरु-दण्ड के स्नायु (तंत्रिका तंत्र) ही शरीर की मांसपेशियों (Muscles) की क्रियाशीलता (Activity) का कारण हैं। उनमें शिथिलता (Laxity) आने से भोजन-नली में, निगलने में कठिनाई अनुभव होती है, हाथ उठाने-हिलाने में कठिनाई होती है, शरीर का कोई-सा भी अंग शिथिल हो जाता है।
- टांगों में, मल-द्वार, मूत्र-द्वार में शिथिलता, जड़ता, अचेतनावस्था (Numbness) अनुभव होती है।
- पांव में कांटा लगे, कोई चूंटी मारे तो एकदम अनुभव नहीं होता। बाह्य अनुभव (External sensation) और चेतना (Consciousness) धीरे-धीरे पहुँचते हैं।
- मेरु-दण्ड में जलन (Burning of Spine) और पीठ में दर्द होती है।
- रोगी कहता है, 'पीठ में ऐसी दर्द होती है मानो मेरु-दण्ड के नीचे की कशेरुका (Vertebra) में गर्म लोहा घुसेड़ दिया गया हो।'
- मेरु-दण्ड के प्रदाह (Myelitis-Inflammation of Spinal cord) में जब पीठ की मांस-पेशियों में ऐंठन (Spasm) अनुभव हो, और मेरु-दण्ड की उपझिल्ली (Membrane) का शोथ (Inflammation) हो, वहां एलुमिना आश्चर्य-जनक (Miraculous) कार्य करता है।
- मायलाइटिस में प्रायः यह अनुभव होता है कि अंगों में यहां-वहां कहीं पट्टी बंधी है। इस रोग में जब मेरु-दण्ड का उत्तेजन (Irritation) होता है, तब ऐसी अनुभूति अक्सर होती है कि शरीर के चारों तरफ कसकर रस्सी बंधी है।
- हम आगे जिन शारीरिक-लक्षणों का जिक्र करेंगे उनका आधार मुख्यत: मेरु-दण्ड की स्नायुओं की शिथिलता (Irritation of spinal cord) के कारण अंगों का शिथिल (Lax) होना, शक्तिहीन (Powerless) होना है।
6. मूत्राशय तथा मलाशय (Rectum) की शिथिलता (Laxity)
- स्त्री या पुरुष को पेशाब करने के लिए देर तक बैठे रहना पड़ता है। पेशाब उतरता ही नहीं, देर में उतरता है, धीरे-धीरे निकलता है।
- रोगी कहता है कि पेशाब जल्दी नहीं उतरता। कभी-कभी धार की जगह बूंद-बूंद पेशाब निकलता है, कभी-कभी रुका ही रहता है और अपने-आप, अनजाने बूंद-बूंद टपकता है। यह इस अंग की शिथिलता के कारण ही है जो इस औषधि का व्यापक लक्षण है।
- इसका विलक्षण (Peculiar) लक्षण यह है कि पेशाब करने के लिए मलाशय (Rectum), अर्थात् गुदा (Anus) पर जोर लगाना पड़ता है।
मलाशय (Rectum) की शिथिलता (Laxity):
- मलाशय इतना शिथिल हो जाता है कि मल भरा रहने पर भी मल नहीं निकलता, मल कठोर न होकर तरल भी क्यों न हो, वह निकलता ही नहीं।
- जब गुदा-द्वार में इस प्रकार की जड़ता (Inertia), शिथिलता हो कि दस्त (diarrhea) भी न निकलें, ऐसी कब्ज (Constipation) हो तब यह औषधि उत्तम कार्य करती है।
- अगर ऊपर लिखे गए मानसिक लक्षण मौजूद हों, तब कठोर-मल (Hard stool) और कठिन कब्ज होने पर भी इस औषधि से बड़ा लाभ होता है।
- रोगी को अनुभव होता है कि मल-द्वार मल से भरा है, तब भी जोर लगाने पर भी मल नहीं निकलता। रोगी को पेट की मांसपेशियों (Abdominal muscles) से जोर लगाकर मल को निकालना पड़ता है, परंतु गुदा-द्वार की मांसपेशियां मल को धकेलने में कोई सहायता नहीं देतीं। पतले मल को भी निकालने में जोर लगाना पड़ता है, जो इस औषधि का प्रधान (Main) लक्षण है।
