Asafoetida (Hing) – हींग
ऐसाफेटिडा (Asafoetida) के व्यापक लक्षणों को जानें, जिसमें फूला हुआ रक्तनीलिमा युक्त चेहरा, शिरा-रुधिर-स्थिति (Venous Stasis), पेट से गले की ओर गैस का चढ़ना (Globus Hystericus), और हड्डियों में रात को दर्द शामिल है।
ऐसाफेटिडा (Asafoetida), जिसे हींग से तैयार किया जाता है, एक 'गर्म' (Hot) प्रकृति की औषधि है। यह अपने शिरा-प्रधान-शरीर (Venous constitution) पर प्रभाव और पाचन तंत्र में प्रतिगामी गति (Anti-peristalsis) के लिए प्रसिद्ध है।
मुख्य लक्षण तथा रोग (GENERALS AND PARTICULARS):
- फूला हुआ चेहरा, स्थूल, ढीला-ढाला, रक्तनीलिमा युक्त (लाल-नीला) रंग (Venous Congestion)।
- हिस्टीरिया (Hysteria) में पेट से गले की तरफ एक गोलक का चढ़ना (Globus Hystericus)।
- पेट में ऊर्ध्वगामी वायु तथा बड़े-बड़े डकार (Upward flatulence and loud eructations)।
- आतशकी-मिजाज़ (Syphilitic miasm): भिन्न-भिन्न अंगों में ज़ख्म (ulcers) आदि।
- हड्डियों में रात को दर्द (Night pain in bones)।
- बायीं तरफ आक्रमण (Left-sided complaints)।
प्रकृति (MODALITIES)
लक्षणों में कमी (Better):
- खुली हवा में घूमने से रोगी को आराम पहुँचना।
लक्षणों में वृद्धि (Worse):
- रात को रोग बढ़ जाना।
- बन्द कमरे में घबराना।
- स्रावों (discharges) के रुक जाने पर।
- गर्म कपड़ा लपेटने पर।
- बाईं ओर लेटने से वृद्धि।
(1) फूला हुआ चेहरा, स्थूल, ढीला-ढाला, रक्तनीलिमायुक्त रंग
- हमारे शरीर में दो प्रकार की रक्तवाहिनियां हैं- 'धमनी' (Artery) तथा 'शिरा' (Vein), जिन में से 'धमनी' में हृदय से शुद्ध रक्त शरीर में जाता है, और 'शिरा' में अशुद्ध रक्त फेफड़ों द्वारा शुद्ध होने के लिये हृदय में लौटता है।
- शिराओं का काम ढीला (lax) हो जाय, तो नीला खून (venous blood) शरीर में जगह-जगह रुक जाता है जिससे चेहरा फूला हुआ (puffy), शरीर ढीला-ढाला (flabby) और रक्तनीलिमायुक्त (livid) रंग का हो जाता है।
- रक्त में कुछ लालिमा, कुछ नीलिमा मिली-जुली होती है।
- ऐसे रोगी को मोटा-ताजा देखकर सब लोग स्वस्थ समझते हैं, परन्तु शिराओं की शिथिलता के कारण उसका चेहरा फूला हुआ होता है, स्वास्थ्य के कारण नहीं।
- ऐसे रोगी के हृदय में कुछ विकार होता है जिसके कारण उसके शरीर में 'शिरा-रुधिर-स्थिति' (Venous stasis) पायी जाती है।
- डॉ० कैन्ट (Dr. Kent) कहते हैं कि ऐसे रोगियों का इलाज कठिन होता है, ये 'शिरा-प्रधान-शरीर' (Venous constitution) के रोगी होते हैं और इन्हें कई प्रकार के स्नायवीय रोग (nervous diseases) हुआ करते हैं जिनमें ऐसाफेटिडा (Asafoetida) लाभदायक है।
- इनमें से एक रोग हिस्टीरिया (Hysteria) भी है।
(2) हिस्टीरिया में पेट से गले की तरफ एक गोलक का चढ़ना
- इस औषधि का प्रधान लक्षण (main symptom) है रोगी के पेट से गले की तरफ एक गोलक (ball/lump) का चढ़ना।
- इसे नीचे उतारने के लिये रोगी बार-बार अन्दर निगलने (swallowing) की कोशिश करता है, परन्तु उसे ऐसा मालूम होता है कि यह गोलक पेट में से ऊपर चढता चला आ रहा है।
