Arnica Montana – आर्निका मोन्टेना

संशोधित: 23 December 2025 ThinkHomeo

Arnica Montana में चोट से उत्पन्न 'कुचले जाने का-सा अनुभव', टाइफॉयड में विशिष्ट लक्षण और गर्भावस्था के बाद लाभ शामिल है। जानें यह दवा कैसे अन्य दर्द निवारक औषधियों से भिन्न है। इनके व्यापक लक्षणों को समझते हैं।

Arnica Montana – आर्निका मोन्टेना

आर्निका मौन्टेना (Arnica Montana) होम्योपैथी की सबसे प्रसिद्ध 'अनेक कार्य-साधक' (Polychrests) औषधियों में से एक है, जिसे प्राथमिक रूप से शारीरिक आघात (physical trauma) और चोट (injury) के उपचार के लिए जाना जाता है।

मुख्य लक्षण तथा रोग (GENERALS AND PARTICULARS):

  1. चोट द्वारा शरीर में कुचले जाने का-सा अनुभव (Bruised feelings)।
  2. किसी भी पुराने रोग की शुरूआत चोट लगने से होना।
  3. बिस्तर का कठोर अनुभव होने के कारण करवटें बदलते रहना।
  4. टाइफॉयड (Typhoid) में आर्निका के लक्षण।
  5. गठिया रोग में आर्निका के लक्षण।
  6. गर्भावस्था तथा प्रसव के बाद आर्निका से लाभ।
  7. किडनी (Kidney), ब्लैडर (Bladder), लिवर (Liver), न्यूमोनिया (Pneumonia) में आर्निका का उपयोग।

प्रकृति (MODALITIES)

लक्षणों में कमी (Better):

  • सिर नीचा करके लेटना।
  • अंग फैला कर लेटना।

लक्षणों में वृद्धि (Worse):

  • शरीर पर चोट या रगड़।
  • खाना।
  • शारीरिक या मानसिक आघात।
  • शारीरिक श्रम।
  • मोच।
  • हिलना-डुलना।
  • वृद्धावस्था।

(1) चोट द्वारा शरीर में कुचले जाने का-सा अनुभव (Bruised feelings)

  • चोट लगने में सबसे पहले आर्निका (Arnica) की तरफ ध्यान जाता है। चोट के कारण ऐसा अनुभव होता है कि सारा शरीर कुचला गया है, शरीर को हाथ लगाने से ही दर्द होता है। ऐसा अनुभव सारे शरीर में भी हो सकता है, शरीर के किसी अंग में भी हो सकता है। रोगी किसी को अपना अंग छूने नहीं देता। कुचले जाने या चोट के सम्बंध में आर्निका के अतिरिक्त निम्न दवाओं का तुलनात्मक विवेचन उपचार के लिये लाभप्रद है:

(चोट, घाव तथा क्षति की मुख्य मुख्य औषधियाँ - Comparison of Trauma Remedies):

⚖️ कोनायम (Conium): स्तन, अंडकोश आदि कठोर ग्रन्थियों (hard glands) के कुचले जाने पर उनमें गांठ (lump) पड़ जाना।

⚖️हाइपेरिकम (Hypericum): इसे 'Arnica of Nerves' कहा जाता है। सूई, पिन, फांस आदि लगने या पशु एवं कीट के दन्त-क्षत (tooth-bite) से स्नायु (Nerve) को आघात (trauma) पहुँचने तथा उसमें दर्द होने पर।

⚖️ऐनाकार्डियम (Anacardium): जब मांसपेशियों के बंधकों (Tendons) में कुचले सरीखा दर्द हो।

⚖️सिम्फाइटम (Symphytum): हड्डियों पर लगी चोटों (bone injuries) पर, टूटी हड्डियों (Fracture) को जोड़ देता है।

⚖️कैल्केरिया फॉस (Calcarea Phos): जहां हड्डी टूटी हो उस स्थान पर दर्द, ठूंट (stump) में पीड़ा दूर करता है। बच्चे की मुट्ठी से मां की आंख पर चोट लगे तो ठीक कर देता है।

⚖️लीडम (Ledum): सूजा, कील, नुकीली चीज आदि चुभने पर। हाइपेरिकम (Hypericum) और लीडम लगभग समान है।