- कठिनाई से मल निकालने पर प्रोस्टेट ग्लैंड (Prostate gland) का स्राव (Secretion) निकल पड़ता है क्योंकि मल निकालने के लिए जोर लगाने पर इस ग्रंथि पर जोर पड़ता है।
परन्तु इस आधार पर ही एलुमिना देना कि पतला मल भी जोर लगाने से ही निकलता है होम्योपैथी नहीं है। होम्योपैथी में एक ही लक्षण पर दवा नहीं दी जाती, रोगी की लक्षण-समष्टि (Totality of symptoms) पर ध्यान दिया जाता है।
- उदाहरणार्थ, पतले मल के लिये भी जोर लगाना पड़ता नक्स मोस्केटा (Nux Moschata) और चायना (China) में भी है, परन्तु इन सब दवाओं में प्रत्येक दवा का अपना व्यक्तित्व सामने आ जाना चाहिये।
- अगर रोगी आकर कहे कि उसे पतले मल के लिये भी जोर लगाना पड़ता है, परन्तु साथ ही यह कहे कि उसकी प्रकृति ऐसी है कि वह जरा भी जागना नहीं सह सकता, पढने लगे तो झट सो जाता है, मानो सोता ही रहता है, देर तक खडा रहना पड़े तो गश खा जाता है, बन्द कमरे में परेशान हो जाता है, परन्तु खुली ठंडी हवा में जाये तो भी परेशान हो जाता है, तो ऐसे रोगी के लिये एलुमिना नहीं, नक्स मोस्केटा (Nux Moschata) देने से उस की कब्ज की शिकायत दूर होगी।
- अथवा, अगर रोगी कहे कि उसे पतले मल के लिए जोर लगाना पड़ता है, परंतु उसका पेट मानो हवा से भरा रहता है, बेचारा खून के अभाव से पीला पड़ा हुआ है, कमजोर है, ऊपर से डकारें आती हैं, नीचे से हवा खारिज होती रहती है, जितनी हवा ऊपर-नीचे से निकलती है, उतनी उसकी परेशानी भी बढ़ती जाती है तो ऐसे रोगी की कब्ज न एलुमिना से ठीक होगी, न नक्स मोस्केटा से, उसकी कब्ज चायना (China) से ठीक होगी।
इस प्रकार हम देखते हैं कि होम्योपैथी के लिए औषधि बोलने लगती है, चित्रवत (Like a picture) उसकी आंखों के सामने आ खड़ी होती है। इसी को औषधि चित्रण (Drug picture) कहते हैं।
7. बुढ़ापे में चक्कर आना (Vertigo), शिथिलता (Laxity) तथा कमजोरी-
- यह हम पहले ही लिख चुके हैं कि एलुमिना के रोगी का रोग स्नायु-मंडल (Nervous system) या मेरुदण्ड (Spine) की विकृति (Disorder) से होता है, उसी के कारण इस औषधि का व्यापक लक्षण जड़ता (Inertia), शिथिलता (Laxity), अचेतनावस्था (Numbness) है।
- यही कारण है कि यह चक्करों (Vertigo) की भी औषधि है। रोगी को लगता है कि चीजें लगातार घूम रही हैं, स्नायु/स्पाइन (Nerves/Spine) के रोगों में आँखें बंद रहने पर चक्कर आता है, वृद्ध-व्यक्तियों (Elderly individuals) को शिथिलता के कारण चक्कर आ जाता है।
- चलने में व्यक्ति अनिश्चितता (Uncertainty) महसूस करता है/ डगमगाता है। इसी कारण पैरों में, हाथों में, उँगलियों में सुन्नपन (Numbness) भी आ जाता है।
- रोग में प्रारंभिक अवस्था (Initial stage) में एलुमिना इन रोगों को ठीक कर देता है।