- इसका कारण यह है कि इस औषधि में वायु की गति अधोगामिनी (downward) होने के स्थान में अध्र्ध्वगामिनी (upward) हो जाती है।
- हमारी आंतों में एक विशेष प्रकार की गति हुआ करती है जिससे भीतर का भोजन या मल आगे-आगे को धकेला जाता है। इस गति को 'अग्र-गति' (Peristalsis) कहते हैं।
- इस औषधि के रोगी में 'प्रतिगामी अग्र-गति' (Anti-peristalsis) हो जाती है जिससे वायु आगे की तरफ जाने के बजाय पीछे की तरफ लौटती है, और इसी कारण रोगी हिस्टीरिया (Hysteria) से पीड़ित हो जाता है जिसमें उसे एक गोलक (globus) का पेट से गले की तरफ चढ़ने का कष्टप्रद अनुभव (distressing sensation) होता है।
- इग्नेशिया (Ignatia) में भी ऐसा गोलक गले की तरफ आता प्रतीत होता है। ऐसाफेटिडा (Asafoetida) में इस गोलक के अलावा पेट में वायु भी ऊर्ध्वगामी (upward) हो जाती है।
(3) पेट में ऊर्ध्वगामी वायु तथा बड़े-बड़े डकार
- ऐसाफेटिडा (Asafoetida) का पेट ऊर्ध्वगामी वायु का मूर्त-चित्रण (concrete illustration) है। ऐसा लगता है कि वायु का निकास नीचे से बिल्कुल बन्द हो गया है।
- रोगी 'प्रतिगामी अग्र-गति' (Anti-peristalsis) से पीड़ित हो जाता है।
- देखनेवाले को समझ नहीं पड़ता कि पेट में से इतनी हवा कैसे ऊपर से निकल रही है।
- हर सेकंड बन्दूक की आवाज की तरह डकार (eructations) छूटते हैं जिन पर रोगी का कोई बस नहीं होता।
(4) आतशकी-मिजाज़ (Syphilitic miasm) - भिन्न-भिन्न अंगों में ज़ख्म आदि
- सिफिलिस (Syphilis) के पुराने मरीजों के जख्मों (ulcers) में, आंख के गोलक में स्नायुशूल (neuralgia), उसकी सफेदी पर जख्म, आइराइटिस (Iritis), अर्थात् आंख के उपतारा (Iris) में प्रदाह (inflammation) आदि सिफिलिस से उत्पन्न होने वाले जख्मों में यह लाभप्रद है।
- आतशकी-मिजाज (Syphilitic miasm) में कान, कान की हड्डी, घुटने के नीचे टांग की हड्डी पर भी जख्मों का आक्रमण हो सकता है।
- गले में भी सिफिलिस के घाव (ulcers) हो सकते हैं, नाक के घाव जिनसे बदबूदार सड़ांदभरा स्राव (offensive, putrid discharge) निकलता है। नाक की हड्डी सड़ जाती है।
- अस्थिवेष्टन (Periosteum) में दर्द होता है जो धीरे-धीरे हड्डियों पर आक्रमण कर देता है।
- घुटने के नीचे टांग की टीबिया हड्डी (tibia bone) के जख्म में हनीमैन (Hahnemann) के कथनानुसार स्पंजिया (Spongia) बहुत लाभ करता है, यद्यपि ऐसाफेटिडा (Asafoetida) भी इस आतशकी जख्म (syphilitic ulcer) में उपयोगी है।
- पेट से निकलने वाली गैस या, कुछ मामलों में, मल में भी असामान्य और तीव्र गंध हो सकती है।
- सिफिलिटिक घावों से निकलने वाला स्राव भी अत्यधिक दुर्गन्धयुक्त होता है।
(5) हड्डियों में रात को दर्द
- आतशक (Syphilis) के रोगियों की तकलीफें रात को बढ़ जाया करती हैं। रात को दर्द होता है। इस दवा में भी आतशकी-मिजाज (Syphilitic miasm) होने के कारण हड्डियों में और हड्डियों के परिवेष्टन (periosteum) में रात को दर्द होता है। दर्द हड्डी के अन्दर से बाहर की तरफ आता है।