⚖️रस टॉक्स (Rhus Tox): प्रत्येक मांस-पेशी (muscle) में कुचलन का-सा दर्द जो चलना-हिलना शुरू करने के समय पीड़ा देता है, परन्तु गति शुरू होने पर दर्द दूर हो जाता हैपसीना आते समय भीगने से ऐसा दर्द हो जाता है।

⚖️फाइटोलैक्का (Phytolacca): सिर से पांव तक स्पर्श सहिष्णुता (Soreness), मांसपेशियाँ इतनी दर्द करती हैं कि 'आह' निकल पड़ती है।

⚖️बैप्टीशिया (Baptisia): रोगी बिस्तर पर जिस अंग की तरफ भी लेटता है, ऐसा लगता है कि पलंग उधर ही कठोर है, उधर ही के अंग में कुचलन का-सा दर्द होने लगता है।

⚖️रूटा (Ruta): शरीर का प्रत्येक अंग जिस पर उसका बोझ (weight) पड़ता है कुचला-सा अनुभव होता है, शरीर के किसी भाग पर भी बोझ नहीं डाल सकता इतना दर्द होता है।

⚖️चायना (China): शरीर की हर मांस-पेशी में, जोड़ों में हड्डियों में, हड्डियों के परिवेष्टन (Periosteum) में, मेरु-दण्ड (Spinal Cord) में, त्रिकास्थि (Sacrum) में, घुटनों में, जांघों में कुचलन सरीखा दर्द होता है।

⚖️आर्निका (Arnica): चोट लगने से दर्द का विशेष कारण है। अन्य औषधियों के दर्द में चोट लगना ही विशेष कारण नहीं है, इसमें यह विशेष कारण है।

⚖️स्टेफ़िसैग्रिया (Staphisagria): सर्जन के शुद्ध यंत्रों (clean instruments) से सफाई से कांट-छांट (cutting) या ऑपरेशन (operation) के बाद यह घाव को जल्दी ठीक कर देता है।

  • उक्त औषधियों में एक-दूसरे से अन्तर (difference) को ढूंढना होगा। वह कैसे ढूंढें? उदाहरणार्थ, टाइफॉयड (Typhoid) ज्वर में आर्निका और बैप्टीशिया में कुचलन की पीड़ा है, दोनों में बिस्तर कठोर अनुभव होता है, दोनों अर्धस्वप्नावस्था (semi-conscious state) में होते हैं, दोनों को ऊंघ (drowsiness) से जगाना कठिन है, दोनों की जीभ पर काली रेखा होती है।

⚖️ आर्निका (Arnica) और बैप्टीशिया (Baptisia) का भेद: अगर रोगी बिस्तर पर पासे की तरह पलटता है (turns) और कहता है कि वह अपने को बटोर रहा है, उसे लगता है कि वह बिखरा पड़ा है, मूत्र तथा पसीना अत्यन्त बदबूदार है, तब उसे बैप्टीशिया (Baptisia) देना होगा। अगर मूत्र तथा मल अपने आप निकल जाते हैं (involuntary urine and stool), तब आर्निका (Arnica) देना होगा।

  • अगर कुचलने की वेदना का केन्द्र गला हो तो फाइटोलैक्का(Phytolacca), अगर वह पीडा हो हो रूटा(Ruta) देना आर्निका (Arnica) और रस टाक्स(Rhus Tox) से बेहतर होगा।
  • डॉ० नैश (Dr. Nash) का कथन: आँख (EYE) पर जोर पड़ने से सिलाई का कार्य करने वाले व्यक्तियों के आँखों के दर्द को रूटा(Ruta) ने ठीक कर दिया। रूटा का अस्थि-परिवेष्टन (Periosteum) के साथ, कलैंडुला (Calendula) का चोट लग कर फटने और छितर-बितर हो जाने वाले जख्म (lacerated wounds) के साथ, स्टैफिसैग्रिया (Staphisagria) का छुरी या अस्तुरा (razor) जैसे तेज औजार (instrument) से हो जाने वाले घाव के साथ, रस टॉक्स (Rhus Tox) का मोच(sprain) के साथ और आर्निका (Arnica) का कोमल अंगों के कुचले जाने के साथ विशेष संबंध है। आर्निका (Arnica) देने के लिये सिर्फ चोट लग गई है-इतना ही काफी नहीं है। टूटी हड्डियों (Fracturs) को जोड़ने में सिम्फाइटम (Symphytum) अद्भुत है।