8. बच्चा सोकर घबराया हुआ उठता है
- इसकी प्रकृति में हमने लिखा है कि इसके रोग प्रातःकाल सोकर उठने के बाद बढ़ते हैं।
- एलुमिना के मानसिक लक्षणों में शिथिलता, जड़ता के कारण बच्चा प्रातःकाल जब सोकर उठता है तब घबराया हुआ होता है।
- उसकी शारीरिक तथा मानसिक स्थिति शिथिल होती है।
- ज्यों-ज्यों दिन बढ़ता है, अंगों में भी जलने-फिरने से जान आने लगती है।
- सोकर उठने पर तो सब चीजें उसे अपरिचित (Unfamiliar) –सी मालूम होती हैं।
9. नाक तथा गले में कटर (जुकाम) (Catarrhal condition)
- सब अंगों की शिथिलता का असर नाक तथा गले पर भी पड़ता है। नाक तथा गले की झिल्ली (Membrane) खुश्क हो जाती है। नाक बंद अनुभव होती है, ज्यादातर बायीं नाक।
- नाक में बड़ी, नीली-सी, बदबूदार, सूखी पपड़ी जमा हो जाती है। रोगी हर समय खांसता और नाक साफ करता रहता है। नाक से यह अवस्था नाक के पीछे के भाग तक फैल जाती है। जहाँ नसीका (Nasal) के मल के चमकीले कण (Thick mucus) जमा हो जाते हैं।
- गले के भीतर देखा जाए, तो हल्का-सा लसदार (Sticky) बलगम (Phlegm) चिपका रहता है। गले में अत्यंत खुश्की अनुभव होती है, ऐसा प्रतीत होता है कि गले में खपाच (Splinter) अटका हुआ है।
- अर्जेन्टम नाइट्रिकम (Argentum Nitricum), नाइट्रिक एसिड (Nitric Acid) तथा हिपर (Hepar) में भी यह अनुभूति (Sensation) होती है।
- यह कटरल हालत (Catarrhal condition) भोजन की प्रणाली तक फैल जाती है, और रोगी को निगलने में भी कठिनाई प्रतीत होती है।
- इस सब का कारण एलुमिना का शिथिलता, जड़ता आदि का वह व्यापक लक्षण है जो इस औषधि का चरित्रगत (Characteristic) लक्षण कहा जा सकता है।
- तालु (Palate) में, गले में ऐसे छाले (Ulcers) होते हैं, जिनमें से पीली-पीली पस-निर्मित (Pus-filled) कफ निकलती है। रोगी कहता है कि उसका गला पका हुआ है, पुराना रोग हो गया है। यह औषधि गले की नयी या पुरानी बीमारी को देखकर नहीं दी जाती, इसलिए नहीं कि सर्दी का असर गले पर पड़ गया है, परंतु इस औषधि का प्रयोग ठंड लग जाने के कारण रोग पड़ जाने की प्रवृत्ति को रोकने के लिए है।
- इस दृष्टि से इसकी गणना सिलीशिया (Silicea), ग्रेफाइट्स (Graphites) तथा कैलकेरिया (Calcarea) की भांति है।
- यह गहरा क्रिया करने वाली, दीर्घकालिक (Long-term) एंटिसोरिक (antisoric) दवा है।
- यह शरीर के तंतुओं (Tissues) में भी परिवर्तन कर देती है। इसकी क्रिया धीरे-धीरे होती है, परंतु गहरी होती है।
- अगर इस दवा को देने के बाद एकदम रोग ठीक होता हुआ न दिखे, परंतु रोगी कहे कि रोग न हटने पर भी वह अपने को अच्छा अनुभव कर रहा है, तो दवा मत बदलो। तुमने जुकाम या पीठ के दर्द के जिन लक्षणों के लिए दवा दी है वे एकदम नहीं दूर होंगे, परंतु रोगी की मानसिक अवस्था बेहतर होगी और कालांतर में (Over time) रोग के लक्षण भी अपने-आप दूर हो जाएंगे।