- सिर-दर्द, किसी भी अंग में हड्डी के भीतर से उठने वाला दर्द-इस औषधि के रोगी में पाया जाता है।
(6) बायीं तरफ आक्रमण
- इस औषधि का पेट, हड्डी या शरीर के किसी अंग पर भी प्रभाव हो सकता है, परन्तु इसका आक्रमण शरीर के बायें भाग (Left Side) पर विशेष होता है।
- रोग भी तो कोई दायें भाग पर, कोई बायें भाग पर आक्रमण करता है।
- यही बात होम्योपैथिक दवाइयों में पायी जाती है। उदाहरणार्थ, हम नीचे बायीं, दायीं तथा दायें से बायीं/बायें से दायीं तरफ विशेष रूप से प्रभाव रखने वाली कुछ औषधियों का विवरण दे रहे हैं।
✍बायीं तरफ के रोग में औषधियां:
- अर्जेन्टम नाइट्रिकम (Argentum Nitricum),
- ऐसाफेटिडा (Asafoetida),
- असरुम (Asarum),
- कैपसिकम (Capsicum),
- सिना (Cina),
- क्लैमेटिस (Clematis),
- क्रोक्कस (Crocus),
- यूफोरबियम (Euphorbium),
- ग्रेफाइटिस (Graphites),
- क्रियोजोट (Kreosote),
- लैकेसिस (Lachesis),
- ओलियेन्डर (Oleander),
- फॉसफोरस (Phosphorus),
- सिलेनियम (Selenium),
- सीपिया (Sepia),
- स्टैनम (Stannum),
✍दायीं तरफ के रोग में औषधियां:
- आर्सेनिक (Arsenic),
- ऑरम (Aurum),
- बैप्टीशिया (Baptisia),
- बेलाडोना (Belladonna),
- बोरैक्स (Borax),
- कैन्थरिस (Cantharis),
- लाइकोपोडियम (Lycopodium),
- पल्सेटिला (Pulsatilla),
- रैननक्युलस बल्बोसस (Ranunculus Bulbosus),
- सारसापैरिला (Sarsaparilla),
- सिकेल कौरनूटम (Secale Cornutum),
- सल्फ्यूरिक ऐसिड (Sulphuric Acid)।
✍दायीं तरफ से चलकर बायीं को जाना:
✍बायीं तरफ से चलकर दायीं को जाना:
✍एक तरफ से दूसरी तरफ और फिर पहली तरफ आ जाना:
(7) शक्ति तथा प्रकृति
- 6, 30, 200 (शक्ति - potency)।
- औषधि 'गर्म' (Hot)-प्रकृति के लिये है।
FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
1. ऐसाफेटिडा (Asafoetida) का सबसे विशिष्ट पाचन लक्षण क्या है?
सबसे विशिष्ट लक्षण पेट से गले की तरफ एक गोलक (Globus Hystericus) का चढ़ना है। इसका कारण आंतों की प्रतिगामी अग्र-गति (Anti-peristalsis) है, जिसके कारण वायु नीचे जाने के बजाय ऊपर की तरफ आती है और बड़े-बड़े डकार छूटते हैं।
2. यह औषधि किस शारीरिक प्रकृति के रोगियों में अधिक उपयोगी है?
यह औषधि 'शिरा-प्रधान-शरीर' (Venous constitution) के रोगियों में अधिक उपयोगी है, जिनका चेहरा फूला हुआ, शरीर ढीला-ढाला और रक्तनीलिमा युक्त (livid) होता है, जो शिरा-रुधिर-स्थिति (Venous Stasis) को दर्शाता है।
3. हड्डियों का दर्द कब और किस कारण से बढ़ता है?
हड्डियों में दर्द रात को बढ़ जाता है, और यह आतशकी-मिजाज़ (Syphilitic miasm) से संबंधित होता है। दर्द हड्डी के अन्दर से बाहर की तरफ आता है।
4. क्या ऐसाफेटिडा मानसिक या भावनात्मक समस्याओं में भी काम करती है?
हाँ, यह हिस्टीरिया (Hysteria) के लक्षणों में बहुत प्रभावी है, विशेषकर जब ये लक्षण पेट की गड़बड़ी से जुड़े हों। यह बायीं तरफ के रोग और रात में वृद्धि के साथ आने वाले स्नायवीय रोगों में भी लाभदायक है।