(2) किसी पुराने रोग की शुरूआत चोट लगने से होना

  • अगर कोई पुराना रोग (chronic disease) चोट लगने से शुरू हुआ हो, चाहे कितने ही वर्ष चोट लगे क्यों न बीत गये हों, वह रोग आर्निका (Arnica) से दूर हो जायेगा।
  •  उदाहरणार्थ, चोट लगने के बाद किसी को मृगी (Epilepsy), ऐंठन (convulsions), हृदय की धड़कन (palpitation), नकसीर (nosebleed), गठिया (rheumatism) आदि कोई रोग हो गया हो, तो आर्निका की तरफ ध्यान देना चाहिये। 
  • जिन लोगों के शरीर पर किसी शारीरिक घाव (physical injury) का प्रभाव बना रहे, चाहे वह घाव भी कितना ही साधारण क्यों न हों, उन्हें आर्निका से आराम आ जाता है।

(3) बिस्तर का कठोर अनुभव होने के कारण करवटें बदलते रहना

  • रोगी के सारे शरीर में दर्द होता है, ऐसा दर्द जैसा चोट लगने पर होता है। रोगी जिस तरफ भी लेटता है उसे ऐसा अनुभव होता है कि बिस्तर बहुत कठोर है, सख्त है, और इस कारण वह मुलायम जगह ढूंढने के लिये करवटें बदलता रहता है

(4) टाइफॉयड में आर्निका के लक्षण

  • सविराम (intermittent) तथा अविराम (Remittent) ज्वर (fever) में जब टाइफॉयड (Typhoid) के-से लक्षण प्रकट होने लगें, जब जीभ चमकदार हो जायें, दांतों और होठों पर दुर्गन्धयुक्त मल (sordes) जमने लगे, जब जी बैठता जाय और संपूर्ण शरीर में कुचले जाने की-सी पीड़ा का अनुभव हो, तब आर्निका देने से टाइफॉयड की तरफ जाने से रोगी बच जाता है। 
  • टाइफायड (Typhoid) में आर्निका तथा बैप्टीशिया (Baptisia) के लक्षण एक से हो जाते हैं, परन्तु दोनों में अन्तर है। हम अभी लिख आये हैं कि दोनों संपूर्ण शरीर में कुचले जाने का सा दर्द होता है, दोनों में बिस्तर कठोर प्रतीत होता है, दोनों में रोगी बार-बार करवटें बदलता है, परन्तु अन्तर यह है कि बैप्टीशिया (Baptisia) का रोगी बेहोशी की दशा में प्रश्न का उत्तर समाप्त करने से पहले ही सो जाता है, या बेहोश हो जाता है, आर्निका (Arnica) का रोगी बेहोशी की दशा में प्रश्न पूछने पर उसका सही-सही उत्तर दे देता है और फिर सो जाता है। इसके अतिरिक्त  बैप्टीशिया (Baptisia) का रोगी बार-बार करवटें बदलता है और पूछने पर कहता है कि  उसके शरीर के भाग इधर-उधर बिखरे पडे हैं, उन्हें वह बटोर रहा है, आर्निका (Arnica) का रोगी भी करवटें बदलता है परन्तु उसका कारण विस्तर का सख्त होना होता है। बैप्टीशिया (Baptisia) के रोगी के मल-मूत्र में अत्यन्त बदबू आती है, आर्निका (Arnica) का रोगी अनजाने में मूत्र/मल त्याग कर देता है। इस दृष्टि से आर्निका के अगर लक्षण हों तो यह टाइफाइड के लिये प्रसिद्ध तथा लाभप्रद दवा है।

(5) गठिया रोग में आर्निका के लक्षण

  • आर्निका (Arnica) का हर एक  रोग में आधारभूत लक्षण (fundamental symptom) कुचले जाने (Soreness) का अनुभव है। पुराने गठिया (rheumatism) के रोगी को जोड़ों में नाजुकपन (Sensitiveness) का अनुभव होता है। गठिया (rheumatism) में कुचले जाने का-सा अनुभव आर्निका दूर कर देता है।
  • उदाहरणार्थ- वृद्ध दादा जी जोड़ों में दर्द का अनुभव करते बैठे हों कि उनका पोता उनकी तरफ  उनसे खेलने को लपकता है, वे दूर से ही कहते हैं इधर मत आना, उन्हें डर है कि वह उनके कंधों पर चढ़कर उनके शरीर को जो पहले से ही गठिया के दर्द से पीड़ित है उन्हें और दुःख देगा। उन्हें आर्निका की एक मात्रा दे दी जाए, तो वह बड़े मजे से अपने पोते को कंधे पर चढ़ा कर भागते फिरेंगे। गठिया में कुचले जाने का-सा अनुभव आर्निका (Arnica) दूर कर देता है।