10. खुजली के बाद फोड़े-फुंसियाँ
- फोड़े-फुंसियों के दो रूप होते हैं।
- कई बार त्वचा में इतनी खुजली होती है कि खुजलाते-खुजलाते त्वचा छिल जाती है और फिर फोड़े-फुंसियाँ (Boils and pimples) हो जाते हैं।
- कई बार पहले फोड़े-फुंसियाँ होते हैं और बाद में उनमें खुजली होती है।
- नौसिखिए (Novices) लोग फोड़ा-फुंसी देखकर हिपर (Hepar) दे देते हैं, परंतु वह ठीक नहीं है।
- एलुमिना में त्वचा सूख जाती है, अंग में दरारें पड़ जाती हैं, वह सख्त हो जाती है। यह स्थिति शिथिलता एवं जड़ता के कारण होती है।
- लगातार खुजलाने से त्वचा छिल जाती है और फोड़े-फुंसी विकसित (Develop) हो जाते हैं। यदि खुजली एवं फोड़े-फुंसी खुजलाने के फलस्वरूप उत्पन्न हों तो एलुमिना, मेजेरियम (Mezereum) एवं आर्सेनिक (Arsenic) का सेवन किया जाता है; परंतु यदि पहले फोड़े-फुंसी हों और बाद में खुजली हो तो हिपर दिया जाता है।
- मेजेरियम में खुजली एक स्थान पर रहती है लेकिन वह अन्य स्थानों पर भी फैल सकती है। इस प्रकार के चर्म रोग (Skin disease) में जो फुंसियां होती हैं वे झुण्ड के रूप में समूहित (Grouped) रहती हैं जिनमें पीला पस (Pus) भरा रहता है तथा ऊपर पपड़ी (Scab) जम जाती है। बालिका के सिर पर यदि फुंसिया हो जाए तो वे आपस में मिलकर मोटी चमड़ी जैसी पपड़ी बना लेती हैं, जिसके नीचे मवाद (Pus) संचित (Accumulated) होता है। आर्सेनिक के उपयोग से त्वचा मछली के छिलकों जैसी बनावट प्राप्त कर लेती है जिसमें खाज होती है; यदि फुंसियां उत्पन्न हो तो उनमें जलन महसूस होती है, जिसे सेंकने से राहत (Relief) मिलती है।
11. बेहद खुश्की (Extreme dryness), मुख तथा हाथों पर मकड़ी के जाले का-सा अनुभव, बालों का झड़ना
- बेहद खुश्की (Extreme dryness) इसका व्यापक लक्षण है। खुश्क जुकाम का जिक्र कर चुके हैं। मुख की रुधिर-प्रणालिकाएं (Blood vessels) सूख जाती हैं, जिसके कारण ऐसा अनुभव होता है कि मुख पर मकड़ी का जाला (cobweb) लिपटा है। यह अनुभूति (Sensation) इतनी कष्टप्रद (Distressing) होती है कि रोगी बैठे-बैठे मुख रगड़ता रहता है। हाथों की पीठ पर भी ऐसा ही अनुभव होता है। रोगी मुँह पर बार-बार हाथ फेरता है, जैसे चेहरे पर से कुछ हटा रहा हो।
12. गायकों आदि में आवाज का बैठना
- लकवा-जैसा ढीलापन (Paralytic laxity) इस औषधि का व्यापक लक्षण है।
- इसी कारण गला भी बैठ जाता है। गायक थोड़ी देर ही गा पाता है, फिर गला काम नहीं देता।
- धीरे-धीरे वह ढीलापन इतना बढ़ जाता है कि बोलना ही बंद हो जाता है। इस प्रकरण (Context) में रस टॉक्स (Rhus Tox) नहीं भूलना चाहिए।
- रस टॉक्स में गायक जब गाना शुरू करता है तब आवाज मीठी होती है, परंतु ज्यों-ज्यों वह गाता जाता है, गला गर्म होता जाता है, गति से रस टॉक्स के व्यक्ति को लाभ पहुंचता है, और उसका स्वर गाते-गाते चमक उठता है। परंतु अगर रस टॉक्स का व्यक्ति गला गर्म होने पर फिर ठंडी जगह चला जाए, तो गला ढीलापन हो जाएगा, अथवा गर्म कमरे में ही रहे तो गला नहीं बैठेगा।
- फास्फोरस (Phosphorus) के गले में जब गायक गाना शुरू करता है, तब उसे गले के कफ को बार-बार साफ करना पड़ता है, जब कफ साफ हो जाता है तब उनका गला ठीक काम करने लगता है, परंतु गाते-गाते गला दर्द करने लगता है, इतना दर्द होता है कि आवाज निकालने में चाकू से कटने का-सा दर्द होता है। जब तक आवाज के बैठने को ठीक करने के लिए एलुमिना का पता नहीं लगा था तब तक होम्योपैथ गले बैठे हुए गायकों, व्याख्याताओं (Lecturers) को नेट्रस नाइट्रिकम (Natrum Nitricum) देते थे, परन्तु उसकी अपेक्षा एलुमिना अच्छा काम करता है।
13. स्त्रियों में टांगों तक बहने वाला पानी जैसा प्रदर (Leucorrhea)
- स्त्रियों के रोगों में भी एलुमिना की आधारभूत (Fundamental) शिथिलता (Laxity) का लक्षण दिखाई देता है।
- रोगी के जननांग (Genitals) इतने शिथिल हो जाते हैं कि प्रदर (Leucorrhea) का पानी टांगों के नीचे तक आ बहता है।
- यह पानी पीला, तीखा (Acrid), त्वचा को काटता है। यह अंडे की सफेदी जैसा भी हो सकता है, तारों वाला, एड़ियों तक बह जाने वाला।
- इस प्रदर के साथ रोगी के जननांगों में निम्न-लक्षण प्रकट होते हैं:
* जरायु (Uterus) के मुख पर जख्म (Ulceration)।
* सब जननांगों (Genitals) में शिथिलता (Laxity)।
* जननांगों की शिथिलता के कारण नीचे को बोझ (Heaviness) की अनुभूति (Sensation)।
* सब मांसपेशियों (Muscles) में कमजोरी, ढिलाई और शिथिलता।
14. मासिक-धर्म बंद होने की आयु में
- 45 वर्ष के आस-पास स्त्री का मासिक-धर्म (Menstrual period) बंद होने का समय आ जाता है, रज (Menstruation) कम निकलता है, शिथिलता आ जाती है, वह घटने लगता है, रोगिणी (Female patient) अपने को निहायत (Extremely) कमजोर अनुभव करने लगती है, और जितना-कितना भी रजोधर्म (Menstruation) होता है वह स्त्री को परेशान कर देता है, उस अवस्था में एलुमिना बहुत लाभ करता है।
15. गर्भवती स्त्री तथा शिशु का कब्ज
- जो स्त्री कब्ज की शिकार नहीं होती, वह गर्भावस्था (Pregnancy) में इस रोग से पीड़ित हो जाती है।
- उसका मल-द्वार काम नहीं करता, उसमें मल-निस्सारण (Evacuation) की शक्ति नहीं रहती।
- पेट की पेशियों (Abdominal muscles) पर दबाव डालने पर शौच उतरता है।
- इसी प्रकार, नवजात शिशु या कुछ महीने का शिशु जब कब्ज से परेशान होता है और शौच नहीं उतरता, शौच आने पर दिखता है कि वह इतना कठोर नहीं था कि न उतरे। ऐसी स्थिति में यह औषधि लाभप्रद (Beneficial) है।
16. स्त्रियों तथा पुरुषों का गोनोरिया
- जब कोई स्त्री गोनोरिया (Gonorrhoea) रोग से पीड़ित हो जाए और पल्सेटिला (Pulsatilla) तथा थूजा (Thuja) देने पर रोग में कमी तो आती है, परंतु उसका मूल-नाश (Radical cure) न हो, रोग बार-बार पलटकर आता रहे और गोनोरिया का स्राव (Discharge) समाप्त होने में न आए, तब इस महौषधि (Great medicine) से लाभ होता है।