(6) गर्भावस्था तथा प्रसव के बाद आर्निका से लाभ

  • गर्भावस्था (pregnancy) में माता के जरायु (uterus) तथा कोख (abdomen) में नाजुकपन (sensitiveness) आ जाता है और गर्भस्थ-भ्रूण (fetus) के जरा-से हिलने-डुलने से भीतर दर्द-सा अनुभव होने लगता है, रात को नींद नहीं आती। इस दशा में आर्निका (Arnica) की 200 शक्ति (potency) की एक मात्रा से दर्द शान्त हो जायगा। 
  • इसी प्रकार प्रसव (delivery) के बाद आर्निका (Arnica) की उच्च-शक्ति (high potency) की एक मात्रा अवश्य दे देनी चाहिये, इससे प्रसव के समय यंत्रों/उपकरणों (instruments) के प्रयोग से सेप्टिक होने का डर नहीं रहताप्रसव (delivery) के बाद माता को मूत्र न आने (retention of urine) पर भी आर्निका उपयोगी है।
  •  नवजात शिशु को मूत्र न आने पर एकोनाइट (Aconite) से लाभ होता है।

(7) किडनी, ब्लैडर, लिवर, न्यूमोनिया में आर्निका का उपयोग

  • यद्यपि औषधि की परीक्षा (Proving) में आर्निका से कभी न्यूमोनिया (Pneumonia) नहीं हुआ, तो भी अगर न्यूमोनिया (Pneumonia) में भी कुचले जाने का-सा अनुभव हो, तो आर्निका ही औषधि है। अगर गुर्दे (Kidney), मूत्राशय (Bladder), यकृत् (Liver) आदि के रोग में शरीर में शोथ (swelling) के साथ संपूर्ण शरीर में कुचले जाने की अनुभूति हो, तो आर्निका अवश्य लाभ करेगा। 
  • होम्योपैथी में रोग का इलाज नहीं होता, रोगी का इलाज होता है, रोग का नाम भले ही कुछ क्यों न हो।

(8) इस औषधि के अन्य लक्षण

🔹i. आनिका (Arnica), रस टॉक्स (Rhus Tox), कैल्केरिया (Calcarea) का 'त्रिक' (Triad) का संबंध: चोट में, आहत होने पर (being hurt), कुचले जाने के अनुभव पर आर्निका ही प्रथम श्रेणी की औषधि है, परन्तु उसके बाद जब कुचले जाने की अनुभूति हट जाती है और मांस-पेशियों की शिथिलता (muscle laxity) की अनुभूति मात्र रह जाती है, तब बची हुई कमजोरी को रस टॉक्स (Rhus Tox), दूर करता है। अगर तब भी कमजोरी दूर न हो, तब कैल्केरिया कार्ब (Calcarea Carb) देने की जरूरत पड़ती है, परन्तु ये तीनों दवायें एक ही दिन नहीं देनी चाहियें। प्रत्येक दवा को पर्याप्त समय देना चाहिये, तब अगर कमजोरी दूर न हो तब इस क्रम को सोचना चाहिये। होम्योपैथी में इस प्रकार अनेक 'त्रिक' (Triad) हैं जिनका वर्णन कैली सल्फ में किया है।

🔹ii. 'विशेष-लक्षण' (Peculiar symptom) ज्वर में: आर्निका के रोगी का सिर तथा शरीर का ऊपरी भाग गर्म होता है और हाथ-पैर तथा नीचे के भाग ठंडे होते हैं। 