- पुरुषों में भी अगर गोनोरिया अन्य औषधियों से ठीक हो जाए परंतु फिर भी आता-जाता रहे, तो एलुमिना का उपयोग करना चाहिए।
इस औषधि का सजीव-चित्रण (Vivid description)
- इसकी प्रकृति के रोगी के रुधिर (Blood) की गति इतनी शिथिल होती है कि सर्दियों में उसके हाथ-पाँव ठंडे हो जाते हैं, वे खुश्की (Dryness) के कारण फट जाते हैं। पैरों में बड़ी-बड़ी बिवाइयां (Cracked heels) फट जाती हैं और उनसे खून निकलने लगता है।
- ठंड से उसके रोग बढ़ जाते हैं, नम मौसम में वह अच्छा अनुभव करता है।
- त्वचा का अत्यंत खुश्क (Extreme dryness) होना इस औषधि का चरित्रगत (Characteristic) लक्षण है।
- रोगी अपने को कपड़े से ढके रखना चाहता है, शरीर को गर्म कपड़ों से ढंक कर रखना चाहता है, फिर भी खुले हवा की आवश्यकता महसूस करता है।
- मौसम में थोड़ा भी बदलाव होने पर उसे ठंड लग जाती है, जिससे जुकाम जैसी शिकायतें उत्पन्न होती हैं। कभी-कभी बिस्तर पर लेटे हुए उसे इतना अधिक ठंड महसूस होती है कि दांत किटकिटाने लगते हैं, जबकि कुछ समय बाद उसे इतनी तीव्र खुजली और गर्माहट महसूस होती है कि वह कपड़ा हटाना चाहता है।
- ये विरोधाभासी (Contradictory) लक्षण इस औषधि की विशिष्ट (Specific) प्रकृति को दर्शाते हैं।
शक्ति तथा प्रकृति
- 30, 100 (शक्ति - potency)।
- कैंट के अनुसार 'ठंड' - Chilly - प्रकृति के लिए, परंतु बोगर के अनुसार 'गर्म' - Hot - प्रकृति के लिए है।
FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
Q1. एलुमिना में कब्ज की क्या विशेषता है?
एलुमिना में कब्ज बहुत सख्त होता है, मल कठोर न होकर तरल होने पर भी जोर लगाने पर नहीं निकलता। यह स्थिति मलाशय (Rectum) की शिथिलता (Laxity) के कारण होती है, और रोगी को मल निकालने के लिए पेट की मांसपेशियों से जोर लगाना पड़ता है।
Q2. एलुमिना के रोगी को किस प्रकार के मानसिक लक्षण होते हैं?
रोगी में मानसिक शिथिलता (Mental sluggishness), जड़ता (Inertia), निर्णय लेने में असमर्थता (Incapable), और चाकू या खून देखकर आत्महत्या या दूसरे को मारने के विचार आने जैसे प्रबल लक्षण होते हैं।
Q3. एलुमिना के त्वचा संबंधी लक्षण क्या हैं?
त्वचा में बेहद खुश्की (Extreme dryness), दरारें पड़ना, और खुजली के बाद फोड़े-फुंसियाँ (Boils and pimples) होना। रोगी को मुख या हाथों पर मकड़ी के जाले (cobweb) का-सा अनुभव होता है।
Q4. क्या एलुमिना को गोनोरिया में दिया जा सकता है?
हाँ, जब गोनोरिया (Gonorrhoea) का स्राव (Discharge) अन्य औषधियों (पल्सेटिला, थूजा) से ठीक होने के बाद भी बार-बार पलटकर आता रहे, तब एलुमिना का उपयोग करना चाहिए।
यह सामग्री सिर्फ शैक्षिक उद्देश्यों के लिए है और इसे पेशेवर चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार का विकल्प नहीं माना जाना चाहिए।