🔹iii. अपेन्डिसाइटिस (Appendicitis): अगर चिकित्सक को ब्रायोनिया (Bryonia), रस टॉक्स (Rhus Tox), बेलाडोना (Belladonna) और आर्निका (Arnica) का पूरा-पूरा परिचय हो, तब रोगी को सर्जन के पास जाने की जरूरत नहीं पड़ती। यहाँ यह आवश्यक है कि रोग का बार-बार आक्रमण न होता हो।

🔹 iv. मानसिक लक्षण (Mental Symptoms): रोगी किसी को अपने पास नहीं आने देना चाहता जिसके दो कारण हैं। पहला तो यह कि वह किसी से बातचीत नहीं करना चाहता, और दूसरा यह कि उसका शरीर कुचले जाने के दर्द की अनुभूति से इतना व्याकुल होता है कि किसी के भी छू जाने से डरता है। जो लोग किसी दुर्घटना (accident) के शिकार हो चुके हैं, रेल गाड़ी की दुर्घटना हुई या अन्य कोई शारीरिक या मानसिक आघात (physical or mental shock) पहुंचा, वे रात को यकायक मृत्यु के भय (sudden fear of death) से जाग उठते हैं। ओपियम (Opium) में भी ऐसा मृत्यु-भय है, परन्तु वह भय दिन को भी बना रहता है, आर्निका (Arnica) का मृत्यु-भय तो रात को स्वप्न (dream) में ही होता है, दिन को नहीं। रात को तरह तरह के डरावने स्वप्न दिखाई देते हैं- चोर, डाकू, कीचड, कब्र, बिजली की कड़क आदि भयावह दृश्य सामने आते हैं।

(9) शक्ति

  • 3, 30, 200, 1000 (शक्ति - potency)। 
  • चोट से नीला (bruise) आदि पड़ जाने पर आर्निका लोशन लगाना चाहिए। इस लोशन (lotion) को बनाने के लिए 1 औंस ठंडे पानी में 5 बूंद आर्निका टिंक्चर (Arnica Tincture) डाल दो। कटी हुई जगह पर वह नहीं लगानी चाहिए

FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

Q1. आर्निका मौन्टेना (Arnica Montana) का मुख्य उपयोग क्या है? 

आर्निका मौन्टेना का मुख्य उपयोग चोट (injury), शारीरिक आघात (physical trauma), और कुचले जाने के-से दर्द (bruised feeling) के लिए होता है, चाहे वह चोट हाल की हो या पुरानी, जिससे किसी बीमारी की शुरुआत हुई हो।

Q2. रोगी को बिस्तर पर कैसा अनुभव होता है जब उसे आर्निका की आवश्यकता होती है? 

आर्निका के रोगी को ऐसा अनुभव होता है कि बिस्तर बहुत कठोर (hard) है, भले ही वह मुलायम हो। इस असहजता के कारण वह लगातार करवटें बदलता रहता है।

Q3. टाइफॉयड (Typhoid) जैसे ज्वर में आर्निका के क्या विशिष्ट लक्षण होते हैं? 

टाइफॉयड जैसे ज्वर में, जब रोगी कुचले जाने का-सा दर्द महसूस करे, जीभ चमकदार हो, होंठों पर सड़े हुए मल (sordes) जम जाएं, और वह प्रश्न पूछने पर सही उत्तर दे दे लेकिन तुरंत फिर सो जाए, तो आर्निका प्रभावी होती है।

Q4. आर्निका, रस टॉक्स (Rhus Tox) और कैल्केरिया (Calcarea) का 'त्रिक' (Triad) क्या दर्शाता है? 

यह 'त्रिक' बताता है कि चोट लगने के शुरुआती दौर में आर्निका का उपयोग होता है। जब कुचले जाने की अनुभूति कम हो जाए और केवल मांसपेशियों की कमजोरी (laxity) रह जाए, तब रस टॉक्स (Rhus Tox) दिया जाता है। अगर फिर भी कमजोरी बनी रहे, तो कैल्केरिया कार्ब (Calcarea Carb) का प्रयोग किया जाता है।

Q5. आर्निका के रोगी में मानसिक लक्षणों के रूप में क्या पाया जाता है? 

मानसिक रूप से रोगी चिड़चिड़ा (irritable) होता है, दुःखी (sad), भयभीत (fearful) और किसी को अपने पास नहीं आने देना चाहता। वे शारीरिक आघात (physical or mental shock) के बाद रात में अचानक मृत्यु के भय (sudden fear of death) से जाग उठते हैं।

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